बीकानेर । राज्य की सरकार को तीन मंत्री देने वाले इकलौते बीकानेर जिले में जहां हाथ रखो वहीं दर्द है। जननी सुरक्षा योजना समेत तमाम स्वास्थ्य योजनाओं के महत्वपूर्ण पाए (स्तंभ) कहे जाने वाले सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) की दुर्दशा कुछ ऐसी ही पीड़ा देती है। हाल ही मुख्यमंत्री नि:शुल्क दवा योजना में बीकानेर जिला लगातार चौथे और मुख्यमंत्री नि:शुल्क जांच योजना में तीसरे महीने पहले पायदान पर भी रहा है। लेकिन इस कड़वी दवाई को हजम करने के लिए शायद कोई तैयार नहीं है कि इस नंबर वन जिले की ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं का बुनियादी ढांचा दरक रहा है। कुल 17 सीएचसी में से एक भी ऐसा नहीं है, जहां पर आपात सुविधा से लेकर प्रसव के समय अगर ऑपरेशन की नौबत आ जाए, तो इस स्थिति से पार पाने का समुचित उपाय हो। किसी केंद्र में या तो विशेषज्ञ चिकित्सक नहीं है। चिकित्सक है, तो निश्चेतन विशेषज्ञ नहीं है। अव्वल तो एक साथ यह दोनों कहीं मौजूद नहीं हैं। हैं भी, तो वहां ऑपरेशन थिएटर नहीं मिलेगा। ऐसे हालात में इसका सबसे ज्यादा बुरा असर ग्रामीण क्षेत्र की आधी आबादी यानी महिलाओं पर पड़ता है। खास तौर पर प्रसव के समय आने वाली दिक्कतों में विशेषज्ञों की यह कमी कई बार तो उनकी जान पर भी भारी पड़ती नजर आती है। कुल मिला कर कहें, तो सरकार की जननी सुरक्षा योजना को सामुदायिक केंद्रों की यह दुर्दशा पलीता लगाती दिख रही है। जिले में पांच तहसील मुख्यालयों पर लंबे समय से सिजेरियन के लिए सुविधाएं तो जुटा रखी हैं, लेकिन इसका कोई खास उपयोग नहीं हो पा रहा है। नोखा तथा श्रीडूंगरगढ़ के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में सिजेरियन की सुविधा अप्रेल से बंद पड़ी है, जबकि यहां चिकित्सक भी हैं। हालांकि, ब्लड बैंक नहीं है। खाजूवाला, लूणकरनसर तथा कोलायत के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर ऑपरेशन थियेटर बने होने के बावजूद विशेषज्ञ चिकित्सकों के बिना यह वीरान पड़े हैं। ऐसे में दिक्कत तब ज्यादा होती है, जब गर्भवती में प्रसव संबंधी कोई कॉम्प्लीकेशंस पैदा होते हैं। क्योंकि गर्भवती के लिए ऐसे में बीकानेर तक का या कुछ ही दूर का सफर भी काफी जोखिमपूर्ण साबित हो सकता है। इसके अलावा कहीं पर भी ब्लड बैंक की सुविधा न होने से भी सिजेरियन में दिक्कत आती है।”