फालुन दाफा भारत — पुडुचेरी के तटीय शहर में, रूसी मूल की एक बुजुर्ग महिला, तातिआना, रोज समुद्र तट पर फालुन दाफा अभियास करती हैं। उत्सुक लोग अक्सर उससे इस आत्म-सुधार आध्यात्मिक प्रणाली के बारे में अधिक जानकारी मांगते है। फालुन दाफा दुनिया भर में 10 करोड़ से अधिक लोगों द्वारा अभ्यास किया जाता है।
कैथोलिक नन मोली ने तातिआना को अपने पुदुचेरी से 160 किलोमीटर दूर कराईकल शहर में स्थित अपने अनाथालय में आमंत्रित किया। वह अनाथ बच्चों को फालुन दाफा के “सत्य, करुणा और सहनशीलता” के सिद्धांतों का उपहार देना चाहती थी और मेडिटेशन सीखना चाहती थी।
फालुन दाफा, मन और शरीर का प्राचीन साधना अभ्यास, पहली बार चीन में मई 1992 में श्री ली होंगज़ी द्वारा आरम्भ किया गया था। श्री होंगज़ी को दुनियाभर में 5,000 से अधिक पुरस्कारों और प्रशस्तिपत्रों से नवाज़ा गया है और नोबेल शांति पुरस्कार व स्वतंत्र विचारों के लिए सखारोव पुरस्कार के लिए भी मनोनीत किया जा चुका है। लेकिन दुर्भाग्य से, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने फालुन दाफा की शांतिप्रिय प्रकृति के बावजूद इसे अपनी प्रभुसत्ता के लिए खतरा माना और जुलाई 1999 में इस मेडिटेशन पर पाबंदी लगा दी। पिछले 21 वर्षों से फालुन दाफा अभ्यासियों को चीन में यातना, हत्या, ब्रेनवाश, कारावास, बलात्कार, जबरन मज़दूरी, दुष्प्रचार, निंदा, लूटपाट, और आर्थिक अभाव का सामना करना पड रहा है। अत्याचार की दायरा बहुत बड़ा है और मानवाधिकार संगठनों द्वारा दर्ज़ किए गए मामलों की संख्या दसियों हजारों में है।
12 फरवरी को, बैंगलोर के फालुन दाफा स्वयंसेवक कराइकल में मौली के अनाथालय गए। उन्होंने बच्चों को फालुन दाफा अभियास सिखाया। उन्होंने पुडुचेरी के शिक्षा निदेशक श्री रुद्र गौड से भी मुलाकात की। साम्यवादी चीन दुआर फालुन दाफा उत्पीड़न के बारे में शिक्षा निदेशक को जानकारी थी और अपनी चिंताओं को व्यक्त किया था।