बीकानेर। अपनी अलहदा मस्ती के लिए दुनिया में पहचाना जाने वाला बीकानेर शहर की हवाओं पर बसंत का मौसम धीरे-धीरे राज कर रहा है तब जब इस ऋतु पर रंगोत्सव होली का ‘रंग ‘ लगातार उसका छाने के लिए इंतजार कर रहा हो, तो फिर उसके बाद आने वाला त्यौंहार ‘गणगौर उत्सव ‘ की धूम अभी से शुरु हो चली है। गणगौर राजस्थान का एक प्रमुख त्यौंहार है, जो प्रदेश में आस्था, पे्रम और पारिवारिक सौहार्द्र का सबसे बड़ा महामहोत्सव है। इस दौरान कुंवारी लड़कियां व विवाहित महिलाएं शिवजी [ईसरजी] और पार्वती जी [गौरी] की पूजा करती हैं। महिलाएं गणगौर पूजन तथा व्रत कर अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं। होलिका दहन के दूसरे दिन से 18 दिनों तक यह त्यौंहार मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार माता गवरजा होती के दूसरे दिन अपने पीहर आती है तथा आठ दिनों के बाद ईसर [भगवान शिव] उन्हें वापिस लेने के लिए आते है।
गणगौर पूजन के मद्देनजर बीकानेर संभाग मुख्यालय के विश्वकर्मा गेट के अंदर पिछले 50 वर्षों से ईश्वर दास आर्ट गैलेरी में गणगौर-ईशरजी का सर्वरुप कारीगर बनाते आ रहे हैं। गणगौर पूजा में गवर-ईशरजी की प्रतिमाएं बहुत ही आकर्षक और बेजोड़ तरीके से लकड़ी पर मूर्ति का स्वरुप देकर रिवाज को मनाया जा रहा है। गैलेरी के सांवरलाल सुथार, गिरधरलाल का कहना है कि उनके दादा पहले इस कार्य को करते थे, अब उनके पिता, भाई व स्वयं वे इस कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं।
उन्होंने बताया कि उनका परिवार कई पीढिय़ों से गणगौर-ईशरजी और भाया बनाने के कार्य को बखूबी अंजाम दे रहा है। सांवरलाल सुथार ने बताया कि यह पूर्ण कार्य लकड़ी पर ही बनाया जाता है।