बाड़मेर। जैसे-जैसे धन बढ़ा, सुख-सुविधाएं बढ़ी वैसे-वैसे पाप करने के साधन बढ़ते गए। जब जमीन ही खराब होगी तो फल अच्दा कहां से आयेगा। उसी तरह जब शील ही सुरक्षित नही होगा तो संस्कारवान संतान कहां से आयेगी। 16वीं-17वीं शताब्दी के आसपास शांत सुधारक गं्रथ के रचियता महोपाध्याय विनयविजयजी महाराज ने अपने ग्रंथ में इस संसार को भयानक जंगल की उपमा दी है। कर्मों की वर्गणा पांचों आश्रवों मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय, योग के द्वारा प्रतिपल हमारी आत्मा पर लग रही ही लेकिन फिर भी हमने इस संसार को सुखमय माना है जबकि यह असत्य है। ज्ञानियों ने इस संसार को भयंकर दु:खमय बताया है। यह बात गणाधीश पन्यास प्रवर श्री विनयकुशलमुनिजी म.सा ने कही।


प्रखर प्रवचनकार विरागमुनिजी महाराज ने अद्भुत वर्षावास 2019 के अन्तर्गत जिनकांतिसागरसूरि आराधना भवन में उपस्थिति जनसमुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि भूतकाल में अनेक आत्माओं ने मात्र इतना विचार किया कि मैं प्रभु के पास जाऊं, इतने मात्र विचार से उनको केवलज्ञान हो गया। पाप करना दुष्कर नही हैं अनादिकाल से इस जीव की प्रवृति पाप करने की रही है। इस जगत का कोई ऐसा पाप नही है जिसका सेवन इस जीव ने नही किया हो। भूतकाल में अनंतानंत बार पापों का सेवन किया है। पाप करना दुष्कर नही है बल्कि पापों की सम्यक प्रकार से आलोचना करना अतिदुष्कर है।

मुनिश्री ने कहा कि आत्मा की चिंता करने वाले गुरू भगवंत मिलना अत्यंत दुष्कर है। प्रभु ने जो धर्म बताया और वर्तमान में हम जो धर्म कर रहे है उसमे रात-दिन व जमीन-आसमान का अंतर है। परमात्मा द्वारा प्ररूपित धर्म हाथी जैसा और वर्तमान में हम जो धर्म कर रहे है वो हाथी की विष्ठा जैसा है। भूतकाल में हमने मेरूशिखर जितना ढेर लगे उतनी बार रजोहरण ले लिए, चारित्र वेश ले लिया लेकिन आत्मानुभूति वाला जीवन एक बार भी नही जीया। जीवन हमारा प्रभु वचनों के खिलाफ जी रहे है और भावना आत्मकल्याण की भा रहे है जो कभी संभव नही है।

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मुनिश्री ने कहा कि अनादिकाल से जीव की इच्छा सुखी बनने की रही। जिस पदार्थ में दु:ख है तथा दु:ख का कारण है फिर भी हम उसे सुख प्राप्ति का कारण समझा। प्रभु ने जहां दु:ख कहा हमने वहां-वहां सुख की खोज की। इस जीव ने धर्म भी ऊपरी तौर पर किया। धर्म भी किया तो मात्र संसारवृद्धि की कामना के लिए किया। आज तक प्रभु को जिस भाव से जानना था, मानना था उस भाव से कभी प्रभु के पास गये ही नही। श्रीपाल राजा ने मात्र एक नवपद की ओलीजी की उसके प्रभाव से शरीर के रोग तो गया ही साथ में भवरोग भी मिट गया। मात्र एक भव भी परमात्मा की आज्ञा मुजब जी ले तो भवरोग ही मिट जाए।

पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व होगें विभिन्न कार्यक्रम- श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ चातुर्मास समिति, बाड़मेर के सचिव रमेश पारख व मिडिया प्रभारी चन्द्रप्रकाश बी. छाजेड़ ने बताया कि जैन धर्म का महान पर्व पर्वाधिराज पर्यषण का आगाज सोमवार को होगा। महापर्व के अन्तर्गत स्थानीय जिनकांतिसागरसूरि आराधना भवन में गणाधीश पन्यास प्रवर विनयकुशलमुनिजी म.सा. की निश्रा में दिनांक 26 व 27 अगस्त को प्रात: 8.30 बजे अष्ठानिका पर्व प्रवचन, 28 अगस्त को प्रात: 8.30 बजे व दोपहर में 2 बजे से कल्पसूत्र वांचना, 29 अगस्त को प्रात: कल्पसूत्र वांचन, मणिधारी दादा गुरूदेव जिनचन्द्रसूरि महाराज की पुण्यतिथि, सांय 4 बजे पाक्षिक प्रतिक्रमण, 30 अगस्त को प्रात: कल्पसूत्र वांचन, महोपाध्याय देवचन्द्रजी महाराज की पुण्यतिथि, दोपहर 2 बजे सपनाजी उतारना एवं भगवान महावीर जन्मवांचन, सांय 6 बजे प्रतिक्रमण, 31 अगस्त को प्रात: व दोपहर में कल्पसूत्र वांचन, रेवाड़ी 1 सितम्बर को कल्पसूत्र वांचन, 2 सितम्बर को संवत्सरी महापर्व, मूल बारसा सूत्र वांचन, चैत्य परिपाटी, सांय 4 बजे संवत्सरी प्रतिक्रमण, 3 सितम्बर को तपस्वियों की भव्य शोभायात्रा, 4 सितम्बर को सामुहिक तपस्वियों का पारण तथा प्रतिदिन रात्रि में 8 बजे भव्य भजन संध्या का आयोजन स्थानीय वसी कोटड़ा चोबीसगांव भवन में होगा जिसमें अरिहंत कांकरिया एण्ड पार्टी ब्यावर द्वारा भव्य भजनों की प्रस्तुतियां दी जायेगी साथ ही प्रतिदिन परमात्मा की अंगरचना, सामायिक, प्रतिक्रमण, पौषध आदि धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होगा।

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