”ऊंट, मिठाई, स्त्री, सोनो गहणा शाह, पांच चीज पृथ्वी सरै, वाह-बीकाणा वाह 532वें बीकानेर स्थापना दिवस पर अक्षय द्वितीय व तृतीया पर उडऩे वाला चन्दा (विशेष प्रकार की गोल पतंग) पिछले 5 शताब्दी से अधिक समय से नगर की संस्कृति व परपरा को पुष्ट कर रहा है। नगर में खुशहाली, उन्नति, आपसी भाईचारा व प्रेम को बढ़ाने के साथ ही सूर्य आकृति की चन्दे के माध्यम से बाल विवाह जैसी सामाजिक कूरितियों को दूर करने, बेटी बचाने, बेटी पढ़ाने, पानी बचाने व सबको पढ़ाने का संदेश दिया जा रहा है।
नगर में चन्दा उड़ाने की परपरा का इतिहास लिखित रूप से लुप्त है लेकिन कहा जाता है कि इस शहर की एक परपरा ने भी 532वां सालों का इतिहास का सफर पूरा किया है। यह परपरा है चन्दा उड़ाने की या कहे तो पतंगबाजी की। जब सवत 1545 में बीकानेर शहर की स्थापना हुई तो नगर के संस्थापक राव बीकाजी ने खुशी और सूर्यवंश की प्रतिकृति के रूप में चन्दा उड़ाया था वह परपरा आज भी जिन्दा है। आज भी नगरवासी नगर स्थापना दिवस पर पूरे धूमधाम से चन्दा और पतंगे उड़ाते है। पिछले एक दशक से चन्दा उड़ाने के प्रति लोगों में अधिक रूचि जागृत हुई है सामाजिक एवं स्वयं सेवी संगठन लक्ष्मीनाथ जी मन्दिर में चन्दा उड़ाने की परपरा निभाते है।
अन्तराष्ट्रीय पतंग महोत्सव में चन्दे की धूम देश विदेशों में रही है देश के अलावा विभिन्न शहरों के साथ कन्नाड़ा, बेल्जियम, स्विट्जरलैण्ड आदि देशों में चन्दें को तैयार करके भेजा है। राव बीका जी ने इस चन्दे को उड़ाते वक्त कहा था कि यह चन्दा आसमान में जितना उपर जायेगा इस नगर के वांशिंदे उतनी ही प्रगति करेंगें और अपना जीवन व्यापन भी शांतिपूर्वक व्यतित करेंगें। बीकाजी की इस बात को ध्यान में रखते हुए नगर की तत्कालीन जातीय पंचायतों ने हर साल नगर स्थापना दिवस पर चन्दा उड़ाने का जिमा लिया, इसलिए चन्दा उड़ाने वालों में यह होड़ रहती थी कि किसका चन्दा सबसे ज्यादा उपर तक उड़ेगा ताकि उसके परिवार में समृद्धि और शान्ति बनी रहे।
पांच दशक पूर्व तक नगर की प्रमुख जातिय सहित पांच पंचायतों द्वारा उड़ाया जाता था और मथेरी समाज के लोग चन्दा बनाते थे लेकिन बाद में चन्दे बनाने की कीमतों में वृद्धि के कारण उन्होंने चन्दा बनाना बन्द कर दिया और पांच पंचायतियों ने भी इस परपरा पर विराम लगा दिया लेकिन बाद में आधुनिक युग के अनुसार कुछ युवा वर्ग ने लोक संस्कृति और बीकानेर का परिदृश्य आने वाली पीढ़ी को बताने के लिए और संस्कृति से रूबरू कराने के लिए या इस चन्दा बनाने की परपरा को जिन्दा बनाये रखा है। धीरे-धीरे आधुनिकता की सीढ़ीयां चढ़ते हुए शहर के निवासियों ने चन्दे के स्थान पर हाथों में पतंग को ले लिया चाहे आज की युवा पीढ़ी के हाथों में पतंग की डोर हो या न हो लेकिन आज भी नगर स्थापना दिवस पर परपरा के रूप में पुष्करणा स्टेडियम के पीछे रहने वाले कृष्णचन्द पुरोहित अपने खर्चे पर चन्दा बनाकर इसे हर सााल परपरा के रूप में उड़ाते है। वे ही नहीं शहर के कई परिवार भी चन्दा उड़ाने की परपरा का निर्वाह करते है और कहते है शहर के किले जूनागढ़ की प्राचीर से भी चन्दे के उड़ाते है जिसमें जय जंगलधर बादशाह का चित्र हाथ से बना हुआ और महाराजा का फोटो हाथ से बनाया हुआ तथा बीकानेर राज्य के जमाने की केसरिया ध्वजा चन्दे पर लगाई जाती है। चन्दे में भी सूती केसरिया पाग की पूंछ बनाकर उड़ाते है और आनन्द लेते है। इस चन्दा बनाने वाली समिति का नाम जांगल प्रदेश चंदा महोत्सव समिति है, जिसके मुख्य कलाकार कृष्णचन्द पुरोहित, मोहित पुरोहित, तनीश स्वामी, तपेश सुथार, मोना सरदार डूडी, हितेन्द्र मारू, शिवजी उपाध्याय, रामप्रसाद पुरोहित, विमल किशोर व्यास, जयश्री पुरोहित, आदित्य पुरोहित, योगेश कुमार व्यास आदि।
