(देवकिशन राजपुरोहित)। राजस्थान में डोडा पोस्त का प्रचलन बहुत पुराना है पहले जब आमने सामने तलवारों से युद्ध होता था तो वीर सैनिक अफीम ले कर युद्ध करते थे।अफीम से सारा शरीर बंध जाता था।घाव से खून नहीं निकलता था।सर्वप्रथम सैनिकों को राणा सांगा के साथ युद्ध के समय बाबर ने किया था क्योंकि उसके सैनिक जो भी मराते थे या घायल होते थे उनको सबसे पहले दस्त लगती ओर सारा वातावरण गन्दगीयुक्त ओर दुर्गंधबयुक्त हो जाता था।सांगा के सैनिकों की ही तरह उसने भी अपने सैनिकों को अफीम पिलाना शुरू किया जिससे उनको पूरी तरह कब्जी रहती थी और सुन्न में लड़ते रहते थे।अफीम भोग में स्तंभन के लिए लोग काम मे लेते थे।अफीम का धार्मिक व सामाजिक महत्व किसी भी प्राचीन ग्रंथ में नहीं है जबकि अफीम का उल्लेख आयुर्वेद में दवाई बनाने के लिये हुआ है।अफीम के बारे में अनेक दन्त कथाएं कही जाती हैं जो कोई भी शास्त्रोक्त नहीं है।अफीम के लिये अनेक दोहे भी कहे गए थे ।विवाह,शादी,सगाई,मेहमानों के आगमन,लड़के का जन्म मृतक के द्वादसा कार्यक्रम में मूल रूप से अफीम की मनुहार तो की ही जाती थी कि लोगों को जबरदस्ती भी प्रेम से अफीम दी जाती थी।पारिवारिक ओर सामाजिक झगड़ों,मनमुटाव को दूर करने के लिये एक दूसरे के हाथ से अफीम दिलाई जाती थी।आम चुनाव जब भी होते हैं तो राज नेता कई क्विंटल अफीम ओर डोडा मतदाताओं तक खुले आम बेरोक टोक पहुंचते हैं वे कहा से ओर कैसे लाते है यह एक विचारणीय प्रश्न है।


इन्ही कारणों से अशिक्षा ओर अज्ञानवश अनेक लोग अफीम के आदि हो गए थे।धीरे धीरे अफीम की दरें बढ़ती रही और जो सम्पन नही थे वे लोग डोडा ओर उसका चुरा लेने लग गए।ऐसे अफीम के आदि जब तक डोडा या अफीम नही लेते वे किसी काम के नहीं रहते।कुछ जवान लोग अपनी कामुकता बढ़ाने के लिये लेते थे जो बादमे अफीम के आदि हो गए और अफीम महंगा हो जाने के कारण डोडा,पोस्त या चुरा लेने लग गए।
सरकार ने डोडा के आदि लोगों के लिये डोडा के ठेके दे दिए और बाद में डॉक्टर की सलाह पर एक मात्रा निर्धारित कर परमिट भी बना दिये ताकि उन लोगों को निर्धारित मात्रा में सरकारी दरों पर डोडा उपलब्ध हो जाये।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अफीम डोडा को हानिकारक मानते हुए इस पर दुनिया के देशों को कहा कि इस पर तुरन्त रोक के प्रभावी कदम उठाए।भारत सरकार ने भी सभी राज्यों को तुरंत रोक लगाने का आग्रह किया।


