जयपुर। गुलाबी शहर के खुशनुमा सुबह में समानांतर साहित्य मेले के दूसरे दिन की शुरुआत सितार वादक हरिहर शरण गोस्वामी ने राग वैरागी भैरव व भैरवी बजाकर की। तबले पर उनका साथ मुजफ्फर खान ने दिया। सत्रों की शुरुआत में भीष्म साहनी मंच पर “सावन की कोठरी, अम्मा की साड़ी, बस यूं ही” कविता से की। कबीर प्रेमी कवि ओमेंद्र ने कबीर के दोहे पढ़ें और अन्य कवियों ने भी अपनी कविता से माहौल को आनंदित किया। रांगेय राघव मंच पर राजस्थानी कविता पाठ से हुई। कवि राजू राज ने “किण किण नै खबरदार करूं ” और ” औ छाती माते आटो क्य है दो राजस्थानी कविताएं सुनाई । साथ ही बी एल पारस ने अपने अलग ही अंदाज मे और पवन अनाम ने राजस्थानी कविताएं सुनाई।

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इनके अलावा मंगलेश डबराल, विष्णु नागर, रति सक्सेना, आर. चेतनकांति, सुजाता की कविताओं से मंच गूंज उठा। राग दरबारी मंच से ब्रज मोहन द्विवेदी ने अपनी कविता मां की ममता का बखान करते हुए सत्र की शुरुआत की। इसके अलावा कवियत्री जयश्री कंवर ने अपने गीत मातृशक्ति के जरिए श्रोताओं को अहसास कराया कि भारत की नारी अबला नहीं, बल्कि सबला है। नारी की अपार महिमा का वर्णन किया। राजकुमार इंद्रेश ने अपने काव्य के जरिए देश की युवा शक्ति को संदेश देते हुए कहा, ‘हे युवा जागो आने वाला कल आपका होगा। आप इस देश के मेरूदण्ड हो। विश्वास वाघमारे ने अपनी प्रेम कविताओं और नूतन गुप्ता ने अगनी श्रृंगार कविताओं से श्रोताओं की तालियां बटोरी। कब तक समाज स्त्रियों को सिखाएँगे कि वे कैसे जिएँ? हाँ और ना के बीच स्त्री सत्र पर हुई चर्चा में सुधा अरोड़ा, रुपा सिंह, नूर जहीर, गीता श्री तथा कावर्दी ढिल्लो ने अपने विचार रखे, वहीं सुजाता ने संचालन का कार्य सम्भाला।

नूर जहीर ने सवाल किया कि क्यूँ आज भी स्त्रियों को चारों ओर से पुरुष ही ये सिखा रहे हैं कि वे किस तरह जिएं? धर्म पर प्रश्न उठाते हुए उन्होने कहा कि आज तक सभी पैगम्बर पुरुष हुए हैं, और इसी विषय को आगे बढ़ाते हुए प्रख्यात लेखिका सुधा अरोड़ा ने कहा कि कुरान की नारीवादी व्याख्याएँ नहीं हुई हैं। उन्होने कहा कि हिन्दू धर्म में भी अनेक देवियाँ हैं, और अमूमन हम सुनते हैं – यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता। इसका आशय यह है कि महिलाएं देवीतुल्य हैं और उन्हें अपने सुसज्जित रूप में मौन ही रहना चाहिए। ज्यों ही वे मुखर होकर बोलती हैं, उनका चरित्र हनन होने लगता है। इस प्रासंगिक और ज्वलन्त संवाद को आगे बढ़ाते हुए रूपा सिंह ने दुनिया और अब भारत में भी चल रहेप्तमी टू मूवमेंट के बारे में अहम् बातें साझा की। गीता श्री ने बेबाक अंदाज में कहा कि मीडिया के क्षेत्र में भी महिलाओं को शुरुआत में ग्लैमर लाने की दृष्टि से लाया गया, हालांकि अब हालात बदल रहे हैं। अब महिलाओं के स्वर मुखर हो रहे हैं। संवाद में सभी महिला लेखकों ने यह भी स्पष्ट कहा कि अब हमें प्तरूद्ग ञ्जशश के बजाय प्तङ्खद्ग ञ्जशश पर काम करने की ज़रुरत है, और सभी स्त्रियों को एक – दूसरे के साथ मिलकर संघर्ष करने का समय आ गया है।

भारतीय किसानों की तकलीफ कब तक होंगी नजऱअंदाज?

