श्रीगंगानगर।[गोविंद गोयल] सौंदर्य के पर्याय भी एक समय के बाद ढल जाते हैं। पद और कद सदा नहीं रहते। कल किसी का नाम था, आज उसके स्थान पर किसी दूसरे का नाम लिया जा रहा है। कभी जिनके यहां हर क्षण महफिलें सजा करतीं थी, आज वहां सन्नाटा है। जहां वीरानी थी, वहां रौनक हैं। अपने आस पास अगर कोई पीछे के समय को देखे तो बहुत कुछ बदला बदला महसूस होगा। आज वो कहां हैं, जिनके नाम के डंके इस शहर मेँ बजा करते थे। अब उनके परिवार का नाम रह गया, पहचान नहीं। वो जमाना और था, जब लोग इन बातों को समझते थे। वक्त की कदर करते थे। आज तो इतिहास से सीखने, सबक लेने की बजाए उसे नजर अंदाज कर आगे बढ़ने का दौर है। आज की युवा पीढ़ी ने उनके नाम शायद ही सुने हों जो इस शहर के नामी व्यक्ति थे।

जिनके नाम से काम होते थे। सेठ लच्छी राम गिदड़ा! किसे याद है कि वे नगर परिषद के ऐसे सभापति थे, जो खजाने मेँ धन ना होने पर एक बार पल्ले से कर्मचारियों को तनख्वाह दे दिया करते थे। कल्याण भूमि के लिए जगह इन्हीं के परिवार की दी हुई है। आज उनके बच्चे भी पास खड़ें हों तो भी कोई ना पहचाने। राजनीति के दिग्गज प्रो केदार को गुजरे 25 साल से अधिक का समय हो चुका। वे चुनाव मेँ अजेय रहे। अब उनको केवल दो दिन चंद लोग ही याद करते हैं। राजनीति के दूसरे खिलाड़ी राधेश्याम गंगानगर होने के बावजूद आज ना होने जैसे हैं।

वो भी समय था, जब लोग सुबह उनके जागने से पहले उनके दर्शनों को पहुँच जाते थे और उनके सोने के बाद उनके घर से अपने घर जाया करते थे। कभी भैरों सिंह शेखावत जैसे व्यक्तित्व को पराजित करने वाले राधेश्याम गंगानगर आज जैसे खुद से हार कर बस जी रहे हैं। कामिनी जिंदल, जिसने छोटी उम्र मेँ वो रिकॉर्ड बनाया, जिसकी कल्पना मुश्किल है। परंतु 5 साल मेँ वक्त ने ऐसा पलटा मारा कि जो था सब चला गया। आज के राजनीतिक बड़े बड़े नेताओं के साथ फोटो खिचवा, उसे सोशल मीडिया पर वायरल कर खुश होते रहते हैं। परंतु यहां तो ऐसे भी हुए हैं जिनकी अप्रोच सीधी सीएम तक हुआ करती थी। केवल राजनीतिक क्षेत्र ही नहीं, किसी भी क्षेत्र मेँ पीछे मुड़ कर देख लो, ऐसे ऐसे नाम याद आएंगे कि सब हैरान हो जाएंगे, उनके बारे मेँ जानकार। वर्तमान मेँ उनके स्थान पर दूसरे स्थापित हो चुके हैं। क्योंकि वक्त हर वक्त किसी एक के साथ नहीं रहता। उसे बदलना है। वक्त कब, किसका, किस रूप मेँ बदल जाए, यह केवल वक्त के अतिरिक्त कोई नहीं जानता। जो आज किसी भी क्षेत्र मेँ स्थापित हैं। प्रतिष्ठित हैं। जिनके नाम और पद का आज डंका बजता है, वे कल निश्चित रूप से नहीं रहेंगे। वे भी इस बात को जानते हैं कि एक दिन वे भी केवल किताबों मेँ रिकॉर्ड के तौर पर रह जाएंगे। अखबार के पन्नों मेँ छपे उनके नाम पुरानी फाइलों के गोदाम मेँ दब जाएंगे। माला वाले चित्र को छोड़ उनके दूसरे चित्र उनके परिवार वाले ही दीवारों से हटा देंगे। किन्तु पद और कद की चमक, ठसक और उनका अपना मन ये सब याद रखने ही नहीं देता। वह वर्तमान को इस प्रकार से जीना चाहता है जैसे वक्त सदा उनके साथ ऐसे ही खड़ा रहेगा। हां, विवेकी व्यक्ति इतिहास को भी याद रखते हैं।

वे इस बात का ज्ञान रखते हैं कि एक दिन ये सब नहीं रहना। रहेगा तो केवल नाम। वह भी कभी कभी लिया जाएगा। ऐसी ही व्यक्ति समाज मेँ किसी के आदर्श बन सकने मेँ सक्षम होते हैं। वह भी उस दौर मेँ जब बच्चों और युवाओं को अपने ही पूर्वजों के नाम नहीं पता होते। कितने बच्चे हैं जो अपने परदादा का नाम जानते हों। उनके बारे मेँ अपने पेरेंट्स से पूछते हों। अपवाद हों तो हों। इसलिए जब घर के मेम्बर ही एक वक्त के बाद गुमनामी मेँ चले गए तो गली, समाज, शहर के उन व्यक्तियों को कोई क्यों याद रखें या उनके बारे मेँ क्यों जाने, जो वक्त की धारा मेँ गुम हो गए। आज वक्त जिनके साथ खड़ा है, वे और कुछ नहीं बस इतना जरूर याद रखें कि वो समय नहीं रहा तो ये भी नहीं रहना। दो लाइन पढ़ो-
तेरे साथ वक्त है
मेरे पास वक्त है।

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