ओम एक्सप्रेस न्यूज बीकानेर। अपनी मातृभाषा के हक की पीड़ा किसी व्यक्ति विशेष की नहीं अपितु उस भाषा के करोड़ो समर्थको की होती है। आज राजस्थानी भाषा अपने इसी हक से वंचित है, जबकि राजस्थानी भाषा वैज्ञानिक स्तर पर हर मानक को पूर्ण करती है। ऐसी स्थिति में अपनी मातृभाषा के प्रति युवा एवं छात्र वर्ग भी अपनी पीड़ा अपने शब्दों में व्यक्त करता है। ऐसा ही केन्द्रीय भाव आज डॉ. टैस्सीटोरी की 98वीं पुण्यतिथि पर प्रज्ञालय संस्थान एवं राजस्थानी युवा लेखक संघ द्वारा आयोजित तीन दिवसीय ‘ओळू- समारोह’ के तीसरे दिन समापन अवसर पर नालन्दा परिसर में सृजन सदन में आयोजित राजस्थानी भाषण प्रतियोगिता में उभर कर सामने आए।
आज प्रात: मातृभाषा ‘राजस्थानी आपणी ओळखाण” विषय पर आयोजित भाषण प्रतियोगिता में अनेक छात्र-छात्राओं ने अपनी सशक्त अभिव्यक्ति व्यक्त की। जिसे सुनकर सभी उपस्थित लोगों ने युवा एवं छात्रों की अपनी भाषा में प्रस्तुति को बहुत अच्छा बताया।
प्रारंभ में राजस्थानी मान्यता आन्दोलन प्रवर्तक कवि-कथाकार कमल रंगा ने कहा कि ऐसी प्रतियोगिता के माध्यम से युवा पीढ़ी एवं छात्र वर्ग अपनी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति की परम्परा, इतिहास से जुड़कर अपनी अभिव्यक्ति देता है यही आयोजन की सार्थकता है।
कार्यक्रम प्रभारी हरिनारायण आचार्य ने कहा कि खुशी की बात है कि बीकानेर और आयोजक संस्था प्रदेश में सृजनात्मक नवाचार करते हुए अपनी आगीवाण भूमिका के तहत सबसे पहले वाद-विवाद, निबन्ध, भाषण प्रतियोगिता के साथ मेहंदी मांडणा प्रतियोगिता का आयोजन करती रही है। जिससे निरन्तर युवा पीढ़ी जुड़ती रही है।
भाषण प्रतियोगिता के निर्णायकगण सीमा पालीवाल, मदनमोहन व्यास द्वारा घोषित निर्णय के अनुसार लविना बजाज प्रथम, अंजली पुरोहित-द्वितीय, अभिषेक सोलंकी-तृतीय स्थान पर रहे एवं नीरज सुथार को प्रोत्साहन के लिए चुना गया।
प्रतियोगिता के संदर्भ मे बोलते हुए शायर कासिम बीकानेरी ने कहा कि ऐसे आयोजन ही भाषायी आंदोलन को जन-जन तक ले जाते है इसी क्रम में युवा शिक्षाविद् राजेश रंगा ने कहा कि अपनी मातृभाषा में व्यक्ति सशक्त अभिव्यक्ति दे सकता है। ऐसे आयोजन से युवा वर्ग भूमिका के प्रति सजग हो जाता है।