जैन महासभा के तत्वावधान में 201 तपस्वियों का अभिनंदन
बीकानेर। क्षमा का तात्पर्य मोक्ष का द्वार खोलना है। यह आत्मशोधन का अभियान है। ये उद्गार शासनश्री मुनिश्री मुनिव्रतजी ने जैन महासभा के तत्वावधान में आयोजित समग्र जैन समाज के सामूहिक क्षमापना एवं तप अभिनन्दन समारोह में कही। यह समारोह गंगाशहर स्थित तेरापंथ भवन में जैन चारित्रात्माओं के सान्निध्य में आयोजित किया गया। समारोह में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ, खरतरगच्छ संघ, तपागच्छ, पार्श्वचन्द्र गच्छ, साधुमार्गी जैन संघ व हुक्मगच्छीय शांतक्रंात संघ, अरिहन्तमार्गी समर्थ श्रावक संघ के 8 से लेकर 31 दिन की तपस्याएं करने वाले श्रावक-श्राविकाओं का जैन महासभा की ओर से अभिनंदन किया गया। मुनिश्री ने कहा कि वीतराग परमात्मा की ओर से स्थापित जैन धर्म को जन-जन का धर्म बनाने के लिए जैन महासभा जैसे स्वयं सेवी व सामाजिक संस्थाएं व युवा पीढ़ी समर्पित भाव से कार्य करें। गच्छ, पंथ से ऊपर उठकर जैन धर्म के विस्तार के लिए कार्य करें। आडम्बर व दिखावें के लिए धर्म व अन्य कार्यों में अनावश्यक धन व्यय नहीं करें। सभी वर्ग व तबके तथा गच्छ व पंथ के श्रावक-श्राविकाएं कटिबद्ध होकर जिन शासन के लिए कार्य करें। उन्होंने कहा कि जैन मुनि व साध्वीवृंद के लिए पांच महाव्रतों की पालना सहित अनेक नियम व सिद्धान्त स्थापित है। जैन श्रावक-श्राविकाओं के लिए भी सर्वमान्य सिद्धान्त व नियम होने चाहिए जिससे हर किसी को पता चल सके कि यह जैनधर्म का अनुयायी है।
साध्वीश्री विशदप्रभाजी ने कहा कि इंसान को दांतों की तरह कठोर नहीं अपितु जीभ की तरह नरम होना चाहिए। क्षमा अभय, निर्भय बनाता है। साध्वीश्री ने कहा कि व्यक्ति का भूषण रूप है। रूप का भूषण गुण है। गुण का भूषण ज्ञान है व ज्ञान का भूषण क्षमा है। उन्होंने कहा कि वस्तुत: क्षमा वीरस्य भूषणम् यह वीर वृति का काम है।
जैन महासभा के पूर्व महामंत्री जैन लूणकरण छाजेड़ ने बताया कि समग्र जैन समाज की सामूहिक खमत खामणा पर्व एक साथ मनाने पर बीकानेर, गंगाशहर, भीनासर के सभी जैन समाज के लिए गौरव की बात है। उन्होंने कहा कि समग्र जैन समाज के करीब 201 तपस्वियों को सम्मानित किया गया। उन्होंने कहा कि समाज अगर विशुद्ध रूप से खमत खामणा की पद्धति अपनाए तो वैमनस्य समाप्त हो सकता है। उन्होंने कहा कि ऋजुता का अर्थ झुकना नहीं है। वह तो आत्मा की खुशबू है, उसका गुण है।
तेरापंथी सभा के अध्यक्ष डॉ. पी.सी. तातेड़ ने कहा कि जैन धर्म के विस्तार, विकास व जैन समाज में एकता तथा स्वर्णिम भविष्य के लिए जैन साधु-साध्वियां अपनी कई प्राचीन परम्पराओं को समय, काल व परिस्थितवश बदल सकते है। उन्होंने जैन महासभा के शादी में 21 से अधिक व्यंजनों को नहीं बनाने के अभियान चलाने, प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने, तपस्वियों का अभिनंदन व सामूहिक क्षमापना जैसे कार्यों की अनुमोदना की।
