

कालाधन और उसकी वापिसी की कहानियाँ अपनी जगह है, ख्वाब जैसे है पर हकीकत दूसरी है | भारत से कालेधन उत्सर्जन और जावक अभी भी तेज है जिस पर किसी प्रकार का कोई अंकुश नहीं लग पा रहा है |भारत दुनिया का वो तीसरा बड़ा देश है जहाँ से कालाधन लगातार विदेश जा रहा है | सरकार के जुमले हवा में ही हैं | गैरकानूनी तरीके से बिना समुचित कर चुकाये होनेवाले लेन-देन पर नजर रखनेवाली संस्था ग्लोबल फाइनेंशियल इंटेग्रिटी ने अपनी ताजा रिपोर्ट में बताया है कि २०१७ में भारत से ८३.५ अरब डॉलर रुपये व्यापारिक भुगतान के तरीकों के इस्तेमाल से बाहर भेजे गये हैं| इस संस्था ने १३५ देशों का आकलन प्रस्तुत किया है और चीन व मेक्सिको के बाद कालाधन की निकासी के मामले में भारत तीसरे पायदान पर है|


चुनाव और चुनाव से इतर कई वर्षों से काले धन की समस्या हमारे देश में बहस का मुख्य मुद्दा रही है तथा सरकारों व अदालतों के स्तर पर इसे रोकने के कई उपाय भी किये गये हैं, लेकिन इस रिपोर्ट से जाहिर होता है कि ये उपाय समुचित रूप से कारगर साबित नहीं हो रहे हैं| चिंता का एक बड़ा कारण यह भी है कि २०१७ में ८३.५ अरब डॉलर और २००८ से २०१७ के बीच औसतन हर साल ७७.९ अरब डॉलर की राशि देश के बाहर आयात-निर्यात की गलत या फर्जी रसीदों के जरिये गयी है| इस कालखंड में ही काले धन की वापिसी को लेकर जोरदार बातें और दावे भी हुए, लेकिन नतीजा यह हुआ कि “मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों हमने दवा की |”


देखा जाये तो फर्जी रसीद का मामला बेहद गंभीर है| इसमें आयातक या निर्यातक जान-बूझकर वस्तुओं की मात्रा या संख्या और उनके दाम गलत बताते हैं तथा व्यापारिक रास्ते का इस्तेमाल कर धन की हेराफेरी करते हैं| सबसे अधिक गड़बड़ी इलेक्ट्रिकल मशीनरी, खनिज ईंधन और मशीनों की खरीद में की जाती है| उल्लेखनीय है कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं में इनकी खरीद अधिक होती है| सरकार न जाने क्यों ध्यान नहीं रखती जबकि सब जानते हैं कि यह काले धन की हेराफेरी का एक बड़ा रास्ता है|




जैसे इन दिनों निकाला हुआ है |
