ज्ञात रहे, विगत दिनों सचिन पायलट और उनके समर्थकों की नाराजगी, को दूर करने के लिए हाईकमान ने पहला कदम राजस्थान के प्रभारी को बदल कर उठाया था । अविनाश पांडे को हटाकर हाईकमान ने यह दायित्व अजय माकन को दिया था।
सचिन पायलट खेमा इस बदलाव को अपनी सबसे बड़ी जीत के रूप में देख रहा था, क्या यह बदलाव राजस्थान की राजनीति में सचिन पायलट और उनके समर्थकों के लिए अच्छी खबर देगा ? राजस्थान के प्रभारी अजय माकन ने अपनी नियुक्ति होने के बाद राजस्थान मैं सरकार और पार्टी दोनों को समझने में इतना समय लगा दिया ।अब शायद वह सत्ता और संगठन दोनों को समझ कर हाईकमान को समझाएंगे की राजस्थान मैं सत्ता और संगठन क्या चाहता है, गत दिनों राजस्थान और दिल्ली में राजस्थान को लेकर हलचल भी होती दिखाई दी और उसी हलचल की वजह से अटकलें सुनाई देने लगी की प्रदेश में राजनीतिक नियुक्तियां और मंत्रिमंडल का पुनर्गठन जल्द ही होगा ।
केसी वेणुगोपाल कांग्रेस के संगठन महामंत्री हैं, केसी वेणुगोपाल के पहले यह पद अशोक गहलोत के पास था लेकिन अशोक गहलोत के राजस्थान का मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने संगठन महामंत्री का पद छोड़ दिया था ।
राजस्थान में जब कांग्रेस सरकार बनाने की स्थिति में आई तब विधायक दल की बैठक में केसी वेणुगोपाल की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बने थे, अशोक गहलोत ने केसी वेणुगोपाल को राजस्थान से राज्यसभा में पहुंचाया, जबकि राजस्थान के प्रभारी महामंत्री अविनाश पांडे इंतजार कर रहे थे कि वह राजस्थान से राज्यसभा में जाएंगे लेकिन केसी वेणुगोपाल राज्यसभा पहुंचे ।
ऐसे में लगता है कि अभी भी दिल्ली में अशोक गहलोत कमजोर नहीं है जितना कमजोर राजनीतिक पंडित गहलोत को समझ रहे है, इतने कमजोर गहलोत नहीं हैं ।
बात राजस्थान की सियासत और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को चुनौती की हो रही है तो राजनीतिक पंडित इसे नहीं भूले होंगे की, एक वक्त ऐसा भी था जब, बड़े बड़े कद्दावर नेताओं की मौजूदगी के बाद भी कॉन्ग्रेस प्रदेश में सत्ता से बाहर थी, उस समय अशोक गहलोत प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने और लंबे अंतराल के बाद कांग्रेस प्रदेश की सत्ता पर कायम हुई और अशोक गहलोत राज्य के पहली बार मुख्यमंत्री बने, गहलोत के सामने इस दौर में अनेक बड़ी चुनौतियां थी जिसमें कांग्रेस के अंदर कद्दावर नेताओं की भरमार थी वही केंद्र में कांग्रेस की सत्ता नहीं थी, और विपक्ष के रूप में भैरों सिंह शेखावत जैसे नेता थे।
कांग्रेस के भीतर पंडित नवल किशोर शर्मा, शिवचरण माथुर हरिदेव जोशी हीरालाल देवपुरा, परसराम मदेरणा रामनिवास मिर्धा राजेश पायलट राम चौधरी गिरजा व्यास जैसे नेता मौजूद थे यही नहीं 4 नेता तो ऐसे थे जो पूर्व में मुख्यमंत्री रहे थे !
उस समय भी गहलोत के सामने प्रचंड बहुमत होने के बाद भी बड़ी चुनौती थी, लेकिन वह समय अलग था और यह समय अलग है उस समय कांग्रेस के नेता पार्टी हाईकमान की हैसियत और अहमियत दोनों को अच्छे से समझते थे, और अपने और कॉन्ग्रेस के भविष्य को भी समझते थे।
गहलोत ने मुख्यमंत्री के रूप में एक मिसाल भी कायम की जब वह पहली बार मुख्यमंत्री बने तब उन्होंने एक भी मंत्रालय अपने पास नहीं रखा ! वरिष्ठ और कद्दावर नेताओं की एक लंबी कतार थी जो राज्य सरकार में मंत्री बनने की काबिलियत रखते थे लेकिन गहलोत के पास संवैधानिक रूप से सीमित अवसर थे, सीमित अवसर होने के बाद भी उन्होंने उस समय के करता और नेताओं को संतुष्ट किया, और अपने शासन के 5 साल पूरे किए ।
बात प्रभारी अजय माखन की नियुक्ति नियुक्ति के बाद उनका दौरा और दौरे के बाद सत्ता और संगठन के बीच तालमेल बिठाने की हो रही है ।
मौजूदा वक्त में प्रदेश कांग्रेस के अंदर संकट संगठन को लेकर नहीं है बल्कि संकट सत्ता को लेकर, सरकार बनने के पहले दिन से सचिन पायलट नाराज हैं उनकी नाराजगी बड़े स्तर तक भी पहुंची है लेकिन हाईकमान के दखल के बाद जनता के बीच यह संदेश देने की कोशिश की गई कि सचिन पायलट नाराज नहीं है, लेकिन उनकी नाराजगी जाहिर तो नहीं हो रही लेकिन महसूस की जा सकती है।
सचिन पायलट की परेशानी और नाराजगी शायद यह है कि पायलट ने प्रदेश कांग्रेश का अध्यक्ष रहते हुए कांग्रेस को राज्य में सत्ता में लाने के लिए पहले संघर्ष किया और कांग्रेस जब सत्ता में आई तब पायलट में मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए संघर्ष किया लेकिन उनके हाथ उपमुख्यमंत्री का पद मिला जिस पर वह ज्यादा दिन नहीं रह पाए और सचिन पायलट के हाथ से प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री का पद भी चला गया, परेशानी और चिंता पायलट के सामने यह भी है कि, गत दिनों पायलट ने अपने ऊपर कांग्रेस से बगावत करने का तमगा भी लगाया, और अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री का पद भी छोड़ा बदले में उन्हें अभी तक कुछ नहीं मिला, इस की कसक पायलट से ज्यादा उनके समर्थकों में साफ दिखाई दे रही है, पायलट के ऊपर अब उनके समर्थकों का दबाव बनता जा रहा है समर्थकों का दबाव पायलट के लिए बड़ी चुनौती है चुनौती यह है कि वह सत्ता में अपने समर्थकों की जल्द से जल्द वापसी कराएं , यही वजह एक बार राजनीतिक नियुक्तियों और मंत्रिमंडल पुनर्गठन की चर्चा होने लगी, यह काम कब होगा यह अभी स्पष्ट नहीं है, राज्य में विधानसभा की 3 सीटों पर उपचुनाव भी होने हैं यह चुनाव कब होंगे चुनाव आयोग इस पर विचार कर रहा होगा क्या यह चुनाव पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव के साथ होंगे, इन उप चुनावों से पहले राजनीतिक नियुक्तियों और मंत्रिमंडल का पुनर्गठन होना एक सवाल है जिसका इंतजार कीजिए।
देवेंद्र यादव
कोटा राजस्थान-