गंगाशहर। आचार्य तुलसी को पढऩे के लिए पूरा जीवन भी कम रहेगा। आचार्यश्री ने भारत की संत परम्परा को नई दिशा प्रदान की है। वे केवल भारत के ही नहीं पूरे विश्व के संत थे। यह विचार आचार्यश्री तुलसी की मासिक पुण्यतिथि के अवसर पर ”आचार्य तुलसी का सामाजिक योगदान’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में प्रोफेसर विशाल सोलंकी (शिक्षाविद्) ने कही। उन्होंने कहा कि शिक्षक में अनुशासन आवश्यक है तभी विद्यार्थी अनुशासित हो सकते है। सोलंकी ने एक प्रेरक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि आचार्य तुलसी आकाशधर्मी शिक्षक थे। आकाशधर्मी व्यक्ति सभी को पल्लवित व पुष्पित कर देता है। उन्होंने कहा कि आचार्य तुलसी ने शिक्षक में धैर्य होना अति आवश्यक माना तथा शिक्षा में नैतिकता के साथ आजीविका के विषय न हो तो उनकी कोई उपयोगिता नहीं है।
संगोष्ठी में श्रीमती जयश्री भूरा ने ”जिस पर नजर टिकी तुलसी की, वह नर सरल विनीत हो गया’ का काव्य पाठ किया। मुनिश्री मुनिव्रतजी ने कहा कि अणुव्रत सबसे बड़ा सामाजिक योगदान रहा है। आचार्यश्री के अणुव्रत के नियमों को हर जाति वर्ग के लोग ने अपनाकर अपना जीवन सुधारा है। संगोष्ठी की शुरूआत मुनिश्री श्रेयांसकुमाजी द्वारा नमस्कार महामंत्र के उच्चारण के साथ हुई तथा मुनिश्री ने जप करवाया तथा गीतिका का संगान किया।
आचार्य तुलसी शान्ति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष जैन लूणकरण छाजेड़ ने कहा कि आचार्य तुलसी का समाज को बहुत बड़ा योगदान रहा है। आचार्यश्री ने समाज को नये अवदानों को गांव, शहर, देश ही नहीं विदेशों तक पहुंचाया और इससे व्यक्तित्व निर्माण भी हुआ। आचार्यश्री के अवदानों में नारी शिक्षा, अस्पशयता निवारण, व्यक्तित्व निर्माण, आन्तरिक व्यक्तित्व के विकास के लिए प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान, पंजाब समझौता तथा संसद के गतिरोध को समाप्त करने में अहम् भूमिका निभायी। छाजेड़ ने कहा कि हमारा सौभाग्य है कि आचार्यश्री को देखने, सुनने तथा उनके सान्निध्य का अवसर हमें प्राप्त हुआ।
प्रोफेसर डॉ. धनपत जैन ने कहा कि राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर आचार्य तुलसी ने व्यक्तित्व निर्माण का अद्भुत कार्य किया है। यह शक्तिपीठ उसी कार्य को जारी रख रहा है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति भूमि पर भारभूत या सारभूत होकर जीता है। समाज में विचारवान व्यक्ति होने से ही समाज का विकास होता है। आचार्यश्री तुलसी ने जड़ में चेतना बनाने की कला और सिखाने की अद्भुत कला थी। आचार्यश्री ने समाज को एकजुट करने का महत्वाकांक्षी कार्य किया।
मुनिश्री शान्तिकुमारजी ने कहा कि आचार्य तुलसी को जैन या तेरापंथ ही नहीं सर्व समाज के लोग जानते व मानते हैं। आचार्यश्री का चतुर्विध संघ के अलावा सभी समाज में योगदान रहा है। आचार्यश्री ने वाचन कला, लेखन कला आदि का विकास तो किया ही अन्य व्यक्तित्व निर्माण में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। आचार्यश्री के अवदानों में विधवा को सम्मान देने के साथ नारी शिक्षा में बढ़ावा, व्यक्तित्व निर्माण के अवदान को सम्पूर्ण समाज में अपनाया है।
मुनिश्री विमलबिहारीजी ने कहा कि ‘नैतिकता का शक्तिपीठ’ वास्तव में ही ऊर्जा का स्त्रोत है। शक्तिपीठ पर आने से शरीर में व्याप्त व्याधि दूर होती है। आजकल ज्ञान का सम्मान समाप्त हो गया है साथ ही देशहित गौण हो गया है। सबसे पहले स्वहित हो गया है। मुनिश्री ने कहा कि ताजमहल के शिखर को सब देखते हैं लेकिन नींव को कोई नहीं देखता है। राजनीति का स्तर गिर जाने के कारण देश में संयम समाप्त हो गया है। जबकि आचार्य तुलसी ने संयम ही जीवन का संदेश दिया। मुनिश्री ने लालबहादुर शास्त्री की नैतिकता का उदाहरण देते हुए नैतिकता का संदेश दिया। मुनिश्री ने सभी को उपवास, वर्षीतप करने के लिए प्रेरित किया।
आभार ज्ञापन करते हुए महामंत्री जतनलाल दूगड़ ने आचार्य तुलसी की वार्षिक पुण्यतिथि पर आयोजित होने वाले त्रिदिवसीय कार्यक्रमों की जानकारी प्रदान की। संगोष्ठी में तेरापंथी सभा, महिला मंडल के सदस्यों के अलावा आचार्य तुलसी शान्ति प्रतिष्ठान के ट्रस्टीगण एवं श्रावक समाज उपस्थित हुए।
संगोष्ठी में प्रो. विशाल सोलंकी का डॉ. पी.सी. तातेड़ व मनीष बाफना व श्रीमती जयश्री भूरा का नयनतारा छलाणी व दीपिका बोथरा ने स्मृति चिन्ह व साहित्य भेंट कर सम्मान किया गया।