दुनिया के दुष्काल की गहरी छाया इन दिनों भारत पर है | भारत में सारी समस्या मतभेद में छिपी है, और जब ये मतभेद राजनीति के साथ मिलते हैं, तो देश पीछे हो जाता है | राजनीतिक कोशिशें हो रही हैं,पर दिल से नहीं | दिल से कोशिश कीजिये, सारी समस्याएं “अहं” और “वहम” में छिपी है | यह बिना मांगी सलाह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राहुल गाँधी से लेकर देश की छोटे-बड़े सारे राजनीतिक दलों के साथ आम नागरिकों तक के लिए है | कोरोना का जो सच है, सामने दिख रहा है | इस ग्रहण का मोक्ष अगले कुछ महीनों में होगा, पर उसके दुष्प्रभाव देश और देश के नागरिक कई साल तक भोंगेगे |भारतवासियों को इससे मुक्त होना है तो सबसे पहले अपने “अहं” को तिलांजली दे और इस “वहम” को त्यागें कि सामने खड़ा व्यक्ति आपे कम समझदार या कम देशभक्त है |

भारतीय समाज में राजनीति ने इस तरह की कई दीवारें खड़ी कर रखी है, जिससे ‘मैं’ और ‘मेरा, आगे हो गया है, ‘देश’ नेपथ्य में चला गया है | याद रखिये, हम पहले भारतवासी हैं फिर कुछ और | भारत की आन बान शान और संविधान पहले है | हम और हमारा सम्मान देश के बाद है | देश है तो हम हैं, देश नहीं तो कुछ भी नहीं | देश में इस संकटकाल में बाज़ार के दो चेहरे सामने आये हैं, एक अजीम प्रेमजी और रतन टाटा का है दूसरा उस खुदगर्ज़ बाज़ार का जिसने इस दुष्काल में भी गरीब से रोटी और नमक की कीमत मूल्य से कई गुना ज्यादा वसूली है | राजनीति ने चंदे बटोरे हैं, गरीबों के नाम पर, ‘मुफ्त रोटी’ के नाम पर ‘निवाले’ तक मजबूर लोगों को नहीं मिले | राजनीति के इस खेल में आम भारत जागा | अपनी रोटी में से हिस्सा और मजबूर लाशों के साथ ‘कांधा’ बांटा, इस तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है | जिसने देश से आगे खुद को रखा, उन जीवनदानियों पर हमला बोला जो दुष्काल के योद्धा हैं |

इस संकट में सबसे पहली प्राथमिकता ‘टेस्टिंग’ है |ज्यादा से ज्यादा टेस्ट होने पर ही इस बीमारी पर कुछ हद तक काबू पाया जा सकता है। वायरस से लड़ने के लिए हमें राज्य और जिला स्तर पर काम करने की जरूरत है।सरकारी गोदामों में अनाज भरा पड़ा है, लेकिन वह गरीबों के घर तक नहीं पहुंच रहा है। दो समय खाना एक बड़ी समस्या है, इस पर सबको ध्यान देना चाहिए।खुद के साथ पडौस में खड़े आदमी की ओर भी देखें |
देश एक गंभीर स्थिति में हैं। इस दुष्काल से लड़ने के लिए सारे देश को एक होना पड़ेगा। लॉकडाउन के बाद की रणनीति पर फोकस करना चाहिए। हम देश के लिए क्या कर सकते हैं, सोचिये | कैसे मेडिकल व्यवस्था सबको सुलभ हो ? कैसे अस्पताल की सुविधाओं में इजाफा हो ? हमने देश से बहुत कुछ लिया है अब थोडा देना भी सीखें | शायद भारत दुनिया का इकलौता देश है, \जिसमे प्रवासी मजदूर लॉकडाउन की समस्या भोग रहे हैं, बाज़ार गाँव से आये मजदूरों से मनमाना बर्ताव करता रहा है और अब उन्हें स्वाबलंबी और समर्थ नहीं देखना चाहता |सरकार की योजना बाज़ार को रास नहीं आ रही बाज़ार को सस्ते मजदूर चाहिए| यह स्वार्थ छोड़ना होगा | दो दिन बाद २० अप्रैल से आंशिक तौर पर लॉकडाउन खोलने की तैयारी हो रही है। अगर यह सही ढंग से ऐसा नहीं हुआ तो फिर से लॉकडाउन करने की नौबत आ जाएगी।

हम भारतीय है, हमने हमेशा मुश्किलों से लोहा लिया है | हमे डरने की जरूरत नहीं है। हम एकजुट होकर इस बीमारी को एकजुट होकर हरा देंगे । बस हमें बंटना नहीं है, एक होकर लड़ाई लड़ना है | ‘अहं’ और ‘वहम’ को छोड़कर |