बाड़मेर। विश्व मैत्री व करूणा के संदेश को देश व लोक व्यापी बनाना ही पर्युषण पर्व की महता है। पुरे वर्षभर में राग-द्वेष, मोह-माया के चक्कर में किए गए पापों का आत्मावलोकन कर भावों की मलीनता का शोधन करने का नाम है पर्युषण। पर्युषण पर्व की इस आध्यात्मिक शिविर में संयम, त्याग, तप, चिंतन व प्रायश्चित के माध्यम से साधक अहिंसा प्रेम, दया व करूणा को आचरण के माध्यम से अपने जीवन में उतारता है। पर्युषण पर्व मन को रूपांतरित करके जीवन को बदलने का 8 दिवसीय सुअवसर है। इसमें संतों के सानिध्य में साधक प्रज्ञा की आंख, विवेक का चक्षु व आत्मबोध की प्राप्ति करके मुक्ति की दशा में जीवन बिताने की ओर अग्रसर होता है।
गणाधीश पन्यास प्रवर विनयकुशल मुनिजी महाराज ने अद्वितीय वर्षावास 2019 के अन्तर्गत जिनकांतिसागरसूरि आराधना भवन में पर्वाधिराज पर्युषण के प्रथम दिन ‘अष्ठान्हिका पर्व प्रवचनÓ विषय पर उपस्थिति जनसमुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि जिस प्रकार राजा, मंत्री हमारे घर आने वाला होता है तब हम आस-पास की गंदगी का दूर कर साफ-सफाई करते है, तोरणद्वार बांधते है उपहार लाते है तथा मेहमान आते तब उत्साह रहता है वैसे ही पर्वाधिराज पर्युषण पर्व हमारे राजा व मंत्री है उनका स्वागत करने के लिए हमारे मन के कुलुषित विचार, कषाय को दूर कर मन की साफ-सफाई की पर्वाधिराज का स्वागत करना है।
ये पर्व विभाव से स्वभाव दशा में लाने का पर्व है। अन्य पर्व पर बच्चे मिठाई के लिए रोते है लेकिन पर्युषण पर्व पर बच्चे उपवास करने की जिद्द करते है। मिथ्यात्व से सम्यक्त्व व विभाव से स्वभाव में लाने का आलौकिक पर्व है, ये आत्मशुद्धि का पर्व है। हम प्रतिवर्ष पर्वाधिराज पर्युषण पर्व मनाते है मात्र रूढि़ की तरह। इन आठ दिनों में निंदा, चुगली, हरी का त्याग, होटल का त्याग, रात्रि भोजन का त्याग करके इस पर्व को सार्थक बनाना है। आज हमारी स्थिति यह है कि हम पर्व का ढिंढोरा पिटते है लेकिन इधर-उधर की पंचायती करके समय व्यर्थ करते है।
अगर इसी तरह की हमारी प्रवृति रही तो हमारी स्थिति उस व्यक्ति के समान हो जाती है जो पचास मंजिल चढऩे के बाद कमरे की चाबी नीचे भूल जाता है।
मुनिश्री ने संबोधित करते हुए कहा कि श्रावक के पर्युषण पर्व के अन्तर्गत श्रावक के पाच कर्तव्य बताये गए है जिसमें अमारी परवर्तन, साधर्मिक भक्ति, क्षमापना, अ_म व चैत्य परिपाटी ये श्रावक के पर्युषण पर्व के मुख्य कर्तव्य है। संसार में साधर्मिक भक्ति से बढ़ा कोई दूसरा परोपकार नहीं है। व्यक्ति को अपने मानवीय स्वभाव में साधर्मिक भक्ति के पुण्यशाली भाव को ढाल लेना चाहिए। क्योंकि यही मोक्ष का सरल साधन भी है। साधर्मिक भक्ति पर मुनिश्री द्वारा कुछ मार्मिक दृष्टान्त सुनाते समय मुनिश्री सहित सभासदों की आंखे नम हो गई तथा मुनि श्री की प्रेरणा से अनेक श्रद्धालुओं ने अपनी राशि साधर्मिक भक्ति में अर्पित की।
चातुर्मास समिति के मिडिया प्रभारी चन्द्रप्रकाश बी. छाजेड़ व अशोक संखलेचा ‘भूणियाÓ ने बताया कि पर्युषण पर्व के अन्तर्गत दूसरे दिन सुबह 6.30 बजे चैत्य परिपाटी के लिए महावीर सर्कित स्थित महावीर जिनालय जायेगें जहां पर भक्तामर आदि का मंगल पाठ होगा। प्रात: 7 बजे स्नान पूजा, प्रात: 8.45 बजे अष्ठान्हिका प्रवचन, दोपहर 2.00 बजे गहुंली प्रतियोगिता, सांय 7 बजे प्रतिक्रमण, सांय 8 बजे भक्ति भावना कार्यक्रम होगा जिसमें अरिहंत कांकरिया एण्ड पार्टी ब्यावर द्वारा भजनों की प्रस्तुतियां दी जायेगी। बुधवार को कल्पसूत्र बोहराने आदि का कार्यक्रम आयोजित होगें।