पराली से उत्पन्न धुँए स्मोग से बचने का उपाय
बीकानेर। पराली जलाने से उत्पन्न मिट्टी, धूल, आंशिक रूप से जले-अधजले पौधों के अवशेष कण अधिक ऊँचाई पर नहीं जाते जो मानव एवम् प्राणियों के लिए घातक है। इससे कैंसर, दमा, टीबी, अंधेपन और सांस सम्बन्धी बीमारियों की चपेट में लोग तेजी से आ रहे हंै। हम प्रतिपल जहरीले धुँए को सांसों के सहारे, फैफड़ों में खींचकर मौत का सामान इक_ा कर रहे हैं। धुएं के जहर से बचने के लिए डॉ. रामबजाज ने एक शोध किया है। शोध के बारे में डॉ. बजाज बताते हैं कि बिना जुताई की तकनीक को अपनाना ही समस्या का निदान है। जिसमें खड़ी फसलों के अवशेषों को बिजाई के दौरान जमीन में ही मिट्टी के साथ दबा दी जाती है। अपने ही खेतों में गाय के गोबर, गौमूत्र व अन्य सामग्री द्वारा बनाई गई खाद माइक्रोबियल कल्चर, डीकम्पोजर एवं बॉयोचारकोल के इस्तेमाल से जमीन में बिजाई के दौरान दबी फसल अवशेष 30 दिनों में डी कम्पोज्ड और डिसइंटिग्रेटेड होकर बिजाई की गई फसलों के लिए पूर्णरूप से खाद का काम करती है। ये बीज अंकुरित में भी मदद करती है-जिसमें फसलों को कोई बीमारी नहीं लगती।
गौरतलब है कि डॉ. राम बजाज बीकानेर में जन्मे, पढ़े और बड़े होने तथा एक माइक्रोबायोलॉजिस्ट एवं मृदा इंजीनियर के रूप में ख्याति अर्जित करने के बाद गत 02 अक्टूबर को एलोवेरा औषधि पौधों में चमत्कारिक शोध को अंजाम भी दिया था। उपरोक्त शोधों में डॉ.राम बजाज ने साबित किया कि जुताई आधारित खेती करने के तरीकों को हमारे पर्यावरण, स्वास्थ्य और खाद सुरक्षा के प्रतिकूल प्रभाव से मानव समाज के स्वास्थ्य से खिलवाड़ किया जाता रहा है।
खेतों की ऊपरी परत को ट्रेक्टरों के माध्यम से चीरकर, पलटकर या जोतकर बुवाई में योग्य बनाई जाती है उसे टिलेज कहा जाता है। इससे नीचे की मिट्टी ऊपर आ जाती है और हवा, पाला, वर्षा और सूर्य प्रकाश आदि से प्रभावित होकर भुरभुरी हो जाती है। बिना जुताई के खेती करने का अपना तरीका है। इसमें धन और समय की बचत के साथ-भूमि के अन्दर और बाहर जैव विविधता की क्षति नहीं होती और नमी बनी रहती है। इसमें उत्पन्न केंचुए नीचे की सतह को पोली कर देते हैं जो किसी भी मशीन से सम्भव नहीं है।
डॉ.बजाज ने बतलाया कि खेतों की सघन जुताई के कारण जमीन की ऊपरी सतह की मिट्टी थोड़ी बरसात होने से कीचड़ में बदल जाती है और पानी मिट्टी के भीतरी सतह में जड़ों में असक्षम हो जाता है, जिससे बहुमूल्य ऊपरी सतह की मिट्टी खाद को भी बहा ले जाता है और फसलों में ज्यादा खाद तथा ज्यादा पानी की आवश्यकता रहती है।
दुनिया भर में विशेषकर पंजाब-हरियाणा में अधिकतर किसान धान के पुआल को जला रहे है-जबकि राजस्थान के किसान हटा रहे है। डॉ.राम बजाज के शोध के अनुसार इनको जलाने की अपेक्षा किसान इसे खेतों में बिजाई के समय जहां-तहां जमीन में मिक्स कर दें तो इसके अनेक फायदें हंै। पहला तो इससे नई फसलों की जड़ों को पसरने और फैलने में आसानी होती है तथा दूसरा यह फसली अवशेष सड़कर खेतों को उत्तम जैविक खाद दे देता है। साथ में इन अवशेषों में फसलों की बीमारियों के कीड़ों से लडऩे की क्षमता बहुत अधिक रहती है। बिना जुताई खेती करने से पूर्व जो अपने खेतों में गहरी जुताई, भारी सिंचाई और कृत्रिम रसायनों से खेत मरूस्थल में तब्दील हो जाते हैं। आज किसान आत्महत्या करने लगे है। सूखा, बाढ़, धरती पर बढ़ी गर्मी, मौसम की बेरूखी से पूरी दुनिया परेशान है। कैंसर जैसी अनेक लाइलाज बीमारियां बढ़ती जा रही है। बिना जुताई की ‘आर्गेनिक खेती’ से जहाँ 80% खर्च की कमी आती है-वहाँ उत्पादन और गुणवत्ता में भी लाभ होता है। बिना जुताई करने वाले किसानों को कार्बन क्रेडिट माध्यम से अनुदान भी मुहैया कराया जाने लगा है।
एक चम्मच मिट्टी में अरबों-खरबों जीवाणु होते हैं- बिना जुताई आर्गेनिक खेती एवं खेती में बॉयोचारकोल के उपयोग से धरती पर बढ़ती गर्मी, मौसम की बेरूखी से निजात दिलाने में पूर्णत: सक्षम है। डॉ. बजाज के शोधों से यह साबित भी हुआ है कि खेतों में बायोमास का प्रयोग करने के साथ जमीन पोली हो जाती है तथा फसली अवशेष सड़कर खेतों में उत्तम जैविक खाद भी देते है। मिट्टी के कणों को अगर बड़ा कर देखा जाये तो हम पाऐंगे कि एक चम्मच मिट्टी में करोड़ों-करोड़ों अनेक सूक्ष्म जीवाणुओं के समूह है। इसे जोतने, निराई-गुड़ाई करने, खरपतवार नाशकों को डालने, कीटनाशकों को छिड़कने से हम असंख्य सूक्ष्म जीवों की हत्या करते हैं, जो कि आर्गेनिक खेती में महाउपयोगी है। आर्गेनिक अनाजों में इतनी ताकत होती है कि इनके सेवन मात्र से कैंसर भी ठीक हो जाता है।