सन्देश वाहक चन्दा:- चन्दे पर देवी, देवताओं के चित्र व आकृतियों के साथ दोहों व शदों में संदेश भी अंकित किये जाते है चन्दा बनाने वाले कृष्णचन्द पुरोहित बताते है कि चन्दे पर देवी करणीमाता, देव कोडमदेसर जी भैरू जी, देव पूनरासर हनुमान जी व अन्य देवीदेवता तथा बीकानेर रियासत के राजाओं, राव बीका, महाराजा गंगासिंह जी, महाराजा करणीसिंह जी आदि के चित्र अंकित किये जाते है। चन्दे में बीकानेर स्थापना का दोहा ”पन्नरै सौ पैताळवे, सुद वैशाख सुमेर, थावर बीज थरपियों बीके बीकानेर।ÓÓ ”ऊट मीठाई, स्त्री सोनो गहणां शाह, पांच चीज पृथ्वी सरै, वाह-बीकाणा वाहÓÓ आदि के दोहों के माध्यम से नगर की विशिष्टताओं से अवगत कराया जाता है वह पानी बचानें, बिजली बचाने, सबको पढ़ाने एवं बेटी बचाओं, रूण हत्या रोकने, नशाखोरी एवं धुम्रपान रोकने, बंको बीकाणों के माध्यम से प्रत्येक घर में शौचालय बनवाने स्वच्छ बीकाणा हराभरा बीकाणा बनाने आदि के संदेश लिखे जाते है। चन्दा उड़ाने की प्रक्रिया:- चन्दा तेज हवा में ही उड़ता है चन्दा उड़ाने व उसकी डोरी पर हाथ लगाकर वापस छोडऩे का माहौल बहुत ही आनन्दित होता है, चन्दे को पुष्करणा स्टेडियम, जूनागढ़, भट्ड़ों का चौक, दमाणी चौक, साले की होली, बारहगुवाड चौक, झंवरों का चौक, किकाणी व्यासों का चौक आदि स्थानों पर मैदान या किसी छत पर जाकर चन्दे को उड़ाकर छोड़ दिया जाता है। चन्दा हवा के रूख के अनुसार लोगों के घरों के उपर से होते हुए दूर तक जाता है, चन्दा उड़ाने वालों की टीम चन्दें को सुरक्षित वापस लाने के लिए साथसाथ दौड़ती रहती है। लोग छतों पर खड़े होकर चन्दे की डोरी के अन्तिम छोर (सूती रस्सी की गुच्छा) जिसे बुन्दड् कहते है, वो शगुन के तौर पर पकड़ते हैं और वापस छोड़देते है हवा के रूख कम होने पर सती माता गवरा दादी को प्रार्थना करते हुए हवा तेज करने की प्रार्थना करते है और कहते है ”गवरा दादी पून दे, टाबरियों रो चन्दों उड़े।
चन्दा बनाने की प्रक्रिया:- चन्दा विशेष कागज से बनता है, चन्दा बही के कागज विशेष प्रकार का होता है उसमें विभिन्न आकृतियों द्वारा बनाई जाती है। चन्दा तीन गुणा तीन फिट, दो गुणा दो फिट, एक गुणा एक फिट वृताकार आकार में बनाया जाता है जिसे बनाने में विशेष ध्यान रखना होता है। कागज के उपर 9 सरकण्डे के तीनके लगाये जाते है। चन्दे के साईड में कुछ अधिक बड़े सरकण्डे का भी प्रयोग किया जात है। अधिकतम 25 किलों वजन के चन्दें को विशेष डोरी से उड़ाया जाता है। चन्दा नील गगन में इठलाते विजय का संन्देश देने वाले चन्दे को दो व्यक्तियों द्वारा पकड़कर उड़ाया जाता है। वह हवा के अनियन्त्रित होने पर बुन्दड़ द्वारा चन्दे को सन्तुलित किया जाता है, जिसका वह सहायक होता है चन्दे की पूरी गोलाई में बीकानेर रियासत के ध्वज के प्रतिक के रूप में लाल व केसरिया पतले कपड़े की गोठन बांधी जाती है, वह हल्के केसरियां पगड़ी के कपड़े से पूंछ बनाई जाती है। उडऩे के दौरान हवा में लहराती हुई यह पूंछ बच्चों के लिए आकर्षण का केन्द्र बनती है। चन्दें की पूंछ को देखकर कई बच्चें अपनी पतंगों में भी सूती साड़ी की पूंछ बनाकर उड़ाते है। कृष्णचन्द पुरोहित बताते हंै कि अलग-अलग देशों में भी पतंग उड़ाने का अलग-अलग महत्व रहा है। विदेशों में इटली के लोग पतंगों को ईश्वर का दूत मानते हंै।
