दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने खुद को लायक बेटे के तौर पर प्रोजेक्ट किया था और उसी भरोसे भाजपा के हमलों को काउंटर किया था| जब भाजपा नेताओं अरविंद केजरीवाल को आतंकवादी बताना शुरू किया तो वो रिएक्ट नहीं किये, बल्कि आरोपों को ही पलटवार का हथियार बना डाला| काफी हद तक वैसे ही जैसे आम चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी के ‘चौकीदार चोर है’ स्लोगन के साथ नाम के पहले ‘चौकीदार’ लिख कर किया था| अरविंद केजरीवाल ने भी साफ साफ बोल दिया था अगर दिल्लीवालों को लगता है कि वो आतंकवादी हैं तो भाजपा को वोट दे दें| दिल्लीवालों को केजरीवाल पर पूरा भरोसा रहा और फैसला भी वैसा ही सुनाया|

मगर, अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के 10 दिन के भीतर ही सब गड़बड़ हो चुका था | दिल्लीवाले खुद पर अफसोस करने लगे हैं कि जिस बेटे पर भरोसा किया वो तो फिर से भगोड़ा साबित हो गया | दिल्ली में हिंसा और उपद्रव के दौरान अरविंद केजरीवाल को लोगों ने नदारत पाया | मुसीबत के वक्त अरविंद केजरीवाल को साथ न पाकर दिल्ली वासी काफी अफसोस करते रहे |खास बात ये है कि ये सब कोई बाहरी नहीं, बल्कि आम आदमी पार्टी के अंदरूनी सर्वे में मालूम हुआ है| अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ ने आप के आंतरिक सर्वे से जुड़े एक पदाधिकारी के हवाले से इस सिलसिले में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है| रिपोर्ट के मुताबिक, एक ऑनलाइन सर्वे में 80 फीसदी लोगों ने नकारात्मक फीडबैक दिया है | और ये तब की बात है जब लंबी खामोशी के बाद अरविंद केजरीवाल ने शांति की अपील के साथ साथ पीड़ितों के लिए कई तरह की राहत और मुआवजे की घोषणा भी की है| 10 लाख तक नकद मुआवजे के साथ ही अरविंद केजरीवाल ने बीमा कंपनियों से क्लेम दिलाने में मदद का भी भरोसा भी दिलाया है|

आंतरिक सर्वे में पता चला है कि दिल्ली के लोग ताजा हिंसा और उपद्रव की तुलना 1984 के सिख दंगों करने लगे हैं, जब पूरी दिल्ली में सिखों को खोज खोज कर दंगाइयों ने निशाना बनाया था| 84 दंगों का जिक्र तब शुरू हुआ जब सोनिया गांधी ने हिंसा रोक पाने में नाकामी के लिए गृह मंत्री अमित शाह का इस्तीफा मांगा और फिर राष्ट्रपति से उन्हें पद से हटाने को लेकर ज्ञापन भी दे डाला| ‘आप के एक पदाधिकारी के हवाले से अखबार लिखता है, ‘हमने भरोसा खो दिया है| ज्यादातर लोग हमे अप्रभावी और अवसरवादी मानने लगे हैं. ये हालत इसलिए हुई क्योंकि हम बैठे रह गये और पूरा मौका भाजपा के हवाले कर दिया |देखा जाये तो अरविंद केजरीवाल को लेकर दिल्लीवालों की ये धारणा यूं ही नहीं बनी है |असल बात तो ये है कि जो बात भाजपा केजरीवाल के बारे में लोगों को समझाने की कोशिश कर रही थी| आप नेता ने खुद को बिलकुल उसी पैमाने पर अपनी दूरी बनाए रखी |हो सकता है अरविंद केजरीवाल को लगा हो कि कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी तो दिल्ली पुलिस पर आएगी और वो केंद्र सरकार में अमित शाह को रिपोर्ट करती है, दिल्ली सरकार साफ बच जाएगी| अरविंद केजरीवाल ये सोच कर बैठे रहे कि सारे सवाल तो अमित शाह पर उठेंगे और उनकी सरकार साफ बच जाएगी. जब मामला शांत होगा तो थोड़ा बहुत मौका मुआयना कर लेंगे | अस्पतालों में जाकर लोगों से मुलाकात कर लेंगे | मीडिया और सोशल मीडिया के जरिये तस्वीरें और बयान तो लोगों तक पहुंच ही जाएंगे| मगर, कोई भी हो सोचे समझे अनुसार घटनाएं होती कब हैं|

जगह जगह आग लगाते जान लेने पर उतारू दंगाइयों की भीड़ से घिरे लोग घरों में इंतजार करते रहे , और मुख्यमंत्री सरकारी आवास में बैठे सही मौके का इंतजार करते रहे कि कब लोहा गर्म हो और वार करें| किया भी लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. दिल्ली के लोग अपने दुलरुवा बेटे के इरादे भांप चुके थे | बेटा उनके बीच गया जरूर लेकिन तब जब सब कुछ लुट चुका था| अरविंद केजरीवाल पर मतलब निकल जाने पर मुंह मोड़ लेने के आरोप पहले भी लगते रहे हैं. आर टी आई की लड़ाई में अरविंद केजरीवाल के साथ रहे लोगों की भी वही धारणा है, जैसी योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, कुमार विश्वास या जैसा अब दिल्ली के लोग महसूस कर रहे हैं | अब लोगों का मानना है कि चुनाव बाद अरविंद केजरीवाल बिलकुल बदल गए हैं|

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