_विपक्षी नेताओं की कमजोर नस दबाने का किया काम

_जनता और विपक्ष के लिए पीएम का संदेश,


स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से भारतीय प्रधानमंत्री के भाषण की देश-दुनिया को प्रतीक्षा रहती है। चूंकि देश आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा था, इसलिए इस बार उत्सुकता बढ़ना और स्वाभाविक हो गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले से संबोधन की परंपरा को कुछ और रोचक बना दिया है। उनके पहनावे-पगड़ी से लेकर भाव-भंगिमा में लोगों की खासी दिलचस्पी रहती है। भाषण के लिए जनता से सुझाव मंगाकर भी उन्होंने इस प्रक्रिया को द्विपक्षीय बनाया है।

पिछले कुछ वर्षों के रुझान को देखें तो स्वच्छ भारत अभियान, पांच ट्रिलियन (लाख करोड़) डालर की अर्थव्यवस्था, आकांक्षी जिलों का कायाकल्प, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, मेक इन इंडिया से लेकर आजादी के अमृत महोत्सव जैसी मोदी सरकार की तमाम योजनाओं या पहल की घोषणा लालकिले की प्राचीर से ही की गई। स्पष्ट है कि मोदी अपने भाषण से अपने एजेंडे की झलक दिखाते हैं और फिर उसे पूरा करने की दिशा में प्रयासरत रहते हैं। ऐसे में उनके भाषण का मर्म समझना महत्वपूर्ण है।

अबकी बार मोदी का संबोधन कुछ अलग रहा। उन्होंने अतीत की तरह कोई बड़ी घोषणा तो नहीं की, लेकिन भविष्य को बेहतर बनाने की रूपरेखा का खाका अवश्य पेश किया। ऐसे में इसे महत्वाकांक्षी भाषण की संज्ञा देना उचित होगा। इसमें नागरिकों, समाज, समुदाय और राजनीतिक बिरादरी सहित राष्ट्रजीवन के प्रत्येक अंशभागी के लिए कोई न कोई संदेश निहित है। विषयवस्तु की बात करें तो सबसे पहले प्रधानमंत्री के पांच संकल्प आते हैं। इसमें उन्होंने विकसित भारत बनाने, औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति पाने, अपनी विरासत पर गर्व करने, एकता एवं एकजुटता का प्रदर्शन करने और नागरिक कर्तव्यों के निर्वहन करने का आह्वान किया। उनके ये संकल्प असल में व्यापक राजनीतिक संदेश समाहित किए हुए हैं।

अगले 25 वर्षों के अमृत काल में उन्होंने देश को विकसित राष्ट्रों की कतार में शामिल कराने की बात की। इसके जरिये वह प्रत्येक देशवासी से इस महान लक्ष्य की पूर्ति में उनके हरसंभव योगदान देने के लिए प्रेरित करते प्रतीत हुए। गुलामी से मुक्ति पाने और विरासत पर गर्व करने से आशय भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को मुखर स्वरूप देने से है। जहां तक एकता और एकजुटता की बात है तो यह मुख्य रूप से भाजपा के मूल काडर को संबोधित है कि केवल ‘हिंदू राष्ट्रवाद’ के सहारे ही नैया पार नहीं लगाई जा सकती और आगे बढ़ने के लिए सभी को साथ लेकर शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की संकल्पना को साकार करना होगा।

प्रधानमंत्री संभवत: यही मानते हैं कि टकराव से चौड़ी होने वाली विभाजन रेखाएं देश को समृद्ध एवं वैभवशाली बनाने में बाधाएं बन सकती हैं। इसीलिए उन्होंने एकता और एकजुटता का यह मंत्र दिया। बीते दिनों मुस्लिम समुदाय में पिछड़े पसमांदा समुदाय तक पहुंच बढ़ाने की उनकी कवायद से यह समझा जा सकता है कि वह इस दिशा में पहले से ही सक्रिय हैं।

