जयपुर।राजस्थान के सियासी घटनाक्रम से जुड़ी हर चीज और हर पहेली आपको सरल तरीके से बताता हूं जो आप सबकुछ जानना चाहते हो–अब सारी कहानी 19 बागी विधायकों की सदस्यता पर टिकी हुई है। अगर उनकी सदस्यता समाप्त हो गई तो सारा खेल ही खत्म। कैसे? समझिए…क्योंकि सदस्यता खत्म मतलब वो विधायक ही नहीं रहेंगे। अगर नहीं रहेंगे तो विधानसभा की टोटल सीटों की संख्या फिर हो जाएगी 200 से 181..फिर बहुमत के लिए चाहिए होंगे 92 विधायक यानी सीएम गहलोत कैम्प और मजबूत हो जाएगा। अब लोग तर्क दे रहे हैं सचिन पायलट भाजपा जॉइन नहीं करेंगे यह बड़ी खबर आपके व हमारे लिए हो सकती है. परन्तु मीडिया और संविधान एक्सपर्ट के लिए नहीं, क्योंकि पायलट खेमा बाहर हाथ खड़े करकर भाजपा के साथ जा सकते हैं. अगर भाजपा की सदस्यता लेते हैं और जॉइन करते ही कानूनन विधायक नहीं रहेंगे। इसलिए वो मूर्खता क्यों करेंगे भला ? दल बदल कानून के तहत अब दो तिहाई यानी पायलट 64 कांग्रेस के विधायकों के साथ भाजपा जॉइन करते तभी विधायकी जाने से बचती। लेकिन इतने विधायक पायलट के पास नहीं है। अगर होते तो कभी के मुख्यमंत्री बन गए होते। अब आप सोचेंगे उसने भाजपा जॉइन नहीं की तो सदस्यता कैसे खतरे में आएगी? दरअसल अब कानून के तहत बिना जॉइन किए भी सत्ता विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने पर सदस्यता जा सकती है। उदाहरण के तौर पर राज्यसभा सांसद शरद यादव थे तो उन्होंने कोई पार्टी जॉइन नहीं कि थी पर नीतीश सरकार के खिलाफ गतिविधि साबित होने पर राज्यसभा से रवाना होना पड़ा था। ऐसा ही हश्र इनका हो सकता है। लेकिन इसके लिए गहलोत कैम्प को सत्ता विरोधी गतिविधि साबित तथ्यों सहित कोर्ट में प्रस्तुत करनी होगी। इसीलिए SOG FIR, ऑडियो वायरल और कई चीजे सबूतों के तौर पर सामने लायी गई है । लेकिन देश के बड़े एडवोकेट मुकुल रोहतगी और हरीश साल्वे के आने के बाद अब सदस्यता समाप्त करना आसान नहीं होगा।अतः अब कोर्ट और स्पीकर के फैसले से ही यह तस्वीर साफ होगी। जिसके लिए शुक्रवार 24 जुलाई तक इंतजार करना ही होगा। लेकिन अगर सदस्यता समाप्त नहीं कि तो फिर खेल हो सकता है और फिर तो क्या होगा वो तो हालात ही साफ करेंगे। वहीं अभी पायलट कैम्प ने सिर्फ नोटिस देने की प्रक्रिया को कोर्ट में चैलेंज दिया है कि 7 दिन के बजाय 3 दिन का क्यों दिया। ऐसे में मंगलवार को यह 7 दिन वाली शर्त भी पूरी हो गयी । वैसे नोटिस देना स्पीकर के अधिकार में आता है और अदालत उसमें अतिक्रमण नहीं कर सकती। ऐसे में सदस्यता समाप्त करने पर पायलट गुट को शायद फिर अदालत अलग से जाना होगा। वहां राहत मिल जाएगी तो ठीक, नहीं तो फिर सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे खुले रहेंगे। उधर कांग्रेस उनको निलंबित कर सकती है, निष्कासित नहीं कर सकती इससे उनकी सदस्यता बचने के आसार ज्यादा हो जाएंगे। इसलिए निष्कासन का गहलोत कैम्प बिल्कुल रिस्क नहीं लेगा। अब किसके पास कितने विधायक है वो बताता हूं…
