पांच राज्यों में चुनाव की घोषणा और कांग्रेस के बागी नेताओं के नए तेवर कांग्रेस पार्टी के लिए नई चुनौतियां पैदा कर रहे हैं। प. बंगाल, असम, पुदुचेरी, तमिलनाडु और केरल— इन पांच राज्यों में से अगर किसी एक राज्य में भी कांग्रेस जीत जाए तो उसे मां-बेटा नेतृत्व की बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी। केरल और पुदुचेरी में कांग्रेस अपने विरोधियों को तगड़ी टक्कर दे सकती है, इसमें शक नहीं है। वह भी इसलिए कि इन दोनों राज्यों में कांग्रेस का स्थानीय नेतृत्व ज़रा प्रभावशाली है। प्रभाव उनका ही होगा लेकिन उसका श्रेय मां-बेटा नेतृत्व को ही मिलेगा और यदि पांचों राज्यों में कांग्रेस बुरी तरह से पिट गई तो माँ-बेटा नेतृत्व के खिलाफ कांग्रेस में जबर्दस्त लहर उठ खड़ी होगी। उसके संकेत अभी से मिलने लग गए हैं। जिन 23 वरिष्ठ नेताओं ने कांग्रेस की दुर्दशा पर पुनर्विचार करने की गुहार पहले लगाई थी, वे अब पहले जम्मू में और फिर कुरूक्षेत्र में बड़े आयोजन करनेवाले हैं। जम्मू का आयोजन गुलाम नबी आजाद के सम्मान में किया जा रहा है, क्योंकि मां-बेटा नेतृत्व ने उन्हें राज्यसभा के पार्टी-नेतृत्व से विदा कर दिया है। गुलाम नबी की तारीफ में भाजपा ने प्रशंसा के पुल बांध रखे हैं लेकिन ऐसा लगता है कि उसके बावजूद वे भाजपा में जानेवाले नहीं हैं। कांग्रेस के ‘चिंतित नेताओं’ को साथ जोड़कर अब वे नई कांग्रेस घड़ने में लगे हैं। उनके साथ जो वरिष्ठ नेतागण जुड़े हुए हैं, उनमें से कई अत्यंत गुणी, अनुभवी और योग्य भी हैं लेकिन उनमें साहस कितना है, यह तो समय ही बताएगा। उनकी पूरी जिंदगी जी-हुजूरी में कटी है। अब वे बगावत का झंडा कैसे उठाएंगे, यह देखना है। उनकी दुविधा इस शेर में वर्णित है।
इश्के-बुतां में जिंदगी गुजर गई ‘मोमिन’
आखिरी वक्त क्या खाक मुसलमां होंगे ?
मुझे नरसिंहरावजी के प्रधानमंत्री-काल के वे अनुभव याद आ रहे हैं, जब मेरे पिता की उम्र के कांग्रेसी नेता मेरे सम्मान में तब तक खड़े रहते थे, जब तक कि मैं कुर्सी पर नहीं बैठ जाता था, क्योंकि नरसिंहरावजी मेरे अभिन्न मित्र थे। अब वे दिन गए जब पुरूषोत्तम दास टंडन, आचार्य कृपालानी, राममनोहर लोहिया, जयप्रकाश, महावीर त्यागी जैसे स्वतंत्रचेता लोग कांग्रेस में सक्रिय थे लेकिन फिर भी हमें उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। कांग्रेस तो दुनिया की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी पार्टियों में से रही है और स्वाधीनता संग्राम में इसने विलक्षण भूमिका निभाई है। भारतीय लोकतंत्र की उत्तम सेहत के लिए इसका दनदनाते रहना जरूरी है। मार्च-अप्रैल में होनेवाले पांच चुनावों का जो भी परिणाम हो, यदि कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र किसी तरह स्थापित हो जाए तो कांग्रेस को नया जीवन-दान मिल सकता है। यदि कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र सबल होगा तो भाजपा भी भाई-भाई पार्टी बनने से बचेगी। कई प्रांतीय पार्टियां, जो प्राइवेट लिमिटेड कंपनियां बन गई हैं, उनमें भी कुछ खुलापन आएगा और उनमें नया रक्त-संचार होगा। हमारे भारत की सभी पार्टियां अपना सबक कांग्रेस से ही सीखती हैं। कांग्रेस के सारे दुर्गुण हमारे अन्य राजनीतिक दलों में भी धीरे-धीरे बढ़ते चले जा रहे हैं। यदि कांग्रेस सुधरी तो देश की पूरी राजनीति सुधर जाएगी।