पति की लंबी उम्र के लिए सुहागिनें रखती है करवा चौथ का व्रत, करवा चौथ पर चांद देखकर ही क्यों व्रत खोलती है महिलाएं ?
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✍🏼 तिलक माथुर
केकड़ीराजस्थान
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं और पूजा करती हैं। शाम को चांद की पूजा कर पति के हाथ से अपना व्रत खोलती हैं। इस दिन प्रमुख रूप से चंद्रमा, शिव-पार्वती और भगवान गणेश की पूजा की जाती है, लेकिन क्या आपको पता है कि करवा चौथ के दिन महिलाएं चंद्र दर्शन के बाद ही अपना व्रत क्यों खोलती हैं ? ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से 100 व्रत करने के बराबर फल मिलता है और पति को लंबी आयु मिलती है और संतान सुख प्राप्ति होती है।

*आइये जानते हैं महिलाएं चांद को देखकर ही व्रत क्यों खोलती हैं !* प्रचलित पौराणिक कथा में ऐसा उल्लेख है कि जिस दिन भगवान गणेश का सिर धड़ से अलग किया गया था उस दौरान उनका सिर सीधे चंद्रलोक चला गया था। ऐसा माना जाता है कि आज भी उनका वह सिर चंद्रलोक में मौजूद है। प्रथम पूज्य गणपति जी की पूजा हमेशा सबसे पहले की जाती है, इसलिए उनका सिर चंद्रलोक में होने के कारण चतुर्थी के दिन गणपति की पूजा के बाद चंद्रमा की भी पूजा की जाती है। करवा चौथ के दिन भगवान गणेश, शिव-पार्वती और कार्तिकेय की पूजा होती है। मां पार्वती को अखंड सौभाग्यवती का वरदान प्राप्त था। ऐसे में मां पार्वती की पूजा कर महिलाएं अखंड सौभाग्य का आर्शीवाद मांगने के लिए उपवास रखती हैं। कुछ अन्य कारण भी बताए गए हैं।

छांदोग्योपनिषद् में इस बात की व्याख्या की गई है कि चंद्रमा पुरुष रूपी ब्रह्मा का रूप हैं। इनकी पूजा और उपासना से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। कहा गया है कि चंद्रमा के पास रूप, शीतलता और प्रेम और प्रसिद्धि है, उन्हें लंबी आयु का वरदान मिला है। ऐसे में महिलाएं चंद्रमा की पूजा कर यह सभी गुण अपने पति में समाहित करने की प्रार्थना करती हैं। विद्वान पंडितों के अनुसार अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा ठीक स्थान पर ना हों तो मानसिक और शारीरिक पीड़ा मिलती है साथ ही धन व यश का अभाव रहता है। ऐसे में चंद्रमा की पूजा से मानसिक शांति मिलती है और सेहत अच्छी रहती है वहीं धन व यश की प्राप्ति होती है। करवा चौथ के दिन महिलाएं चंद्रमा की पूजा कर अपने पति के लिए सेहत और दीर्घायु का वरदान मांगती हैं। चंद्रमा शिव जी की जटा का गहना है इसलिए दीर्घायु का भी प्रतीक है। कहा गया है कि पति-पत्नी के बीच संबंधों की मजबूती के लिए इस व्रत का समापन चंद्रदर्शन के साथ होता है। *आइये जानते हैं करवाचौथ की शाम छलनी से क्यों देखते है चांद को ?* करवाचौथ की शाम को छलनी देखने के पीछे एक पौराणिक कथा के मुताबिक एक साहूकार के सात लड़के और एक बेटी थे।

बेटी ने अपने पति की लंबी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था। रात के समय जब सभी भाई भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी बहन को भी खाने के लिए आंमत्रित किया, लेकिन बहन ने कहा भाई ! अभी चांद नहीं निकला है, उसके निकलने पर अर्घ्‍य देकर भोजन करूंगी। बहन की इस बात को सुन भाइयों ने बहन को खाना खिलाने की योजना बनाई। भाइयों दूर कहीं एक दिया रखा और बहन के पास छलनी ले जाकर उसे प्रकाश दिखाते हुए कहा कि – बहन ! चांद निकल आया है। अर्घ्‍य देकर भोजन कर लो, इस प्रकार छल से उसका व्रत भंग हुआ और पति बहुत बीमार हुआ। ऐसा छल किसी और शादीशुदा महिला के साथ ना हो इसीलिए छलनी में ही दिया रख चांद को देखने की प्रथा शुरू हुई। छलनी से चांद देखने के बाद सर्व प्रथम पति का चेहरा देखकर व्रत खोलने की परम्परा सदियों से चली आ रही है।

*करवाचौथ व्रत के नियम और सावधानियां* केवल सुहागिनें या जिनका रिश्ता तय हो गया हो वही स्त्रियां ये व्रत रख सकती हैं। ये व्रत निर्जल या केवल जल ग्रहण करके ही रखना चाहिए। व्रत रखने वाली कोई भी महिला काला या सफेद वस्त्र कतई न पहनें। इस व्रत के लिए लाल वस्त्र सबसे उत्तम माना गया है, पीला वस्त्र भी पहना जा सकता है। आज के दिन महिलाओं को पूरे 16 श्रृंगार करने चाहिए। अगर कोई महिला अस्वस्थ है तो उसकी जगह उसके पति ये व्रत कर सकते हैं। व्रत की कथा पूरे मन से सुनें और इस दौरान किसी दूसरे से बातें न करें। चांद देखने के बाद मां गौरी की पूजा करें और भगवान को पूरी-हलवा या चूरमे का भोग लगाएं।
पूरे नियम से ये पर्व मनाने से महिलाओं का सौंदर्य भी बढ़ता है।करवाचौथ के दिन पति के साथ भूलकर भी लड़ाई न करें।