महिला सशक्तीकरण को लेकर मोदी ने समय-समय पर प्रतिबद्धता दिखाई है और इस बार भी उन्होंने आधी-आबादी के प्रति अपने उसी भाव को दोहराया। उन्होंने कहा, ‘क्या हम स्वभाव से, संस्कार से रोजमर्रा र्की जिंदगी में नारी को अपमानित करने वाली हर बात से मुक्ति का संकल्प ले सकते हैं।’ इस संदेश का उद्देश्य राजनीतिक न होकर व्यापक सामाजिक परिवेश से जुड़ा है। वह महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता प्रकट कर समाज को भी इसी दिशा में उन्मुख कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री के संबोधन के तीन अहम पहलुओं में दो राजनीतिक और व्यापक सामाजिक संदेश से जुड़े रहे तो तीसरा पहलू चुनौतियों पर केंद्रित रहा, जिसके मूल में राजनीति और समूचे तंत्र की सफाई का समावेश है। उन्होंने राजनीति में भाई-भतीजावाद (Nepotism) और भ्रष्टाचार (Corruption) के विरुद्ध निर्णायक लड़ाई का बिगुल बजाया। पिछले कुछ समय से प्रधानमंत्री राजनीति में वंशवाद के विरुद्ध आक्रामक रहे हैं। उन्होंने अपनी पार्टी के भीतर भी कड़ा संदेश देने से गुरेज नहीं किया। मार्च में उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के चुनाव नतीजों पर पार्टी के जश्न के बीच उन्होंने साफ कहा था कि पार्टी के कई नेताओं के बेटे-बेटियों के टिकट तो खुद उनके कहने पर कटे हैं। इससे स्पष्ट है कि वह विपक्ष को इस मुद्दे पर कोई रियायत नहीं देने वाले।

देश में महाराष्ट्र से लेकर बिहार तक जिस प्रकार का नया राजनीतिक परिदृश्य आकार लेता दिख रहा है, उसमें मोदी को ऐसा विमर्श खड़ा करने में कोई मुश्किल भी नहीं आएगी। इसी तरह भ्रष्टाचार का मुद्दा छेड़कर उन्होंने एक प्रकार से विपक्षी नेताओं की कमजोर नस दबाई है। बीते दिनों ईडी और आयकर विभाग से लेकर तमाम केंद्रीय एजेंसियों की सक्रियता देखने को मिली है। मोदी ने अपनी आठ साल की सरकार को वित्तीय अनियमितताओं एवं भ्रष्टाचार के छींटों से दूर रखा है, लेकिन अब यह साफ है कि वह चर्चित मामलों पर सख्ती करने के मूड में हैं।

देश के तमाम हिस्सों में पड़ रहे छापों से भले ही विपक्षी नेता केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग की बात करें, लेकिन ऐसी कार्रवाइयों में जितने बड़े पैमाने पर नकदी और अन्य संपत्तियां जब्त की जा रही हैं, उससे उन्हें जनता की हमदर्दी शायद ही मिले। मोदी इसे बखूबी समझते हैं और अपने भाषण में उन्होंने यही संदेश दिया कि ऐसी कार्रवाइयां आगे और तेज होने वाली हैं। साफ है कि वंशवाद और भ्रष्टाचार पर प्रहार के जरिये वह जनमत बनाकर अपने राजनीतिक हितों को पोषित करने का लक्ष्य संधान कर रहे हैं।

मोदी की भाव-भंगिमा और भाषण से यही आभास हुआ कि वह एक साथ तीन भूमिकाओं में हैं। एक यह कि उन्हें अपने राजनीतिक हित साधना बखूबी आता है और दूसरे, वह स्वयं को एक समाज सुधारक के रूप में भी देख रहे हैं। इसके अलावा वह अपनी मूल विचारधारा से बिल्कुल नहीं भटके हैं। यही कारण है कि उन्होंने विरासत पर गर्व करने के साथ ही भाषण में वीर सावरकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय और नानाजी देशमुख का उल्लेख कर अपने कोर समर्थक समूह को यही संदेश दिया कि उनके लिए अपनी विचारधारा भी उतनी ही महत्वपूर्ण बनी हुई है। प्रधानमंत्री की ये तीनों भूमिकाएं कितनी सफल होंगी, इसका दारोमदार असल में उनकी सरकार और भाजपा पर निर्भर करेगा कि वे उनकी बातों को किस प्रकार जमीन पर उतार पाती हैं।

(लेखक सेंटर फार पालिसी रिसर्च में फेलो है)