

नई दिल्ली,( दिनेश शर्मा “अधिकारी”)। मद्रास हाई कोर्ट में
न्यायमूर्ति आर विजयकुमार की पीठ प्रतिवादियों को आर्म्स जारी करने का निर्देश देने के लिए दायर याचिका को खारिज करते हुए
मद्रास हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि एक नागरिक आर्म्स लाइसेंस को अधिकार के रूप में तब तक नहीं मांग सकता जब तक कि वह उक्त लाइसेंस रखने के लिए बाध्यकारी परिस्थितियों को पेश करने में सक्षम न हो । न्यायमूर्ति आर विजयकुमार की पीठ प्रतिवादियों को आत्मरक्षा के लिए याचिकाकर्ता को बंदूक लाइसेंस जारी करने का निर्देश देने के लिए दायर याचिका पर विचार कर रही थी।
इस मामले में याचिकाकर्ता ने दूसरे प्रतिवादी के समक्ष आवेदन कर गन लाइसेंस के लिए आवेदन किया था। उक्त आवेदन इस आधार पर दायर किया गया है कि वह रिट याचिकाकर्ता के जीवन के लिए खतरा पैदा करने वाले जंगली जानवरों के निवास वाले पश्चिमी घाट की तलहटी के पास स्थित कृषि भूमि की एक बड़ी मात्रा में खेती की देखभाल कर रहा है। याचिकाकर्ता द्वारा दूसरे प्रतिवादी के समक्ष प्रस्तुत किए गए आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि तिरुनेलवेली जिला सांप्रदायिक रूप से अति संवेदनशील जिला है और जब तक कोई अनिवार्य आवश्यकता न हो, याचिकाकर्ता के गन लाइसेंस के अनुरोध को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। दूसरे प्रतिवादी के उक्त आदेश को रिट याचिकाकर्ता ने पहले प्रतिवादी के समक्ष चुनौती दी थी। प्रथम प्रतिवादी द्वितीय प्रतिवादी द्वारा पारित आदेश की पुष्टि की है। याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता एक ठेकेदार है, और नकदी ले जाने के दौरान उसे अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए गन लाइसेंस की आवश्यकता होती है। प्रतिवादी के वकील ने प्रस्तुत किया कि तिरुनेलवेली जिला सांप्रदायिक रूप से अति संवेदनशील जिला है। जब तक कुछ अनिवार्य कारण न हों, किसी भी बंदूक लाइसेंस को प्रदान करने का प्रश्न ही नहीं उठता। पीठ के समक्ष विचार का मुद्दा था: याचिकाकर्ता को गन लाइसेंस दिया जा सकता है या नहीं…….? उच्च न्यायालय ने कहा कि “जहां तक बंदूक लाइसेंस देने के मुद्दे का संबंध है, एक नागरिक उक्त लाइसेंस को अधिकार के रूप में तब तक नहीं मांग सकता जब तक कि वह उक्त लाइसेंस रखने के लिए बाध्यकारी परिस्थितियों को पेश करने में सक्षम न हो। यहां तक कि यह मानते हुए कि उसके जीवन और संपत्ति के लिए कुछ खतरा पीठ ने कहा कि वैधानिक अधिकारियों ने विवेकपूर्ण तरीके से अपने विवेक का प्रयोग किया है और इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि याचिकाकर्ता ने बंदूक लाइसेंस रखने के लिए कोई बाध्यकारी परिस्थिति नहीं रखी है, खासकर सांप्रदायिक रूप से अति संवेदनशील जिले में परिस्थिति को देखते हुए हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