राजस्थान सरकार ने भी 2015 में रोक लगाते हुए ठेकों को बंद करने का निर्णय लिया।डोडा जो सरकारी ठेकों से 200 रुपये किलो मिलता था एक हजार रुपये हो गया।राजस्थान उच्च न्यायालय ने तुरंत रोक लगाने के आदेश पर मुहर लगादी।
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने उस रोक को खारिज कर दिया।एक बार फिर कुछ समय के लिये डोडा पर छूट हो गई।ठेके चल पड़े।
बाद में 2016 में नए ठेके नही दिए गए।जिन लोगों के पास डोडा लेन के परमिट थे सब खारिज हो गए।सरकारी चिकित्सालयों को आदेशित किया कि नशा मुक्ति कैम्प लगा कर नशा छुड़ाए।अनेक एनजीओ हरकत में आ गए।करोड़ो रूपये अनुदान सरकार से उठ गए मगर कोई नशा मुक्त नहीं हुआ।
आज जहाँ अफीम की खेती होती है जैसे नीमच मालवा चितौड़ आदि वहां कोई अफीम का प्रचलन नहीं है मगर राजस्थान के उत्तरी पश्चिमी जिलों में तो डोडा पोस्त के हजरीं नही लाखो लोग आदी हैं और उनकी सुबह डोडा लेने से ही शुरू होती है।आज सरकारी स्तर पर डोडा बन्द है।ठेके नहीं है।परमिट निरस्त है मगर डोडा ज्यों का त्यों खुले आम मिलता है फर्क है तो केवल इतना कि डोडा जो 200 रुपये था अब 10 हजार रुपये तक मिलता है।यह डोडा आसानी से इस लिये मिलता है कि स्थानीय पुलिस की पूरी तरह से मिलीभगत है।जब कोई ब्लेक करने वाला पुलिस को हफ्ता नही देता या उसे देने में आनाकानी करता है तो उसे पकड़ कर पुलिस वाहवाही लुटती है।
राजस्थान में सभी समाजों की उच्चस्तरीय संस्थाओं को भी नशा मुक्ति के लिये प्रयास करना चाहिये।लाखों की जनसंख्या वाले राजपुरोहितों के समाज के सब से बड़े स्थान खेतेस्वर धाम ब्रह्मधाम आसोतरा में युवाचार्य श्री ध्यानारामजी वेदांताचार्य की अनुशंसा पर श्री तुलसारामजी महाराज पीठाधीश ब्रह्मधाम ने हजारों लोगों को एकत्रित कर नए नशेड़ी बनने पर ओर प्रभावी कदम के लिये सामाजिक समारीहो में प्रभावी रोक के आदेश प्रसारित कर दिए।परिणाम बड़ा ही सकारात्मक है जिसका अनुकरण अन्य समाजो को भी करना चाहिये।
आवश्यकता इस समय अफीम के 50 साल से अधिक आयु के जो आदी हैं उनकी सुध लेने की है उन डोडा के आदी हैं इन्हें भी जीने का सवैधानिक अधिकार है।इनके अज्ञानता ओर अशिक्षा के कारण अनजाने में हुए अपराध की सजा घुट घुट कर मारने की तो नहीं मिलनी चाहिये।उनका अगर यह नशा सरकार और उसकी एजेंसियों द्वारा छुड़ाया नही जा सकता तो उन डोडा के आदी लोगों को डॉक्टरों के मेडिकल बोर्ड की शिफारिश पर उपयुक्त मात्रा सरकारी दरों पर उपलब्ध कराया जाना चाहिये अन्यथा ऐसे डोडा के आदी लोग ब्लेक में धन की बर्बादी करते रहेंगे।डोडा के नाम पर घटिया कचरा लेते रहेंगे और घुट घुट कर बेमौत मरेंगे।इतना ही नहीं हजारों लोग डोडा अफीम के आदी खत में पड़े सड़ रहे हैं और उनके बेरोजगार मजदूर पुत्र किसी न किसी तरह उनको जीवित रखने के लिये ब्लेक में दस हजार रुपये किलो डोडा ला कर देते हैं जो डोडा सरकारी स्तर पर बन्द है गांव ढाणियों में आसानी से उपलब्ध है।मतलब कहीं तो दाल में काला है।या सारी दाल ही काली है।


जिन एनजीओ ने अफीम डोडा छुड़ाने के नाम पर करोड़ों रुपये दकारकर सरकार को चुना लगाया है उनकी जांच की जावे ओर किन को नशा मुक्त किया भौतिक सत्यापन किया जावे।हमारे यहाँ जहां पोल दिखती है बेईमान लोग ,मंत्रियों,संतरियों,नेताओं के चमचे कोई न कोई एनजीओ के माध्यम से सरकारी धन को लूटने लग जाते हैं।अफीम डोडा छुड़ाने वाले एनजीओ जिनको अनुदान दिया उनकी निष्पक्ष जांच अपेक्षित है क्योंकि करोड़ों खर्च करने के बाद भी आज समस्या जस की तस है तो उन्होंने किसे नशा मुक्त किया।सरकारी एजेंसियों के माध्यम से जनगणना की ही तरह नशेडिय़ों की गणना कराई जा कर उन आदी नशेडिय़ों की शुद्ध ली जानी चाहिए।आज प्रशासन,पुलिस और निष्पक्ष कही जाने वाली मीडिया ने भी आंख मूंद रखी है।भविष्य के लिए यह ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिये कि कोई और नया नशेड़ी नहीं बनना चाहिये।
इस आलेख का मतलब अफीम या डोडा की पैरवी नहीं है और न ही इस घातक जहर का समर्थन है बल्कि उन लोगों की पैरवी है जो मजबूरी में घुट घुट कर मरने पर मजबूर है।उनका भी कोई मानवाधिकार भी तो होगा या नहीं।उनके कोई मूल अधिकार भी है या नही।यह एक शिकायत है उन एनजीओ के खिलाफ जिन्होंने नशामुक्ति के नाम पर करोड़ों का चूना लगा चुके।यह शिकायत है उन अफसरों के खिलाफ जिनकी अनदेखी के कारण डोडा ओर अफीम गांव गांव तक पहुंच कर मन चाही दरों पर बेचा जाता है और सरकार से मांग है कि इन विषयों पर ठोस कार्यवाही करें।