संगीत का एक ऐसा विशाल वटवृक्ष जिसकी जडें बहुत गहराई तक फैली हुई थी । जिसकी शाखाएं देश के संगीत संस्थानों, विश्वविद्ध्यालयों से लेकर लोक मंचों तक प्रतिबिम्बित हो रही थी । संगीत के शुद्ध रुप को बनाये रखने के लिए डॉ.मुरारी शर्मा ने अपने आपको समर्पित कर दिया । संगीतोत्सव में देश भर के कलाकार दिसम्बर/जनवरी के अंतिम सप्ताह या प्रथम सप्ताह में संगीत नगरी इस मरुभूमि में एकत्रित होते रहे हैं, संगीत पर अपने विचारों का आदान प्रदान करते रहे हैं । लेकिन अब……. ? अचानक से ऐसी लौ का परम तत्व में विलिन हो जाना मन को सालता है ।
डॉ.शर्मा नृत्य, कंठ संगीत व तबला वादन के लिए विख्यात थे । डॉ. शर्मा की साधना का अध्ययन करने से इनके विराट व्यक्तित्व-कृतित्व के नये आयामों से साक्षात्कार होता है । डॉ.शर्मा का जन्म राजस्थान के जाने माने संगीत मनीषी, शोधकर्मी, डॉ.जयचन्द्र शर्मा, संगीत विदुषी श्रीमती जयंती देवी के यहां 04 अप्रेल 1944 को चुरु (राजस्थान) में हुआ । मुरारी शर्मा ने जैन श्वेताम्बर तेरापंथी विद्ध्यालय चुरु से 1960 में हाई स्कूल, 1968 में बी.ए. और 1971 में एम.ए. (हिन्दी साहित्य) की परीक्षा उतीर्ण की तथा संगीत में संगीत निपुण ( गायन), संगीत अलंकार (शिक्षा मुख्य), संगीत प्रवीण (डी.म्यूज.) संगीत प्रभाकर (तबला एवं कथक) और संगीत भूषण (सितार) उपाधियां प्राप्त की । इनकी पहचान संगीत के मौन कला साधक के रुप में जग जाहिर है ।
बीकानेर अंचल में डॉ. मुरारी शर्मा संगीत की एक ऐसी त्रिवेणी थी जो गायन-वादन और नृत्य में पारंगत, शास्त्रीय विद्ध्याओं में पांडित्य के साथ लोक संगीत के उन्नयन एवं प्रचार प्रसार में राजस्थान की धरती से खामोशी के साथ जुडे हुए थे । सदा मौन रहने वाले मुरारी शर्मा की कला बोलती थी । प्रचार-प्रसार से कोसों दूर रहने वाले डॉ.मुरारी शर्मा का जीवन एक ऋषि जैसा था जो संगीत के माध्यम से लोक कल्याण की कामना करते हुए शांति, सद्भाव एवं भाईचारे का सन्देश देते हैं । डॉ.मुरारी शर्मा केवल विराट व्यक्तित्व ही नहीं है वरन संगीत का एक बहुत बडा संस्थान था जिसके सान्निध्य में संगीत को सीखने, समझने और आत्मसात करने का अवसर कलाकारों को मिलता था । मुरारीजी के पिताजी संगीत मनीषी डॉ.जयचन्द्रजी संगीताचार्य के साथ एक सच्चे राष्ट्रभक्त भी थे । स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु राष्ट्रीय गीत गायन और इसके प्रचार प्रसार में निरंतर सक्रिय रहे ।
संगीत को महलों से निकाल कर आमजन तक पहुंचाने का दुष्कर कार्य सहज तरीके से कर दिखाया । इस प्रकार डॉ.मुरारी शर्मा ने संगीत को विरासत में प्राप्त कर मन से आत्मसात किया । मुरारीजी, अपने पिता डॉ. जयचन्द्र शर्मा को नृत्य-गायन में, उस्ताद जुगल खां को तबले में और उस्ताद शमशुद्दीन खां साहब को गायन में गुरु मानते थे । वर्तमान में डॉ. मुरारी शर्मा श्री संगीत भारती बीकानेर में निदेशक के पद पर आसीन थे । डॉ.शर्मा के रुचिगत विषय नृत्य नाटिका, गीति नाट्य, राजस्थान के लोक नाट्य संगीत पारिभाषिक शब्दकोष, राजस्थान का लोक संगीत (शास्त्रीय पक्ष) संगीत शिक्षा मनोविज्ञान, संगीत और दर्शन, पूर्व एवं पश्चिम देशों के संगीत का अध्ययन रहे हैं । इन विषयों पर शोधार्थियों का डॉ.मुरारी शर्मा ने सदैव मार्गदर्शन किया और खयाल, नृत्य नाटिका, लेखन-निर्देशन कर पूरे देश में प्रस्तुतियां करवायी ।
