बीकानेर। स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के भारतीय कृषि प्रबंधन संस्थान (आईएबीएम) में चल रहे तीन दिवसीय ‘खजूर का उत्पादन और मूल्य संवर्धनÓ विषयक प्रशिक्षण के दूसरे दिन शुक्रवार को विद्यार्थियों ने खजूर अनुसंधान केन्द्र का अवलोकन किया।
वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. राजेन्द्र सिंह राठौड़ ने बताया कि विद्यार्थियों को खजूर की विभिन्न किस्मों, इनके फल पकाव के समय एवं उपयोगिता के बारे में बताया गया। डॉ. नरेन्द्र पारीक ने बताया कि यह प्रशिक्षण राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना के तहत आयोजित हो रहा है।
इसका मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों को खजूर के मूल्य सवंर्धित उत्पादों की जानकारी देना तथा इनके विक्रय की संभावनाओं से रूबरू करवाना है। प्रायोगिक कार्य के तहत खजूर का छुहारा और जैम बनाने का प्रशिक्षण डॉ. आर. के. नारोलिया एवं डॉ. सुशील कुमार द्वारा दिया गया। खजूर में कीट एवं बीमारियों के प्रकोप एवं इससे बचाव संबंधी व्याख्यान डॉ. ए. आर. नकवी ने दिया। तीन दिवसीय प्रशिक्षण शनिवार को समाप्त होगा।
कम्प्यूनिटी साइंस की छात्राओं ने जानी गतिविधियां
गृह विज्ञान महाविद्यालय की कम्प्यूनिटी साइंस की बीएससी ऑनर्स प्रथम वर्ष की छात्राओं ने बीछवाल स्थित कृषि यंत्र एवं मशीनरी परीक्षण तथा प्रशिक्षण केन्द्र का अवलोकन किया। केन्द्र प्रभारी इंजी. विपिन लढ्ढा ने उन्हें मशीनरी प्रशिक्षण प्रक्रिया के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि यह केन्द्र, देशभर के 31 तथा राज्य के दो केन्द्रों में से एक है।
अब तक यहां से प्रमाणित 432 प्रकार के कृषि यंत्र केन्द्र तथा विभिन्न राज्यों की सरकारों द्वारा सब्सिडी पर उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। गृह विज्ञान महाविद्यालय की अधिष्ठाता डॉ. दीपाली धवन ने बताया कि महाविद्यालय द्वारा विद्यार्थियों के लिए समय-समय पर ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
आईएबीएम के विद्यार्थियों ने किया नर्सरी का अवलोकन
उधर, भारतीय कृषि प्रबंधन संस्थान के विद्यार्थियों ने एसकेआरएयू की नर्सरी का अवलोकन किया। भू-सदृश्यता एवं राजस्व सृजन निदेशालय के निदेशक प्रो. सुभाष चंद्र ने जल बचत के लिए बूंद-बूंद तथा ड्रिप सिंचाई पद्धति के बारे में बताया। उन्होंने नर्सरी द्वारा तैयार फलदार, छायादार, अलंकृत तथा औषधीय पौधों एवं इनके विक्रय प्रणाली की जानकारी दी।
बागवानी सलाहकार डॉ. इंद्रमोहन वर्मा ने नर्सरी द्वारा लगभग सवा लाख पौधे तैयार किए गए। यह पौधे आमजन को उचित मूल्य पर उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। उन्होंने जैव विविधता, नेट तथा पॉली हाउस, बतख-मछली तथा खरगोश पालन के बारे में बताया। साथ ही मटका सिंचाई प्रणाली की उपयोगिता एवं आज के दौर में इसकी आवश्यकता पर प्रकाश डाला।