मरूभाषा वैदिक भाषा का रूप है, लोक साहित्य आत्मकथा के समान है जबकि इतिहास को हम जीवनी के रूप में मान सकते हैं। लोक साहित्य श्रुति परंपरा पर आधारित है और हमारे देश की सांस्कृतिक धरोहर को लोक साहित्य पुष्ट करता है। यह सामूहिक चेतना का विषय है।
ये विचार व्यक्त किए वरिष्ठ राजस्थानी साहित्यकार डॉ. मदन सैनी ने। वे शनिवार को एमजीएसयू के राजस्थानी विभाग द्वारा “राजस्थानी लोक साहित्य व संबंधित ऐतिहासिक साहित्य” आयोजित विस्तार व्याख्यान में बोल रहे थे। इससे पूर्व विभाग प्रभारी डॉ. मेघना शर्मा ने अपने स्वागत भाषण में राजस्थानी लोक साहित्य में व्याप्त ऐतिहासिक तथ्यों पर अपनी बात रखते हुए कहा कि राजस्थानी लोक साहित्य इतिहास की महती जानकारी को अपनेआप में समाहित किए हुए है।
विस्तार व्याख्यान में डॉ. मदन सैनी का परिचय अतिथि व्याख्याता डॉ. नमामि शंकर आचार्य ने दिया। विभाग के विद्यार्थियों ने डॉ. सैनी के समक्ष विषय से संबंधित अपनी अनेक जिज्ञासाएं रखीं जिसे उन्होंने बड़ी सहजता से तथ्यों का समावेश करते हुए समझाया।
आयोजन के संयोजक की भूमिका में डॉ. गौरीशंकर प्रजापत ने लोक साहित्य और अभिजातीय साहित्य पर अपनी बात रखते हुए कहा कि लोक साहित्य का लेखक पूरा समाज होता है जो इसे अपनी सुविधानुसार ग्रहण करता है।
लोक साहित्य के कारण ही आज हमारी संस्कृति जीवित है।व्याख्यान में शिक्षकगण डॉ. गोपाल व्यास, डॉ. मुकेश किराडु, राजेश चौधरी के अलावा उपस्थित विद्यार्थियों में प्रीती राजपुरोहित, उमा प्रजापत, लोकित बिश्नोई, शुभम शर्मा, कोमल ओझा, शमा परवीन, प्रशांत जैन, शहनाज़ बानो, अन्नू मीणा, मुस्कान, साहिबा गुलज़ार, जितेश शर्मा, पिया बाणियां, अनु राजपुरोहित, गुलअफ़सा कादरी, भावना राजपुरोहित, उषा मीणा शामिल रहे। धन्यवाद ज्ञापन विभाग के अतिथि व्याख्याता डॉ. नमामि शंकर आचार्य ने दिया ।(PB)