पायलट कैम्प
बागी-19 , निर्दलीय तीन हुड़ला,जोजावर और सुरेश टांक
टोटल-22 विधायक
गहलोत कैम्प-
स्पीकर सीपी जोशी और मास्टर भंवरलाल मेघवाल सहित 88
अब बताते है कि स्पीकर आंकड़ा बराबर होने पर ही वोट डाल सकते हैं। वहीं मेघवाल तबियत नासाज़ होने के चलते वोट डाल सकते है या नहीं इस पर संशय बरकरार है।
बीटीपी 2 + माकपा 2+निर्दलीय 10+ आर अल डी 1 सुभाष गर्ग
टोटल 103 हुए अब इसमें बढ़कर दावे के तहत आंकड़ा बढ़कर प्लस ही होंगे। अभी सरकार के पास आज के दिन 101 बहुमत के आंकड़े से ज्यादा विधायक है और अशोक गहलोत इसकी सूचि भी राज्यपाल को दे चुके हैं. पायलट के पास 41विधायक होते तो शायद कुछ खेल हो सकता था।
अब फ्लोर टेस्ट की बात करते हैं। इसके लिए पहले राजभवन को भाजपा या पायलट गुट को लिखित में मांग करनी होगी। भाजपा अल्पमत का दावा मीडिया में कर रही है पर राजभवन जाकर क्यों नहीं कर रही यह अब समझ गए होंगे आप। पायलट गुट सदस्यता समाप्त कर देंगे तो फ्लोर टेस्ट की मांग करने के लायक ही नहीं रहेंगे। ऐसे में सरकार सदस्यता समाप्त करते हुए तुरंत फ्लोर टेस्ट कराते हुए 92 का बहुमत साबित पर जा सकती है। तमाम संवैधानिक और लीगल एक्सपर्ट के तहत माने तो अभी सरकार फिलहाल सुरक्षित है। यह महज एक आंकलन है वह भी लिखते हुए समय तक, उसके बाद अदालत क्या करती है सब भविष्य के गर्भ में है। सियासत में वैसे भी कोई स्थाई और अस्थाई या सम्भव-असम्भव नहीं होता सिर्फ आपकी खुराक के लिए लिखा है और मेरा कोई किसी से मतलब भी नहीं है.
अब लास्ट में सबसे बिग कानूनी जानकारी….
दलबदल कानून में 1985 में एक अमेंडमेंट हुआ जिसके बाद इस कानून को और कठोर बना दिया गया। फिर इसमें 2 से 3 चीजे और जोड़ दी गई। ये बागी विधायक शेड्यूल 10 के तहत 2 1A में गिविंग अप के दायरे में आ गए यानी जिस सिंबल व पार्टी से चुनाव जीते उसके खिलाफ पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने के आरोप में फंस गए। ऐसे में अब सदस्यता जाना तय है। सदस्यता समाप्त होने पर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिलेगी। बस इतनी राहत मिल सकती है कि ये 6 साल के लिए चुनाव लड़ने के लिए डिसक्वालीफाई नहीं होंगे। ऐसे में अब तय है कि राजस्थान में अब इन 19 सीटों पर उपचुनाव होने फिर तय है। लिहाजा इन सबसे बचने के लिए फ्रीडम ऑफ स्पीच के तर्क दिए गए लेकिन ये तर्क बेहद कमजोर है।1992 में नार्थ इंडिया के एक राज्य से जुड़े प्रकरण में बाकायदा सुप्रीम कोर्ट रूलिंग भी दे चुका है। एक बड़ी गलती पायलट कैम्प ने सरकार को अल्पमत में बताकर खुद सरकार गिराने का महासबूत दे डाला। सबूत के तौर पर बाकायदा मीडिया व्हाट्सएप्प ग्रुप का इंग्लिश में किए गए दावे के स्क्रीनशॉट कोर्ट में पेश किया गया है। तो सरकार एकदम 100 प्रतिशत सुरक्षित है। वहीं अस्पताल में एडमिट मंत्री मेघवाल वोट देने की स्थिति में नहीं रहे तो सीटों की संख्या 200 से घटकर 199 हो जाएगी फिर………. ? (दिनेश डांगी )