महापौर नारायण चौपड़ा ने कहा कि दूसरों की गलतियों को नहीं निकाले तथा क्रोध पर नियंत्रण करें और क्षमा को अपनाएं। सबके साथ मैत्री व करुणा के भाव रखे । औपचारिक क्षमापना की जगह हृदय के अंतरतम भावों से क्षमा करें। उन्होंने वीतराग परमात्मा महावीर के आदर्षों का स्मरण दिलाते हुए कहा कि अंतरतम से क्षमापना करने से आनंद मिलता है तथा व्यक्ति अपने आप में हल्कापन महसूस करता हैं। हमें दूसरों की बजाए स्वयं की गलती व कमियों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए।
नगर विकास न्यास के अध्यक्ष महावीर रांका ने कहा कि कहा कि क्षमा में नम्रता, सहिष्णुता व उदारता होनी चाहिए। हुकमगच्छीय श्रावक संघ के मेघराज सेठिया ने कहा कि क्षमा के बिना जीवन अधर्म है। वैर भाव, राग-द्वेष की समाप्ति के बाद ही भक्ति की शुरुआत होती है। दुर्भभावनाएं व कषायों से निवृति के बाद ही मुक्ति मिलती है। तपागच्छ बीकानेर के सुरेन्द्र बधाणी ने कहा कि प्राणी मात्र के प्रति करुणा, दया व क्षमा की भावना रखे। क्षमा करने वाला वीर होता है। खरतरगच्छ, गंगाशहर के केसरीचन्द सेठिया ने कहा कि क्षमा संस्कृति, संस्कार तथा मन की श्रेष्ठकृति है। क्षमा विश्वास का विधान, नफरत का निदान और अहिंसा का रूप है। श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, भीनासर के महेन्द्र बैद ने कहा कि हमें वह व्यवहार दूसरों के साथ नहीं करना चाहिए जो हमें अच्छा नहीं लगता। हमें वाणी, कार्य व व्यवहार से किसी को भी कष्ट, दुख व तकलीफ नहीं देनी चाहिए। दिगम्बर समाज के निदेश जैन ने कहा कि आग्रह, दुराग्रह मिटाकर प्रेम व स्नेह के भाव रखे। जैन रत्नहितेषी संघ के इन्द्रमल सुराणा ने कहा कि देश की प्रतिष्ठा संतों के चरित्र, आचार से, व्यवहार से होती है। ये धरती को स्वर्ग बनाने के लिए आते है। क्षमा जैन धर्म में उत्तम को सर्वोत्तम, नर को नारायण, आत्मा को परमात्मा बनाता है।
खरतरगच्छ बीकानेर के निर्मल पारख ने कहा कि क्षमा का आभूषण धारण करने वाले की आत्मा निखर जाती है। क्षमा का पर्व आत्म निरीक्षण, समयकत्व की सुरक्षा, अहिंसा, मैत्री व सौहार्द की प्रतिष्ठा का पर्व है। क्षमा को जीवन का अभिन्न अंग बनाएं। ज्ञानगच्छ के तिलोकचन्द दफ्तरी ने कहा कि क्षमा एक प्रक्रिया है जिससे सभी कर्म दूर हो सकते हैं। आत्मा का रूप निखर जाता है। अहिंसा, मैत्री और क्षमा की त्रिवेणी अन्तर हृदय से दिल से दिल मिलाकर क्षमा का पर्व मनायें। साधुमार्गी जैन संघ, बीकानेर के इन्द्रचन्द दूगड़, तेरपंथ सभा, बीकानेर के सुरपत बोथरा, हनुमंत लाल जैन, जैन महिला विंग की प्रीति डागा, जैन यूथ क्लब के उपाध्यक्ष सत्येन्द्र बैद सहित अनेक वक्ताओं ने क्षमापना पर विचार व्यक्त किए। समारोह में आभार व्यक्त करते हुए महामंत्री जतनलाल दूगड़ ने कहा कि युद्ध सर्वप्रथम मन में पैदा होते हैं। कोई भी दुर्भावना की उत्पत्ति पहले मन में होती है। हम मणसर, वायसर, कायसा दो करण तीन योग से क्षमा याचना करें। दूगड़ ने कहा कि सबसे बूरी बात होती है किसी के कारण आंसू, किसी भी व्यक्ति को पीड़ा पहुंचाने वाले कार्य नहीं करना चाहिए।(PB)