हरप्रकाश मुंजाल,

अलवर । कोरोना महामारी से पहले ओलावृष्टि ने प्रदेश के किसानों की कमर तोडी, बची खुची कोरोना के भेंट चढ़ गई ।थोड़ी बहुत जो उम्मीदो की किरण थी वो मंडी में हड़ताल ने पूरी कर दी अब किसान ठन ठन गोपाल हो गया । प्रदेश का किसान त्राहिमान है । पर उसको सुनने वाला कोइ नहीं हैं ।

इस बार किसानों की फसल का समर्थन मूल्य पर भी खरीद नही हो रही है । इन्हें मजबूर होकर घर खर्च चलाने व अगली फसल बुवाई के लिए ओने पोन दाम पर बेचनी पड़ रही है । अधिकांश किसान बिजली के बिल भी नहीं चुका पा रहे हैं और साथ मे सहकारी समितियों के ऋण चुकाने में भी असमर्थ हो रहे हैं । इस तरह किसान राहत के लिए फड़फड़ा रहा है । उसे मोटी राहत की दरकार हैं

बहुतेरे किसानों के वर्षों से बिजली कनेक्शन कटे हुए हैं क्योंकि बारिश के अभाव में कुएं सूख गए और धन के अभाव में नया बोरिंग करा नहीं पाए । लेनिन विधुत विभाग ने अपना मीटर जारी रखा जिसका परिणाम यह रहा कि किसानों पर हजारों रुपये बिल के रूप में लंबित हो गए । बिल की राशि ना चुकाने की एवज में किसानों को इसकी कीमत भी अदा करनी पड़ी है । बरसो से चले आ रहे कनेक्शन मिनट काट दिए और ट्रांसफार्मर, विधुत पोल सब उखाड़ लिए । अब वो सिंचाई के लिये मोहताज है ।सम्पन्न जमीदारों से महंगे दामो पर पानी खरीद कर अपनी फसल की सिंचाई करने पर मजबूर हैं ।

जैसा कि कोरोना के चलते किसानों के बेटों को नोकरी से भी हाथ धोना पड़ा है, अब उनके सामने खेती करने के अलावा और कोई विकल्प बचा नही हैं ऐसे में केंद्र और राज्य सरकार इन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने के लिये राहत पैकेज का एलान करना चाहिए । इन्हें नए बोरिंग के लिए लोन की व्यवस्था करनी चाहिए । साथ मे बिजली के बिलों की माफ् कर पुनः विधुत सम्बंद जोड़न