ओम एक्सप्रेस न्यूज बीकानेर। शब्दरंग साहित्य एवं कला संस्थान द्वारा श्री संगीत भारती परिसर में दक्षिण राजस्थान के आदिवासी लोक संगीत पर संवाद का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता बांसवाड़ा की संगीतज्ञ सुश्री मालिनी काले ने कहा कि दक्षिण राजस्थान के आदिवासी प्राचीन काल के संगीत को सहेजने का कार्य कर रहे है। काले ने कहा कि आदिवासी संगीत हमारे लोक संगीत से भिन्न है जिसमे जन्म से मृत्यु तक के गीत समाहित है ।
काले ने कहा कि आदिवासी संगीत में वीर गाथाएं भी गाई जाती है। काले ने कहा कि आदिवासी संगीत के शब्द भी मधुर है जो सदियों से परंपराओं को सुरक्षित रखते है । कार्यक्रम में सखा संगम द्वारा मालिनी काले का सम्मान किया गया। संयोजक डॉ. मुरारी शर्मा ने बताया कि मालिनी काले ने बांसवाड़ा डूंगरपुर के आदिवासी संगीत पर शोध कर अभूतपूर्व कार्य किया है। मुख्य अतिथि सखा संगम के अध्यक्ष एन. डी. रंगा ने कहा कि हमारे प्रदेश के आदिवासी संगीत को अक्षुण्ण बनाये रखना चाहिए। चैयरमेन चंद्रशेखर जोशी ने कहा कि लोक संगीत सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का प्रतीक है । कवि.कथाकार राजाराम स्वर्णकार ने कहा कि सुश्री काले का आदिवासी संगीत पर शोध संगीत जगत के लिए उपयोगी सिद्ध होगा । लेखक अशफ़ाक़ क़ादरी ने कहा कि आदिवासी संगीत गौरवशाली परंपरा का पक्ष है । फि़ल्मकार मंज़ूर अली चंदवानी ने कहा कि फिल्म संगीत में लोकधुनों का प्रयोग गीत को जन जन में लोकप्रिय बनाता है । संगीतज्ञ मोहनलाल मारू ने धन्यवाद ज्ञापित किया ।