इस साल में अब राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व तेलंगाना में चुनाव है। पहले हिमाचल और फिर कर्नाटक जीतने के बाद जहां कांग्रेस उत्साह में है वहीं हार से हताश भाजपा इन राज्यों के लिए नई चुनावी रणनीति बनाने में जुटी है। उसके सामने सबसे बड़ी चुनोती खुद की पार्टी के ही नेता है। इन राज्यों की तरह राजस्थान में कांग्रेस के लिए अपने ही रोड़ा बन गये हैं और उनका निदान होने में समय लग रहा है। छत्तीसगढ़ में सीएम भूपेश बघेल व तेलंगाना में चंद्रशेखर खुलकर बैटिंग कर रहे हैं और वहां भाजपा पलटवार की स्थिति तक पहुंच ही नहीं पाई है। इसी कारण इन राज्यों में मुक्कमिल तौर पर चुनावी रंग चढ़ नहीं पाया है। उससे लगता है कि यहां पहले दोनों पार्टियों में काफी उलटफेर होगा।
पहले बात राजस्थान की। यहां सीएम गहलोत की सरकार ने अनगिनत लाभ की योजनाओं को शुरू कर वोटरों को लुभाने का काम किया है, मगर पायलट के तेवर से इनका पूरा लाभ पार्टी उठा नहीं पा रही। पायलट ने भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाकर अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़े करने का काम किया है और करते जा रहे है। आश्चर्य तो आलाकमान पर है, जो न तो कोई कार्यवाही कर रही है और न सुलह के रास्ते तलाश रही है। जबकि इसी आलाकमान ने कर्नाटक में सिद्धारमैया व डीके की सुलह करा चुनाव जीता, सरकार बनाई। उनसे बड़े तो गहलोत व पायलट नहीं है। हालांकि इस महीने के अंत मे अमेरिका जाने से पहले राहुल ने राजस्थान के नेताओं की बैठक बुलाई है, क्योंकि इस मसले के हल का जिम्मा उनके पास है। इतना तय है कि सुलह न होने पर कांग्रेस को चुनाव में बड़ा नुकसान होगा।
राजस्थान में भाजपा के लिए भी ज्यादा खुश होने की स्थिति नहीं है। लाडनूं में हुई भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की बैठक से न केवल वसुंधरा अपितु उनके गुट के नेता भी अनुपस्थित रहे। जिसका कोई माकूल जवाब पार्टी के पास नहीं है। इतना जरूर आभाष होता है कि इस गुट में अंदरखाने कुछ चल रहा है। भाजपा को वसुंधरा की बेरुखी भारी पड़ेगी, ये तय है। इस मसले का निदान भी भाजपा आलाकमान नहीं कर पा रहा। सतीश पूनिया की चुप्पी भी ठीक नहीं पार्टी की सेहत के लिए। इसीलिए भाजपा गहलोत सरकार पर न तो हमलावर हो पा रही है और न चुनावी रंग जमा पा रही है। दोनों दल समान समस्याओं से घिरे हैं।
मध्यप्रदेश में कमलनाथ फ्रंट फुट पर खेल रहे हैं और कांग्रेस पर पूरी तरह से चुनावी रंग चढ़ा दिया है। वे फिलहाल भाजपा सहित छोटे वजूद वाले दलों के नेताओं को कांग्रेस में लाते जा रहे हैं। प्रियंका के पास इस प्रदेश की कमान रहेगी, वे भी रणनीति बना रही है। भाजपा के दिग्गज नेताओं, पूर्व विधायकों आदि को वे कांग्रेस में ला चुके हैं। वहीं भाजपा के लिए वहां सिंधिया व उनके साथी जो दलबदल करके भाजपा में आये हैं, वे बड़ी समस्या है। मूल भाजपा ने नेता उनको हजम नहीं कर पा रहे। टकराहट अब तो खुलकर सामने आ गई है। पार्टी के भीतर भी सीएम शिवराज सिंह के खिलाफ विरोध के सुर हैं। भाजपा इसी कारण यहां चुनावी बिसात बिछा ही नहीं पाई है। कुल मिलाकर राजस्थान, मध्यप्रदेश व तेलंगाना के चुनाव इस बार एकतरफा नहीं रहेंगे, रोचक मुकाबला होगा। जो दल जितनी जल्दी अपनी समस्याओं का हल निकालेगा, वो रेस में आगे रहेगा।

  • मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
    वरिष्ठ पत्रकार