– प्रतिदिन। -राकेश दुबे

केन्द्रीय कर्मचारियों को बोनस देने के फैसले के बाद, सुना है केंद्र सरकार अब ईमानदारी से ऋण चुकाने वालों और छोटे कर्जदारों को दीपावली से पहले कुछ उपहार देने जा रही है।ऐसे संकेत हैं कि दुष्काल कोविड-१९ के कारण लागू मोरेटोरियम के दौरान जिन ऋणधारकों ने अपनी ईएमआई किस्तों का ईमानदारी से भुगतान किया है, उन सभी को दीपावली के पहले कुछ विशेष वित्तीय लाभ दिए जाएंगे।ऐसे ही २ नवंबर से पहले चक्रवृद्धि ब्याज माफी का लाभ छोटे कर्जदारों को देने की योजना है, तो दूसरी ओर, बैंकों को भी अपने बही-खातों में कर्ज संबंधी अतिरिक्त प्रावधानों को आगे बढ़ाने के संकेत मिल रहे हैं है। आम तौर पर कर्ज न चुकाने वालों को ही रियायत देने के बारे में सोचा जाता है, लेकिन ऋण चुका रहे लोग भुला दिए जाते हैं।अगर मिले संकेत कारगर हुए तो यह एक नई और स्वस्थ परम्परा होगी ।वैसे कर्मचारियों को बोनस देने पर ३७३७ करोड़ रुपए का खर्च आएगा। बोनस का भुगतान कर्मचारियों के बैंक खातों में किया जाएगा।
इस दुष्काल में, जब मोरेटोरियम यानी ऋण स्थगन को अपनाने वाले कर्जधारकों को लाभ दिया जा रहा है, तो जिन कर्जधारकों ने ऋण स्थगन को नहीं अपनाया है, उन्हें भी ईमानदारीपूर्वक नियमित ऋण भुगतान केबदले में लाभ अवश्य मिलना चाहिए। ये लाभ ऐसे होने चाहिए, जिसका सबको असर या फायदा दिखे। विशेषज्ञ मान रहे हैं कि एक-दो किस्त की माफी से इस प्रोत्साहन को ज्यादा बल नहीं मिलने वाला। प्रोत्साहन ऐसा होना चाहिए कि उसका तात्कालिक असर हो और देश में ईमानदारी से ऋण चुकाने वालों की तादाद बढ़े। ऋण क्षेत्र में ईमानदारी के साथ ही केंद्र सरकार को कर भुगतान के क्षेत्र में भी ईमानदारी को प्रोत्साहित करने की कोशिश करनी चाहिए।

वैसे इस सरकार द्वारा ईमानदार करदाताओं के साथ न्यायसंगतता के लिए कुछ कदम उठाए गए हैं, लेकिन इन कदमों का प्रचार होना भी जरूरी है। नवीनतम कानूनों ने कर-प्रणाली में कानूनी बोझ को कम कर दिया है। ‘विवाद से विश्वास’ योजना जैसी पहल ने अधिकांश मामलों को अदालत से बाहर निपटाने का मार्ग प्रशस्त किया है, कर स्लैब को भी मौजूदा सुधारों के एक हिस्से के रूप में युक्तिसंगत बनाया गया है, लेकिन अभी भी करदाताओं के पक्ष में ईमानदार पहल की जरूरत है।
सब जानते हैं, भारत दुनिया के सबसे कम कॉरपोरेट टैक्स वाले देशों में से एक है। उल्लेखनीय यह भी है कि पिछले छह वर्षों में आयकर जांच के मामलों में कोई चार गुना कमी आई है। यह करदाताओं पर सरकार के भरोसे का प्रतिबिंब है। वर्ष २०१२-१३ में जांच की संख्या ०.९४ प्रतिशत थी, जो घटकर २०१८-१९ में ०.२६ प्रतिशत तक आ गई है। यह भी जीएसटी से देश में पारदर्शी व्यापारिक व्यवस्था का निर्माण हो रहा है तथा उद्योग-कारोबार जगत के सुझावों से इसमें लगातार सुधार भी किए जा रहे हैं। इसका बड़ा लाभ देश के ईमानदार कारोबारियों को मिल रहा है।

ईमानदार करदाताओं के सन्दर्भ में कुछ बातों पर ध्यान देना जरूरी है। यह पाया गया है कि बहुत सारे लोगों द्वारा अच्छी आमदनी के बावजूद आयकर का भुगतान नहीं किया जाता है। ऐसे में, उनके कर नहीं देने का भार ईमानदार करदाताओं पर पड़ता है। देश की १३० करोड़ की आबादी में से सिर्फ १.५ करोड़ लोग ही टैक्स देते हैं, यह संख्या बहुत कम है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि वेतनभोगी लोगों द्वारा दिया जाने वाला आयकर व्यक्तिगत कारोबारी करदाताओं द्वारा चुकाए गए आयकर का करीब तीन गुना होता है।
वेतनभोगी वर्ग नियमानुसार अपने वेतन पर आयकर चुकाता है और आमदनी को कम बताने की गुंजाइश नगण्य होती है। ऐसे में, वेतनभोगी वर्ग के लाखों आयकरदाता यह कहते दिखाई देते हैं कि वे तो अपनी आमदनी पर ईमानदारी से आयकर का भुगतान कर रहे हैं, लेकिन अब उन लोगों पर भी सख्ती जरूर की जानी चाहिए, जो अच्छी कमाई के बाद भी टैक्स नहीं दे रहे या फिर हेराफेरी करके कम टैक्स दे रहे हैं। यदि सरकार उपयुक्त रूप से करदाताओं की संख्या बढ़ाएगी, तो इसका लाभ अधिक कर बोझ का सामना कर रहे ईमानदार करदाताओं को अवश्य मिल पाएगा।
आयकर विभाग के ऑनलाइन सिस्टम को बहुत सरल व मजबूत बनाना होगा। हर स्तर पर ईमानदार करदाताओं को कर चुकाने में सुविधा देने के साथ-साथ सम्मान भी देना होगा। टैक्स सरलीकरण से भी ईमानदारी बढ़ेगी। जहां देश के ईमानदार करदाता लाभान्वित होंगे, वहीं इससे देश की अर्थव्यवस्था भी गतिशील होगी।