

– बार काउंसिल ऑफ राजस्थान द्वारा Covid-19 के चलते लोक डाउन के कारण आर्थिक तंगी से जूझ रहे जरूरतमंद अधिवक्ताओं को वित्तीय सहायता देने के लिए बनाई स्कीम की नियम शर्तां में असंगतता, अजमेर के बाद अब बीकानेर के अधिवक्ताओं ने विरोध किया
बीकानेर – 29 अप्रैल।
बार काउंसिल ऑफ राजस्थान द्वारा Covid-19 के चलते लोक डाउन के कारण आर्थिक तंगी से जूझ रहे जरूरतमंद अधिवक्ताओं के लिए वित्तीय सहायता हेतु जो स्कीम बनाई है उसकी नियम शर्तां में असंगतता का अजमेर के बाद अब बीकानेर के अधिवक्ताओं ने विरोध किया है। बार एसोसिएशन, बीकानेर के अध्यक्ष अजय कुमार पुरोहित ने बताया कि अधिवक्ताओं में बनाई गई सहायता योजना के कई असंगत नियमों सहित अन्य बिंदुओं और मुद्दों को लेकर रोष व्याप्त है । योजना के तहत तय किए जाने वाले बिंदुओं में प्रमुखतया 1. अधिवक्ताओं का वर्गीकरण करना उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाना है।


2. रूपये 5000/- मात्र की सहायता राशि ऊँट के मुंह में जीरे जैसा है। जबकि अधिवक्ता लगातार 21 मार्च से बेरोजगार है। यह राशि कम से कम रूपए 10000/- रूपये किये जाने का निवेदन करते हैं।
3.हजारों अधिवक्ताओं के मध्य से मात्र 30 अधिवक्ताओं को चयनित करना बाकी जरूरतमंद अधिवक्ताओं के साथ अन्याय होगा।
4.निष्पक्ष रूप से ईमानदारीपूर्वक मात्र 30 जरूरतमंद अधिवक्ताओं को चयनित किया जाना संभव नहीं है। यह अधिवक्ताओं की गरिमा के विरूद्ध है और एकता की परिपाटी के खिलाफ।


5.इस समय जबकि अधिवक्ता लॉक डाउन के कारण न्यायालय में नहीं आ रहे हैं, तो सभी अधिवक्ताओं तक आप द्वारा प्रेषित स्कीम की सूचना पहुंचना भी संभव नहीं है, जिसके अभाव में सभी जरूरतमंद अधिवक्ता फॉर्म भरकर जमा नहीं करवा पाएंगे। जो कि उनके साथ अन्याय करने जैसा होगा।
6.उक्त सहायता राशि सिर्फ बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा दी गई राशि के अन्तर्गत जारी किया गया है, जबकि अधिवक्ताओं द्वारा जमा करवाया गया करोड़ों रूपया बार काउंसिल ऑफ राजस्थान के वेलफेयर फंड में जमा है, बावजूद इसके इतनी कम राशि, इतने कम अधिवक्ताओं को चयनित कर देना उनके साथ अन्याय होगा। ऐसे नाजुक समय में संरक्षक की भूमिका निभाते हुए बार काउंसिल ऑफ राजस्थान की वेलफेयर फंड से जरूरतमंद अधिवक्ताओं की भरपूर सहायता करनी चाहिए। ताकि जरूरतमंद अधिवक्ताओं की संख्या तथा सहायता राशि का दायरा बढ़ाया जा सके।
7.बार काउंसिल ऑफ राजस्थान द्वारा उक्त सहायता प्राप्त करने हेतु किए जाने वाले आवेदन हेतु बनाए गए नियम अप्रासंगिक हैं। इन पर दोबारा विचार विमर्श किया जाना चाहिए।
8.मात्र 30 अधिवक्ताओं की छंटनी कर बाकी अधिवक्ता भाईयों बहनों के साथ अन्याय है।
