OmExpress News / Jaipur / पिंंकसिटी में चल रहे जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (JLF 2020 3rd Day) के तीसरे दिन शनिवार को बंटवारे के दर्द पर चर्चा (Discussion) की गई. आज़ादी के बाद बंटवारे पर बनी डॉक्यूमेंट्री ‘पार्टीशन वॉइसेस’ (Partition voices) में जो बात कही गई है, उसमें लोगों का बरसों पुराना छिपा दर्द (Pain) सामने आया. फेस्टिवल के इस 89वें सेशन में काफी तादाद में लोग पहुंचे और डॉक्यूमेंट्री बनाने वाले कविता पुरी (Kavita Puri) और सैम दलरीम्पल (Sam Dalrymple) को सुना. इस सेशन को मोडरेट अर्चना मल्होत्रा ने किया.
कभी न थमने वाला दर्द मिला
आजादी के वक्त हिंदुस्तान को अंग्रेजों से तो निजात मिल गई, लेकिन उनको कभी न थमने वाला एक दर्द मिला जिसका नाम था बंटवारा. बंटवारे के दर्द को बयां करती डॉक्यूमेंट्री ‘पार्टीशन वॉइसेस’ में उन लोगों की आपबीती बताई गई है जो बंटवारे के वक्त मौजूद थे. उन्होंने और उनके परिवारों ने बंटवारे के इस दंश को झेला था. बंटवारे के बाद यहां आए लोगों के अनुभव आंखों में आंसू ला देने वाले थे. कैसे उनके परिवार, उनके खानदान और उनके घर बंटवारे के वक्त बिखर गए. JLF 2020 3rd Day
हालात खतरनाक थे और भविष्य पता नहीं था
बंटवारे की त्रास्दी झेलनें वालों को एक लंबा सफर बिना किसी तैयारी के करना था. उस समय के हालात खतरनाक थे और भविष्य को लेकर के कुछ पता नहीं था. इन तमाम हालात और दौरों से गुजरते लोगों के अनुभवों की यह कहानी बताती है कि बंटवारे के वक्त किस तरीके से लोगों ने अपनी पुरानी दुनिया को पूरी तरह से खो दिया था और नई दुनिया को बनाने में उन्हें कितना वक्त लगा. आज भी वे जब उस दुनिया को याद करते हैं तो एक टीस सी उठती है जो बंटवारे ने उनसे छीन ली थी. JLF 2020 3rd Day
यह कहानी पुराने जख्मों को कुरेदती है
डॉक्यूमेंट्री को लेकर के जब सेशन में चर्चा की गई तो बहुत से लोगों ने अपने-अपने विचार भी रखे और सवाल-जवाब भी किए. कुछ लोग इससे नाखुश भी नजर आए. एक श्रोता ने कहा कि ये जो कहानी है लोगों के पुराने जख्मों को कुरेदती है. इसका इस्तेमाल किया जाना गलत है.
चीन से हार के लिए कृष्णा मेनन बलि का बकरा बन गए : जयराम रमेश
कुलदीप नैयर को पढ़ना जरूर चाहिए, लेकिन उनकी बातों पर विश्वास करने की जरूरत नहीं। पत्रकार लोग अपनी याद्दाश्त के आधार पर किताब लिखते हैं, कोई सबूत नहीं, कोई कागज नहीं, कोई व्याख्या नहीं। मैं कुलदीप नैयर का सम्मान करता हूं और अपनी किताब में मैंने उनका जिक्र भी किया है। लेकिन 1962 में चीन से युद्ध का जो नतीजा था, वह पिछले तीन चार साल से जो प्रक्रिया चल रही थी, उससे उपजा था। इसलिए भूतपूर्व रक्षा मंत्री कृष्णा मेनन को चीन से हार के जिम्मेदार नहीं ठहराना चाहिए। यह कहना था कांग्रेस नेता जयराम रमेश का।
उन्होंने सत्र के दौरान एक सवाल के जवाब में कहा, यह बात भी सही है कि 1958 से लेकर वित्त मंत्री ये कहा करते थे कि भारत को रक्षा, सुरक्षा पर ज्यादा खर्च नहीं करना चाहिए क्योंकि यह बापू की विरासत के खिलाफ है। आर्मी चीफ जनरल सौमेया ने भी युद्ध के पांच महीने पहले लिखा कि चीन के साथ युद्ध होना असंभव है। चीन के साथ समस्या कूटनीति और राजनीति से ही हल हो सकती है। हालांकि कृष्णा कहते थे कि बॉर्डर की जो समस्याएं हैं, वो कूटनीति और राजनीति से ही हल होनी चाहिए। अंत तक कृष्णा की यही मंशा थी कि सीमा की समस्याओं का हल कूटनीति से ही निकाला जा सकता है।