डॉ. मुरारी शर्मा ने संगीत विषय पर अनेकानेक पत्र वाचन किए जिनमें विशेष थे-नगर श्री चुरु, महर्षि वेद संस्थान नोएडा, राष्ट्रभाषा हिन्दी साहित्य समिति श्री डूँगरगढ, संकल्प नाट्य समिति बीकानेर, स्वर साधना समिति मुम्बई, इन्दिरा कला संगीत विश्वविद्ध्यालय खैरागढ, बडौदा म्यूजिक कॉलेज बडौदा, संगीत महाभारती मुम्बई, जयनारायण विश्वविद्ध्यालय जोधपुर और संगीत नाटक अकादमी नई दिल्ली । डॉ.मुरारी शर्मा के निर्देशन में देश भर में अनेकानेक नृत्य नाटिकाओं का मंचन किया गया जिनमें कुछ विशेष थी- ऋतु श्रृंगार, सावणिये री तीज, भस्मासुर, कनुप्रिया, शकुंतला, सागर संगम, बाल कामायिनी, लूना, चन्दन बाला, लखपत, हमारा स्वर्ग, आषाढ भूति, महात्मा ईशु, रास पंचाध्यायी, गोवर्धन लीला, कला व संस्कृति के पोषक महाराजा अनूपसिंह आदि ।
संगीत परीक्षक के रुप में डॉ.शर्मा लगातार अपनी सेवाएं दी, जिसमें प्रमुख थी-शिक्षा विभागीय परीक्षाएं (संगीत) राजस्थान बीकानेर, अखिल भारतीय गांधर्व महाविद्ध्यालय मंडल गिरज, वृहद गुजरात संगीत समिति अहमदाबाद, प्राचीन कला केन्द्र चंडीगढ, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान अजमेर, महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्ध्यालय अजमेर, भातखंडे संगीत विद्ध्यापीठ लखनउ, महाराजा गंगासिंह विश्वविद्ध्यालय बीकानेर, वनस्थली विश्वविद्ध्यालय आदि ।
डॉ.मुरारी शर्मा ने पंजाब में रुसी नृत्यांगना रीना दयाल के साथ कथक एवं नृत्य नाटिका लूणा में नृत्याभिनय कर धूम मचाई, जिसे देखकर फिल्मकार गुलजार ने फिल्म में संगीत के लिए प्रस्ताव रखा जिसे डॉ.शर्मा ने सहज भाव से टाल दिया । इसी प्रकार फिल्मकार सावनकुमार टॉक की फिल्म प्रीति के पार्श्व संगीत के समय डॉ.मुरारी शर्मा को प्रस्ताव मिला मगर डॉ.शर्मा ने इस प्रस्ताव को भी विनम्रता से टाल दिया । जबकि इससे पूर्व डॉ. शर्मा लालगढ पैलेस में फिल्म राजहठ की शुटिंग के समय नृत्य कर सोहराब मोदी को प्रभावित कर चुके थे ।
देश की विभिन्न संस्थाओं ने समय-समय पर आपके कार्यों का सम्मान किया इनमें विशेष है – पंजाब विश्वविद्ध्यालय, स्वर साधना समिति मुम्बई, पंजाब कला केन्द्र चंडीगढ, संगीत कला केन्द्र आगरा, वृन्दावन शाष्त्रीय संगीत संस्थान पूना, सोमानी फाउंडेशन मुम्बई, संगीत कला केन्द्र भीलवाडा, वरिष्ठ नागरिक समिति, जुबिलि नागरी भंडार, शब्दरंग साहित्य एवं कला संस्थान बीकानेर, अल्लाहजिलाई बाई मांड गायिकी संस्थान, जय भीम संस्थान, जनजीवन कल्याण सेवा समिति, सखा संगम सहित बीकानेर की अनेकों संस्थाएं आपकी कला का मान–सम्मान कर धन्य हुई ।
काल के क्रुर हाथों ने अचानक से संगीत की सरगम को रोक दी, यह समझ से परे है । समाचार पत्रों की सुर्खियों से दूर अपने काम को तल्लीनता से शांत रहते हुए पूरा करने में डॉ.शर्मा का कोई सानी नहीं था । गत छह दशकों से संगीत की सतत साधना करने वाला यह संगीत संत अपनी हदों को लांघ कर अनहद में समा गया और संगीत का यह प्रखर स्वर 8 मार्च 2019 को नाद ब्रह्म में लीन हो गया । उनके असामयिक निधन से संगीत–साहित्य जगत को अपूरणीय क्षति हुई है । इस महान क्षति से हम सभी स्तब्ध हैं । आज गुरुवर के 75 वें जन्मदिन पर उन्हें शत-शत नमन करता हूं और परमपिता परमात्मा से प्रार्थना करता हूं कि उन्हें मोक्ष प्रदान करें ।