बीकानेर । पांच शताब्दी से अधिक प्राचीन बीकानेर के जूनागढ किले को सर्वश्रेष्ठ दुर्ग मानते हुए अमेरिका की प्रतिष्ठित टे्रवल एजेन्सी ’’ट्रिप एडवाइजर’’ ने “सर्टिफिकेट ऑफ एक्सीलेन्स-2015” सम्मान से सम्मानित किया है। जूनागढ़ को सम्मान मिलने पर बीकानेर ही नहीं राजस्थान व भारत का गौरव बढ़ा है । इस एतिहासिक किले को देखने के लिए अब देश-विदेश से अधिक देशी-विदेशी सैलानी आएंगे।
महाराजा राय सिंह ट्रस्ट की ओर से संचालित जूनागढ़ किले को ट्रिप एडवाइजर ने अनेक मानदंडों के आधार पर यह सम्मान प्रदान किया है। इनमें पर्यटकों को मिलने वाली मेहमानबाजी, आधारभूत सुविधा, प्राचीनता, स्थापत्य कला आदि को ध्यान में रखते हुए देश के विभिन्न किलो के सर्वे के बाद इसे पुरस्कार से नवाजा है।
जूनागढ़ किले के प्रभारी कर्नल देवनाथ सिंह ने बताया कि किले को मिली उपलब्धि पर पूर्व राजमाता सुशीला कुमारी, जन प्रतिनिधियों, पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों, होटल व्यवसाइयों तथा आम नागरिकों ने खुशी जाहिर करते हुए इसे बीकानेर के पर्यटन विकास में महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया है। जूनागढ़ के विकास में महाराजा राय सिंह ट्रस्ट के साथ जिला प्रशासन व पर्यटन विभाग ने समय-समय पर महत्वपूर्ण योगदान दिया है। महाराजा राय सिंह ट्रस्ट ने पिछले एक दशक में करीब 30 लाख रुपए व्यय कर किले के गज मंदिर की छत को पुरा वैभव के अनुसार पुन: निर्मित करवाया है वहीं अनोप महल के कोटियार्ड का नवीनीकरण, फूल व चन्द्र महल के भीति चित्रों के नवीनीकरण, होली चौक की दीवारों पर बीकानेरी व मुगल शैली की भीत्ति चित्रकारी करवाई है। इसके अलावा कार पार्किंग, शिव विलास पार्क का विकास, जूनागढ़ की चारों ओर की दीवार को ऊंचा करवाने सहित विविध विकास कार्य करवाएं है। दर्शकों को बिजली के गुल होने पर किसी तरह की परेशानी नहीं हो इसके लिए उच्च क्षमता का जनरेटर लगवाया गया है वहीं ऑडियो गाइड की व्यवस्था की है। ऑडियो गाइड हिन्दी, अंग्रेजी, जर्मन व फ्रैंच भाषा में जूनागढ़ के वैभव की जानकारी देता है।
पूर्व राजमाता सुशीला कुमारी ने बताया कि बीकानेर के छठे शासक राजा रायसिंह ने नया दुर्ग चिंतामणि (वर्तमान जूनागढ़) को ईस्वी सन् 1589-1593 के बीच बनवाया। पूर्व में बीकानेर रियासत के राजाओं का बीकानेर में ही प्रवास रहता था। बीकानेर रियासत के अब तक हुए 24 राजाओं में से डेढ़ दर्जन राजाओं ने इसके विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
जूनागढ़ दुर्ग का निर्माण- इस दुर्ग के पाये की नींव 30 जनवरी 1589 को गुरुवार के दिन डाली गई। इसकी आधारशिला 17फरवरी 1589को रखी गई। इसका निर्माण 17 जनवरी 1594 गुरुवार को पूरा हुआ। स्थापत्य, पुरातत्व व ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस किले के निर्माण में तुर्की की शैली अपनागई गई, जिसमें दीवारें अंदर की तरफ झुकी हुई होती हैं। दुर्ग में निर्मित महल दिल्ली, आगरा व लाहौर स्थिति महलों की भी झलक मिलती है।