जापान में पतंग उड़ाते समय लोग धार्मिक गीत गाते है। चीन में पतंग उड़ाने का धार्मिक महत्व मानते है, वहां ऐसी मान्यता है कि धार्मिक गीता गाकर पतंग उड़ाने से पाप नष्ट होते हंै। न्यूजीलैण्ड में अजगर के आकृति वाली पतंगें उड़ाने का काफी शौक है। कोरियाई फौज के कमाण्डर अपने सेना का हौसला बुलन्द करने के लिए पतंगबाजी का इस्तेमाल करते है। रोचक तथ्य की बात है कि कोरिया एक फौजी कमाण्डर ने भी पतंग के माध्यम से नदी की चौड़ाई को नापा और उस आधार पर पुल तैयार करवाया। पतंग को शुभ संदेश भेजने के उपयोग में भी लिया जाता रहा है। भारत में लखनऊ, मुरादाबाद, अहमदाबाद, आगरा, भोपाल, जयपुर, दिल्ली और बीकानेर के पतंगबाजों का वर्चस्व रहता है। अलग-अलग अवसरों पर यहा के लोग पतंग उड़ाकर अपना और दूसरों का मनोरंजन करते है। पतंग का उपयोग केवल मनोरंजन ही नहीं साहित्य के क्षेत्र में भी लिया जाता रहा है। अनेक गानों व कविताओं में भी पतंग का जिक्र किया जाता रहा है। फिल्मों में भी पतंग का उपयोग मनोरंजन के लिए करते है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी पतंग के शौकीन थे। गुजरात राज्य के अहमदाबाद शहर में दुनियाभर की 2000 से अधिक पतंगों का संग्राहलय है यहां प्रतिवर्ष अंतराष्ट्रीय पतंग महोत्सव आयोजित होता है। जहां तक बीकानेर में पतंगबाजी की बात करें तो राव बीकाजी द्वारा शुरू की गई चन्दे की परपरा का निर्वाह आज भी किया जा रहा है इसी चन्दे का आधुनिक रूप पतंगों के रूप में हमारें सामने उल्लेखनीय है जो इस शहर का स्थापना दिवस नजदीक आते ही नगर का पुरा आसमान कागजी हवाई जहाजों अर्थात पतंगों से पूरा आसमान लिपट जाता है। चारों ओर आसमान ऐसा प्रतीत होता है कि मानों आसमान के केनवास पर रंग ही रंग बिखेर दिये गये हो कोई पतंग बान्ध रहा है तो कई चरखी लपेट रहा है छश्रो पर चिलचिलाती धूप में खड़े होकर पतंग उड़ाते बच्चे व बुढे और परिवार के साथ नारे लगाते हुए कहते है कि ”बोई काट्या हेÓÓ कही पतंगों को लुटने के शौकिन बच्चे गलियों व सड़कों पर भी दौड लगाते है।
बीकानेर शहर के वरिष्ठ पतंगबाज रामेश्वर लाल स्वामी, जयप्रकाश पटवारी बताते है कि यू तो छश्रों पर पतंगबाजी का उस्ताद है लेकिन मैदान में जाकर अपनी पतंगबाजी में बीकानेर ही नहीं इस शहर के बाहर जिन्होंने अपना नाम कमाया है इनका नाम बीकानेर की पतंगबाजी में अदब से लिया जाता है इन पतंगबाजों में लक्ष्मणदा पुरोहित (लिच्छू मास्टर), साू भाई, राजेश पुरोहित, गोपाल जोशी, भंवरलाल जोशी (लप्पू मास्टर), श्रीमोहन पुरोहित, मनीष स्वामी, किशन स्वामी, मनिया स्वामी, राजेन्द्र सिंह, मौलसा, मेहरा, पवन व्यास, सुरेश ओझा, महेश ओझा, गणेश रंगा, सन्तोष कुमार रंगा (मन्ना), नन्द किशोर व्यास, जगदीश पुरोहित, अशोक उपाध्याय, आशाराम सुथार, कौशल भोजक, भरत कुमार पुरोहित, ओम आचार्य इत्यादी शामिल है। रामप्रसाद पुरोहित और मोहनलाल उपाध्याय बताते है कि इन पतंगबाजी के अपने-अपने लब थे और जिनके नाम से पतंगबाजी होती थी। ये लब मरूधर काईट लब, जय बीकाणा काईट लब इत्यादी बहुत सी लब होती है जिनके पतंगबाज बीकानेर से बाहर जाकर प्रतियोगिता में भाग लेते है यही नहीं कई पतंगबाज मंहगाई के बावजूद भी रविवार या छूटटी के दिन भी बजरंग धोरे या नाथ जी के धोरे पर जाकर पतंग
उड़ाकर पेच लड़ाते हुए मिल जायेगें। राव बीकाजी द्वारा चन्दे के रूप में शुरू किये गये पतंगों का व्यवसाय भी लाखों रूपयों का कारोबार हो गया है। श्रीमोहन पुरोहितबताते है कि बीकानेर में इस शहर के लोग ही नहीं बल्कि बरेली, अहमदाबाद, जयपुर के व्यवसायी भी बीकानेर
स्थापना दिवस के दो माह पूर्व शहर के परकोटे के भीतर किराये पर दुकान लगाकर कमाई करते है।