– देवकिशन राजपुरोहित।
भारतीय जनता पार्टी राजस्थान में इस समय एक दम शांति नजर आ रही है मगर शांति है नहीं।अंदर खाने बहुत कुछ पक रहा हैजिसका प्रमाण बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष का ढाई दशक पुराना पत्र और वहुंधरा राजे का टेलीफोन ऑडियो वायरल हुआ था वही काफी है।इसकी भनक आला कमान तक को है मगर कोई खुल कर सामने आने को त्यार नहीं है।किसी के खिलाफ एक्शन नहीं लिया जा सकता क्योंकि कोई खुल कर बगावत भी तो नहीं करता।
एक गुट चाहता है कि आगामी चुनाव की बागडोर पार्टी वसुंधरा राजे को सौंपे जबकि एक गुट वसुंधरा राजे को चुनाव से दूर रखना चाहता है। आरएसएस और मैडम के बीच 36 का आंकड़ा है यही कारण है कि किसी भी स्तर पर वसुंधरा राजे को राजस्थान की बागडोर नहीं सौंपी जाएगी।खुद मोदी जी और अमितशाह भी मैडम को नजरंदाज ही करेंगे।केवल राजनाथ सिंह जी अवश्य मैडम को अकेले क्या सहयोग कर पाएंगे।महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि केंद्र वसुंधरा राजे को राज्यपाल बना कर राजस्थान से दूर करना चाहता था मगर उनकी नजरे राजस्थान के सीएमओ से नहीं हटती हैं।अभी तो मंत्री मंडल विस्तार में तो मैडम के चौथी बार के सांसद पुत्र को मंत्री न बना कर साफ आइना दिखा दिया और संदेश भी दे दिया कि पार्टी में आपके लिए कोई जगह नहीं है।पार्टी अगले चुनाव में जोधपुर के सांसद श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत,बीकानेर का सांसद श्री अर्जुन राम मेगवाल और राजसमंद सांसद दिया कुमारी में से भी किसी को चेहरा घोषित कर सकती है।यह भी संभावना बन सकती है कि चुनाव से पूर्व किसी का चेहरा घोषित न कर चुनाव सामूहिक रूप में लड़ा जाए और फिर विधायक अपना नेता चुनें।इसमें तकनीकी कमी यह होगी कि टिकट वितरण में वसुंधरा लॉबी को कितने टिकिट मिल पाएंगे।झगड़ा तो यहां भी संभव है।इसी कारणवसुंधरा राजे समर्थके गांव गांव तक फेल रहे हैं।जमीनी स्तर पर त्यारियां की जा रही हैं।उन्ही के कार्यकर्ता तीसरे मोर्चे का भी राग अलाप रहे हैं।
राजस्थान में डॉ. किरोड़ी लाल मीणा और घनश्याम तिवाड़ी आदि के प्रयोग नितांत असफल रहे जिसका कारण था अपनी पार्टी को अकेले छोड़ कर बिना पूर्व तयारी के मैदान में कूद पड़े।परिणाम उनकी आशाओके प्रतिकूल रहा।
अब श्रीमती वसुंधरा राजे के सामने दो साल का समय पड़ा है और उन्होंने बहुत ही सलीके से जमीनी स्तर पर कार्य आरंभ भी कर दिया।वसुंधरा राजे टीम के समर्थकों ने जयपुर मे विधिवत कार्यालय भी खोल दिया है।लोगों को संचार माध्यमों से संपर्क भी जारी कर दिया गया है।राजस्थान में 25 जिलों के जिलाध्यक्ष की भी नियुक्ति करदी गई है।प्रदेश अध्यक्ष विजय भारद्वाज हैंऔर प्रदेश मंत्री आरिफ पठान हैं। जो वशुंद्र राजे की नीतियों और उनके द्वारा किए गए कार्यों और भविष्य में किए जाने वाले कार्यों का प्रचार प्रसार कर रहे हैं।मारवाड़ की बागडोर जोधपुर के मेघराज लोहिया और शेखावाटी की बाग डोर यूनुस खा संभाल रहे हैं।जब नई पार्टी होगी और आरएसएस उसके साथ नहीं होगी तो अल्पसंख्यक वोट यूनुस खा के साथ हो जाएंगे।हाड़ोती में भवानी सिंह राजावत सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं,उन्हें भी अपने समाज का भरपूर समर्थन मिलने की आशा है।सुखदेव सिंह गोगामेड़ी अपनी करनी सेना सहित वसुंधरा राजे के साथ लगती है।