ज्ञान विधि पी. जी. महाविद्यालय में आज दिनांक 1.8.2019 को जिला विधिक सेवा प्राधिकरण बीकानेर द्वारा महाविद्यालय में स्थापित विधिक सेवा केन्द्र का निरीक्षण किया गया। इसमें अपर जिला एवं सेषन न्यायाधीष एवं जिला विधिक सेवा प्राधिकरण बीकानेर के सचिव श्रीमान पवन कुमार अग्रवाल द्वारा महाविद्यालय में स्थापित विधिक सेवा केन्द्र में आम जन को उपलब्ध करवाई जाने वाली सूचनाओं व सहायता के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की गई। महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. बी. एल. बिश्नोई के निर्देषन में श्री अग्रवाल को महाविद्यालय में संचालित विभिन्न योजनाओं तथा पात्र व्यक्तियों को उपलब्ध करवाई जाने वाली सहायता के बारे में जानकारी दी गईं।
इस अवसर पर श्रीमान पवन कुमार अग्रवाल ने उपस्थित विद्यार्थियों को मूलाधिकारों के बारे में बतलाते हुए कहा कि देष के प्रत्येक नागरिक को अपने अधिकारों के प्रति सजग रहना चाहिए। भारतीय संविधान तथा उसके तहत निर्मित विभिन्न कानूनों में व्यक्ति को कई प्रकार के मूल अधिकार दिये गये हैं जिनका उल्लंधन होने पर आम आदमी न्याय के लिए न्यायालय की षरण में जा सकता है। इसके लिए जनचेतना हेतु ऐसी योजनाओं व जानकारी की आवष्यकता है। अत: विधि छात्रों, षिक्षकों का यह नैतिक दायित्व है कि वे पिछड़े, अषिक्षित एवं षोषित वर्गों को उनके हितार्थ कानूनों की सही जानकारी दें ताकि वे न्याय प्राप्त कर सकेें।
प्राचार्य डॉ. बी. एल. बिश्नोई ने जिला विधिक सेवा प्राधिकरण पर चर्चा करते हुऐ कहा कि जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के माध्यम से पात्र व्यक्तियों को नि:षुल्क विधिक सहायता उपलब्ध करवाई जाती है। जिसका ज्ञान आम आदमी को नहीं होता है। विधि छात्र समाज की सक्रिय इकाई के रूप में इन प्रावधानों को आमजन तक पहुॅंचा कर जनहित का कार्य कर सकते हैं।
वरिष्ठ व्याख्याता डॉ. सीताराम ने छात्रों को कहा कि पीडि़त अपने अधिकारों की रक्षा हेतु न्यायालय जाता है यदि वह जटिल कानूनी प्रक्रिया में पड़ जाएगा तो उसके साथ न्याय होना सम्भव नहीं है। अत: छात्रों का यह परम दायित्व है कि ऐसे पीडि़तों को समुचित न्यायिक प्रणाली से अवगत करा कर उन्हें न्याय दिलवाने में सहायता करें। उन्होने मजदूरी अधिनियम संबंधी प्रावधानों को तथा किषोर न्याय अधिनियम तथा परिवीक्षा कानून पर विस्तृत चर्चा करते हुए महिलाओं व बालकों के प्रति किये गये प्रावधानों को विस्तारपूर्वक बतलाया।
व्याख्याता डॉ. इकबाल अहमद उस्ता ने स्वीय-विधि व दण्ड प्रक्रिया संहिता में भरण पोषण से संबंधित महिला, बच्चों व माता-पिता को प्राप्त अधिकारों से अवगत करवाया। महिलाओं को जागरूकता का संदेश देते हुए कहा कि आज पूरे देष में महिला अधिकारों की जंग छिड़ी हुई है ऐसे समय में महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागना होगा एवं समाज की ऐसी महिलाओं को जागृत करना होगा जो अषिक्षा व रूढि़वादिता के कारण समाज के समक्ष नहीं आ पाती हैं। यह महिला विधिक जागृति का ही परिणाम है कि मुस्लिम महिलाओं को तलाक-उल-बिद्दत जैसी कुरीति से निजात मिल सकी है।
व्याख्याता डॉ. योगेष पुरोहित कहा कि मानवाधिकारों की रक्षा का मूल मंत्र ही विधिक साक्षरता है। यदि व्यक्ति को अपने अधिकारों का ज्ञान होगा तो मानवाधिकारों के हनन की नौबत ही नहीं आ पाएगी।
व्याख्याता श्री राकेश कुमार ने छात्रों को बताया कि विधिक सहायता व साक्षरता दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यदि हम अपने दायित्वों को समाज के पिछड़े वर्गों के हितों में लगाएगें तो उन तक विधिक ज्ञान पहुॅंचेगा तथा अतिवृष्टि, भूकम्प, बाढ़, हिंसा से पीडि़त व्यक्तियों को विधिक सहायता उपलब्ध हो सकेगी।
व्याख्याता डॉ. दुर्गा चौधरी ने बताया कि यह विधि छात्रों का दायित्व है कि वे आमजन को विधि के प्रावधानों की जानकारी उपलब्ध करायें। ऐसे व्यक्ति जो पिछड़े व गरीब तबके के हैं, उनके डॉ. अधिकारों की रक्षा के लिए छात्र समुचित मार्गदर्षन करके समाज सेवा कर सकते हैं।
इस अवसर पर बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं व व्याख्याता उपस्थित थे।
महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. बिश्नोई ने माननीय न्यायाधीष महोदय द्वारा दी गई उपयोगी जानकारी हेतु उनका धन्यवाद ज्ञापित किया तथा स्मृति चिन्ह भेंट किया।