किसानों से जुड़े मुद्दों पर आधारित संवाद – भारतीय किसान: तकलीफ नक्को सत्र में, विनीत तिवारी, और जन कवि बल्ली सिंह चीमा ने अपने विचार रखे, वहीं संवाद का संयोजन एन एन चन्द्रा ने किया। विनीत तिवारी ने कहा कि सरकार की ओर से भूमि सुधार से जुड़े विषय पर कुछ खास नहीं किया गया है। आवश्यकता है कि गरीब किसानों के मुद्दे, सरकारी तंत्र के भीतर उठाए जाएँ। वहीं, बल्ली सिंह ने कहा कि किसानों की कर्जमाफी क्यूँ नहीं हो सकती। साथ ही नाराजग़ी जताते हुए उन्होने यह भी कहा कि मीडिया भी किसानों के मसलों को नजऱअंदाज करता रहा है। वर्तमान समय में यह बहुत ज़रूरी हो गया है कि किसानों की समस्याओं को मज़बूत आवाज़ में, सरकार तक पहुँचाया जाए। तब ही, कुछ परिवर्तन और सुधार होने की सम्भावना है।

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हिन्दी कहानी का आधा आकाश

हाल ही में दिवंगत हुई महान् लेखिका कृष्णा सोबती को समर्पित संवाद में वरिष्ठ लेखिका सुधा अरोड़ा, उर्मिला शिरीष, रूपा सिंह, प्रज्ञा पाण्डे, डॉ. वन्दना चौबे ने हिस्सा लिया, वहीं गीता श्री ने संवाद का संचालन किया। संवाद शुरू करते हुए, सुधा अरोड़ा ने बताया कि कुछ दशक पहले तक गिनी – चुनी महिलाएं लिख रही थीं, हालांकि अब परिदृश्य बदल रहा है, और लेखिकाओं का हुजूम – सा आ गया है। प्रज्ञा पाण्डे ने अपनी बात रखते हुए कहा कि लेखन के विषय बढ़े हैं। पहले स्त्री लेखन आत्म सुरक्षात्मक था, जो अब प्रतिक्रियात्मक हो रहा है।

विकास और वृद्धि में उतना ही अंतर है जितना कहानी और कथानक में

भीष्म साहनी मंच पर जीडीपी एक भ्रम विषय पर आयोजित सत्र में वक्ताओं ने वैश्विक स्तर पर जीडीपी और उसके आंकडों को लेकर आम आदमी में व्याप्त भ्रम के बारे में चर्चा की। संयोजक आर के चांडक ने इस प्रश्न के साथ चर्चा की शुरुआत की, क्या जीडीपी अवसरों की समानता, रोजगार व मूलभूत सुविधाओं के विकास को स्पष्ट कर पाती हैं। इस पर प्रोफेसर सुरेश दैमान का कहना था कि विकास और वृद्धि में उतना ही अंतर है जितना कहानी और कथानक का होता है।
आरक्षण की राजनीति न हों
आरक्षण का वास्तविक उद्देश्य निचले पायदान पर रह रहे लोगों को बराबर के पायदान पर लाया जाना ही एक सकारात्मक आंदोलन है। इसके विरोध में राजनीतिक रूप से अनेक कुतर्क गढ़ लिए गए हैं। कुछ ऐसे विचारों के साथ पीएलएफ का रांगेय राघव मंच ठंड के मौसम में गर्म हो गया। इस अवसर पर सत्यनारायण सिंह ने बताया कि आरक्षण को लेकर जो हमारी नीति रही उसको लागू करने वालों की नीयत साफ नहीं रही। सुरेश दैमान ने बताया कि भारत से बाहर रहकर इस नतीजे पर पहुंचे कि राजनेताओं को आरक्षण की अधिक जरूरत है। इस पर सकारात्मक पहल होना बहुत जरूरी है। र्दी संस्कृत साहित्य का भंडार है

व्यंग्य बौद्धिक तैयारी के साथ लिखा जाना चाहिए

रागदरबारी मंच पर डॉ. अजय अनुरागी के संचालन में डॉ. विष्णु नागर एवं राजेन्द्र कुमार शर्मा से व्यंग्य संवाद किया व काव्य पाठ भी किया। वरिष्ठ व्यंग्यकार विष्णु नागर ने एक प्रश्न के जवाब में कहा कि व्यंग्य के लिए तैयारी होनी चाहिए। आज व्यंग्य बौद्धिक एवं संवेदनात्मक तैयारी के साथ नहीं लिखा जा रहा है। अमरता के लिए लिया गया व्यंग्य अमरता की श्रेणी में नहीं आ सकता। यह व्यंग्यकार की विडम्बना है। राजेन्द्र मोहन शर्मा ने कहा कि व्यंग्यकार के लिए प्रत्युत्पन्न मति का होना आवश्यक है।(PB)

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