बाड़मेर। संसार का वास्तविक स्वरूप यही है कि जो शत्रु है वो मित्र बन जायेगा और जो मित्र है वो शत्रु बन जायेगा। संसार में कोई भी संबंध चिरस्थाई नही है। यह बात गणाधीश पन्यास प्रवर श्री विनयकुशलमुनिजी म.सा ने कही। प्रखर प्रवचनकार विरागमुनिजी महाराज ने अद्भुत वर्षावास 2019 के अन्तर्गत जिनकांतिसागरसूरि आराधना भवन में उपस्थिति जनसमुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि मानव को हमेशा विनम्र रहना चाहिए।

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विनय का गुण अपनाने वाला ही सच्चा साधक होता है। जब भी समय मिले मानव को ईश्वर की आराधना करना चाहिए। विनय मानव के जीवन का श्रेष्ठ आभूषण है। यह शांति का मूल मंत्र है। इससे मानव जीवन सुखी व समृद्ध बनेगा। मानव को चाहिए कि वह जीवन में विनयशीलता का गुण अपनाए। गुरु का आशीर्वाद पाने के लिए भी साधक का विनयशील होना जरूरी है। जो व्यक्ति सरल, सहज और सौम्य होता है, उसका समाज में हर जगह सम्मान होता है।


मुनिश्री ने कहा कि ज्ञान जब बोध रूप में परिणित होता है तब ही जीव का कल्याण कर सकता है। मोहनीय कर्म का क्षायोपशम होगा तब ही ज्ञान बोध रूप में परिणित होगा। बोध प्रकट होने पर जीव के भीतर अद्भुत संवेदना की अनुभूति होगी व स्पंदना होगी। तब तक जीव में संवेदना नही होगी तब तक ज्ञान बोध रूप में परिणित नही होगा। मुनि श्री ने कहा कि आर्य संस्कृति में कभी भी ज्ञान, कला व पक्के अनाज को पैसों के बदले नही बेचा जाता था। शिक्षा, चिकित्सा और भोजन का कभी भी व्यवसाय नही किया जाता था।


पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व का आगाज 26 से- श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ चातुर्मास समिति, बाड़मेर के अध्यक्ष प्रकाशचंद संखलेचा व मिडिया प्रभारी चन्द्रप्रकाश बी. छाजेड़ ने बताया कि जैन धर्म का महान पर्व पर्वाधिराज पर्यषण का आगाज सोमवार को होगा। महापर्व के अन्तर्गत स्थानीय आराधना भवन में गणाधीश पन्यास प्रवर विनयकुशलमुनिजी म.सा. की निश्रा में प्रतिदिन प्रात: 5 बजे प्रतिक्रमण, स्नात्र पूजा, प्रात: 8.30 बजे से अष्ठानिका प्रवचन, दोपहर में श्रावक के मार्गानुसारी जीवन के 32 कत्र्तव्य पर प्रवचनमाला, संध्या आरती, प्रतिक्रमण, अंगरचना आदि कार्यक्रम होगें।

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