लोकेंद्रसिंह कालवी और विजय पुनिया तथा बाड़मेर की पूर्व यूआईटी अध्यक्ष गंगाराम चौधरी की पोती प्रियंका, जिन्हें अभी उपेक्षित रखा जा रहा है वे भी इनके कंधे से कंधा मिलाने को तत्पर हैं।अजमेर से भंवर सिंह पलड़ा भी मैडम के कंधे से कंधा मिला सकते हैं।कांग्रेस के मिर्धा परिवार के बिखराव और उपेक्षा का लाभ भी मिलने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।संभव है रामनिवास जी मिर्धा के पुत्र या पौत्र में से किसी को भी वसुंधरा खेमे में जगह संभव है।जगह जगह वर्चुअल मीटिंग हो रही हैं।इस समय मीडिया का एक वर्ग और सोसियल मीडिया पर प्रचार देखा जा सकता है।इसे अनेक ग्रुप भी सक्रिय हैं जो टीम वसुंधरा राजे जैसे ग्रुप संचालित कर रहे हैं।।यो भी
इस समय विधान सभा के सदस्यों में से अधिसंख्यक सदस्य वसुंधरा राजे के साथ हैं और वे वसुंधरा राजे के इशारे के इंतजार में है।
राजनीति में कब क्या हो जाए यह कोई बता नहीं सकता।अगर वसुंधरा राजे नागौर के हनुमान बेनीवाल को भी साथ जोड़ ले तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।हालांकि हनुमान बेनीवाल को साथ जोड़ने की भूल मैडम नहीं करेगी मगर पूर्व जिलाप्रमुख बिंदु चौधरी को अवश्य निकटता मिल सकती है।
बड़े बड़े व्यापारी,उद्योगपति तथा सिनेमा संसार के लोग भी राजे के अर्थतंत्र को मजबूती देने में कोताही नहीं बरतेंगे।राजपूत ,राजपुरोहित,चारण,ब्राह्मण,देवासी, कल्बी आदि समाजों का साथ वसुंधरा राजे को काफी निश्चित रूप से मिलेगा।अगर उनकी पार्टी ने आगामी विधान सभा चुनाव की बागडोर किसी और को सौंपेगी तो वसुंधरा राजे अकेली पार्टी नहीं छोड़ेगी।एक दिन में हजारों लोग एक साथ पार्टी छोड़ कर नई पार्टी का गठन कर मैदान में कूद सकते हैं।जगह जगह पहले से त्यार कार्यकर्ता जयपुर कू च करेंगे और वहीं पर नई पार्टी की घोषणा भी हो जायेगी।अनेक पार्टी के असंतुष्ट लोग,टिकट कटने से नाराज लोग जयपुर में ही नई पार्टी के पिलर बन कर उभरेंगे। उस समय केवल बीजेपी ही नहीं कांग्रेस के भी अनेक प्रभावशाली नेता भी जेसे सचिन पायलट गुट भी राजे शरणम हो जाएंगे।फिर दूसरी पार्टियों के समर्थन से तीसरा मोर्चा अस्तित्व में आ सकता है।जो लोग सचिन पायलट में तीसरे मोर्चे की संभावनाएं देखते हैं यह इनकी अक्ल का दिवालियापन है क्योंकि सचिन पायलट असफल राजनेता हैं और अपरिपक्व भी हैं। हां वे वसुंधरा राजे के साथ अवश्य मिल कर तीसरे मोर्चे को गुर्जरों से लाभ दिला सकते हैं।पायलट कांग्रेस से कभी भी निकल सकते हैं बशर्ते उन्हें कोई अपनाए।इस श्रेणी में नोखा के कन्हैयालाल झांवर किसी भी हद तक जा सकते हैं।देवीसिंह भाटी भी इन दिनों छटपटा रहे हैं अगर अवसर मिला तो वे भी राजे का साथ दे सकते हैं।
नागौर जिले में अभी मौन धारण किए जनाधार वाले नेता गजेंद्र सिंह खींवसर, सी आर चौधरी,अजय किलक,रामप्रताप बग्गड़ दुर्गासिंह चौहान खींवसर जैसा हवा का रुख होगा उसी ओर जाएंगे।अगर पार्टी इनसे किनारा करेगी तो ये अपना अस्तित्व खोने थोड़े ही देंगे। जैसा हवा का रुख होगा वैसी ही ओट भी लेंगे हालांकि इनकी निष्ठा वसुंधरा राजे के साथ हो सकती है।
कुल मिलाकर निष्कर्ष यही है कि मैडम के बगावती तेवर होते हुए भी अगर बीजेपी योग्य और जिताऊ प्रत्याशियों पर दाव लगाएगी तो सरकार बना सकती है क्योंकि वोट मोदी के नाम पर मिलेंगे।यही एक प्लस प्वाइंट बीजेपी के पास है।अभी बहुत समय पड़ा है।देखते हैं ऊंट किस करवट बैठता है।
निरंतर