चतुष्कोणीय दुर्ग- यह दुर्ग चतुष्कोणीय आकार में है जो 1078 गज की परिधि में निर्मित है तथा इसमें औसतन 40 फीट ऊंचाई तक के 37 बुर्ज हैं जो चारों तरफ से दीवार से घिरे हुए हैं। इस दुर्ग के दो प्रवेश द्वार हैं करण प्रोल व चांद प्रोल। करण प्रोल पूर्व दिशा में बनी है जिसमें चार द्वार हैं तथा चांद प्रोल पश्चिम दिशा में बनी हैजो एक मात्र द्वार धु्रव प्रोल से संरक्षित है। सभी प्रोलों का नामकरण बीकानेर के शाही परिवार के प्रमुख शासकों एवं राजकुमारों के नाम पर किया गया है। इसमें से कई प्रोल ऐसी हैं जो दुर्ग को संरक्षित करती हैं। पुराने जमाने में कोई भी युद्घ तब तक जीता हुआ नहीं माना जाता था जब तक कि वहां के दुर्गपर विजय प्राप्त न कर ली जाती । शत्रुओं को गहरी खाई को पार करना पड़ता था, उसके बाद मजबूत दीवारों को पार करना होता थज्ञ। तब कहीं जाकर दुर्ग में प्रवेश करने के लिए प्रोलों को अपने कजे में लेना होता था। प्रोलों के दरवाजे बहुत ही भारी व मजबूत लकड़ी के बने हुए है इसमें ठोस लोहे की भाले नुमा कीलें लगी हुई है ।
दुर्ग के सूरजप्रोल मुख्य द्वार रही है इसका निर्माण महाराजा गजसिंह के शासन काल में किया गया। प्रोल के निर्माण के लिए पत्थर जैसलमेर से लाया गया। सूरज प्रोल आकर्षक मेहराबदार बड़े कमरे के आकार में बनी है जो दोनों तरफ खुलती है । इस प्रोल के पास भगवान गणेशजी का मंदिर होने के कारण इसको गणेश प्रोल के नाम से जाना जाता है। प्रोल से निकलते ही देवी द्वारा है जिसे देवी नवदुर्गा मंदिर भी कहा जाता है। देवी द्वारे के पिछवाड़े जनानी ड्योढ़ी एवं पीपलियों का चौक है। जनानी ड्योढ़ी से अतीत से आज धूमधाम से गणगौर व तीजमाता की सवारी निकल रही है। इसके अलावा मर्दानी ड्योढ़ी, हुजूर की पैड़ी अपने आप में इतिहास व अतीत की अनेक घटनाओं का स्मरण दिलाती है।
बीकानेरी दुलमेरा के लाल पत्थर से निर्मित तीन मंजिला दलेल निवास का निर्माण महाराजा गंगासिंह ने करवाया था। महाराजा दलेल सिंह , महाराजा गंगासिंह के पितामह थे। दलेल निवास के सामने एक गहरा कुआं है जिसे ’’रामसर’ के नाम से जाना जाता है। जूनागढ़ के विक्रम विलास की पैड़ी, लाल पत्थर से बनी आज भी पर्यटकों को आकर्षित करती है। जूनागढ़ के तैंसीस करोड़ देवी देवताओं का मंदिर भी आस्था व विश्वास का केन्द्र बना है। इसमें महाराजा अनूप सिंह द्वारा दिकन से ला गई गई 700 बहूमूल्य कांस्य प्रतिमांए प्रतिस्थित है। मीना ड्योढ़ी, करण महल, कुंवर पदा महल, अनूप महल, फूल महल, बादल महल, चन्दर महल, राय निवास कचहरी, सरदार निवास (बादल महल), सुर मंदिर चौबारा, गज मंदिर, चतर निवास, डूंगर निवास, लाल निवास, गंगा निवास महल एवं गंगा निवास दरबार हाल में मुगल व बीकानेर की स्थापत्य व चित्रकला शैली को दर्शाया गया है।