1950 के दशक में मेनन एकमात्र एेसे व्यक्ति थे, जो यह कहते थे कि चीन के साथ हमें समझौता करना चाहिए। आज पिछले पंद्रह साल से बॉर्डर एग्रीमेंट की कोशिश की जा रही है, लेकिन हुआ नहीं है। पाकिस्तान के संदर्भ में कृष्णा कट्टरवादी थे, लेकिन चीन के लिए उदारवादी थे। चीन को वो शत्रु नहीं मानते थे, वे मानते थे कि हिंदुस्तान और पाकिस्तान की विचारधारा में जमीन आसमान का अंतर है। कृष्णा मेनन को पूरी तरह से दोषी ठहराना गलत है।
कई गलतियां संसद में हुईं, हमारे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गोविंद वल्लभ पंत, हमारे आर्मी के लोगों से भी कई गलतियां हुईं। पंडित नेहरू जानते थे कि यदि कृष्णा मेनन का इस्तीफा नहीं लेते तो भी उन्हें इस्तीफा देना पड़ता। कृष्णा मेनन इस मामले में बलि का बकरा बन गए। हालांकि 1962 में जो हुआ वो हम आज भी भुगत रहे हैं। अटल बिहारी बाजपेयी ने भी मेनन की कड़ी आलोचना की थी। लेकिन वही बाजपेयी 2003 में बीजिंग जाकर चीन के पीएम से कहते थे कि सीमाओं की समस्याएं बातचीत से हल होनी चाहिए।
खेल की चर्चा में सियासी गुगली, शशि थरूर ने ली चुटकी- कौन कर रहा है क्रिकेट की ‘नोटबंदी’? – JLF 2020 3rd Day
गुलाबी नगरी जयपुर में आयोजित हो रहे 5 दिवसीय जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (JLF) में शनिवार को फ्रंट लोन में आयोजित 108वें सेशन में क्रिकेट को लेकर बात की गई. ‘क्रिकेट: द स्पिरिट ऑफ द गेम’ (Cricket: The Spirit of the Game) सेशन में कांग्रेस नेता शशि थरूर (Shashi Tharoor) और प्रख्यात पत्रकार राजदीप सरदेसाई (Rajdeep Sardesai) की बातचीत काफी चर्चा में रही. क्रिकेट की इस बातचीत में कई सियासी गुगली भी सामने आईं. इस सेशन में क्रिकेट के हालात और जुड़ाव दोनों को लेकर चर्चा हुई. JLF 2020 3rd Day
कुछ भी बदल जाये ये खेल गेंद बल्ले का ही रहेगा
सेशन में ऑस्ट्रेलिया के पत्रकार गिदोन हेग ने भी अपने अनुभव साझा किए और बताया की कैसे क्रिकेट अपने आप में एक जज़्बा है. सेशन को मॉडरेट केशव गुहा ने किया. क्रिकेट के बदलते स्वरूप में कैसे लोगों की सोच बदली है पर राजदीप सरदेसाई ने कहा कि चाहे कुछ भी बदल जाये ये खेल गेंद बल्ले का ही रहेगा. एक दौर महेंद्र अमरनाथ का टेस्ट वाला था और आज एक दौर विराट का T-20 वाला है. कुछ भी बदल जाए लेकिन क्रिकेट की आत्मा वही है. बस अब खिलाड़ियों को मौका अच्छा मिल रहा है.
कोहली और मोदी ने खेल और सियासत के कायदे बदल दिए
सरदेसाई ने कहा कि जब एक युवा खिलाड़ी को 10 करोड़ में खरीदा गया तब कपिल देव ने उनसे कहा था कि हमने क्रिकेट के लिए कितना कुछ किया और सबसे बेहतर करने पर भी 1 करोड़ ही मिले थे. सरदेसाई ने क्रिकेट के आज दौर में विरोट कोहली को इलेक्शन के दौर वाले पीएम नरेन्द्र मोदी से कम्पेयर किया. उन्होंने कहा कि दोनों ने खेल और सियासत के कायदे बदल दिए हैं. इस पर शशि थरूर ने चुटकी ली कि ऐसा है तो क्रिकेट की ‘नोटबंदी’ कौन कर रहा है ? पाकिस्तान के साथ क्रिकेट के रिश्तों के अब कोई आसार नजर नहीं आते.
पाकिस्तान से क्रिकेट के रिश्तों पर बोले थरूर
पाकिस्तान से क्रिकेट के रिश्तों को लेकर शशि थरूर ने कहा कि मौजूदा हालात को देखकर ऐसा लगता नहीं है कि हमारे पाकिस्तान से रिश्ते इतने बेहतर होंगे कि हम जल्दी उनके साथ क्रिकेट खेलें. एक लंबे वक्त तक हमने पाकिस्तान को मोस्ट फेवर्ड कंट्री बनाए रखा. लेकिन अब ऐसा नहीं है. सेशन में राजदीप सरदेसाई ने चुटकी लेते हुए कहा शशि थरूर के मस्त अंदाज को देखकर मैं हमेशा कहता हूं कि उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष होना चाहिए. JLF 2020 3rd Day