

– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार
आज मजदूर दिवस है। मजदूर की परिभाषा भुटी बड़ी है। जो कुदाली चलाये, हथौड़ा चलाये, हल चलाये, चाहे इनके लिए कोई कलम चलाये, मजदूर ही है। इसी कारण इस दिन को बहुत शिद्दत से हर देश में मनाया जाता है। भारत में भी मजदूर दिवस एक बड़ा उत्सव माना जाता रहा है। हर राजनीतिक दल अपने घोषणा पत्र को मजदूर के बिना अधूरा मानता है। नेता अपने भाषण में मजदूर को भाई बताने से कभी नहीं चूकता। ये नेता व राजनीतिक दल के लिए जरूरी भी है, क्योंकि इसी वर्ग का सबसे बड़ा वोट बैंक है। वोट पाना ही राजनीतिक दल का पहला और अंतिम लक्ष्य होता है।
कलम के मजदूर यानी लेखकों ने भी इस वर्ग पर बहुत लिखा है, कई नायाब किताबें है। भीष्म साहनी, प्रेमचंद, जावेद अख्तर, असगर वजाहत से लेकर निराला, बच्चन, हरीश भादानी तक ने कई रचनाओं से इस मजदूर की गाथा गाई है। ऐसा भी नहीं कि अब इस पर नहीं लिखा जाता, लिखा जाता है मगर खुद के लिए मजदूर का उपयोग होता है। अब भी कुछ लेखक ऐसे हैं जो इस मजदूर की पीड़ा, संत्रास, त्रासदी को स्वर दे रहे हैं। क्योंकि आज की व्यवस्था में महंगाई, बेरोजगारी व आधुनिकीकरण ने सबसे ज्यादा संकट में किसी को डाला है तो मजदूर ही है। इस सच को सत्ता व व्यवस्था, दोनों जानते हैं, मगर बात मजदूर की करते हुए भी नीतियां आर्थिक उदारीकरण की बनाते हैं। जिसमें सबसे करारी चोट मजदूर पर ही होती है। इस यथार्थ को मजदूर भी पहचान रहा है मगर उसके पास कोई विकल्प नहीं, मजबूर है। लेखक वर्ग भी तो अब इसे फैशन के रूप में काम में लेता है ताकि उसे संवेदनशील माना जाये। ये कड़वा सच है।
बड़ा वोट बैंक है, मगर कुछ भी बदल पाने में असफल है। क्योंकि राजनीति ने इस वर्ग को उसकी मूल भावना से भटकाकर धर्म, जाति व हेट स्पीच में उलझा दिया है। छोटे सोच में बंटकर वो अपने मजदूर धर्म संघर्ष को भूल गया है। संघर्ष की बात करता है तो व्यवस्था व सत्ता उसे हेट स्पीच से धर्म व जाति के भंवरजाल में उलझा देती है। इस सच को लेखक देख रहा है मगर वो भी लेखनी से मजदूर को जगा नहीं रहा।
आज मजदूर दिवस है, इस वर्ग को छोटे छोटे भ्रम को छोड़ अपने मूल धर्म को अंगीकार करना चाहिए। नहीं तो इस वर्ग की दशा ज्यादा खराब होगी। फावड़े व तगारी से जीवन चलाने वाले का धर्म संघर्ष है और जाति मजदूर है। हल चलाने वाले का भी यही धर्म और जाति है। कलम वाले को पता है कि उसका भी यही धर्म और जाति है, उसे तो मन और कर्म से इसे स्वीकारना है और धर्म निभाना है। आज के दिन दुनिया के हर मजदूर को सेल्यूट।