बढ़ सकता है रोज हजारो का राजस्व
पुष्कर/सीताराम पण्डित
संसार को बनाने वाले जगतपिता ब्रह्मा मंदिर के विश्व मे एकमात्र मंदिर में रोजाना देश और दुनिया से हजारों श्रदालु आस्था का दामन थामकर आते है। अपनी श्रद्धा के फूल ब्रह्मा जी के चरणों मे अर्पित कर मनोकामना मांगते है। जो फूल जगतपिता को अर्पित किए जाते है उनका आखिर क्या होता है। जब इस मामले की तह में जाकर छानबीन की गई तो पता चला कि आस्था के इन फूलों से मंदिर में तैनात कई लोगो की जेब गर्म होती है।
हैरानी की बात यह है कि आस्था के साथ यह पूरा गड़बड़झाला प्रबन्ध समिति के पहरे में हो रहा है। यह भी आशँका है कि प्रबन्ध समिति की और से तैनात लोगो की शह पर ही सबकुछ हो रहा है। यह वही अस्थाई प्रबन्ध समिति है जिसे पूर्व महंत दिवंगत सोमपुरी के आकस्मिक निधन के बाद महंत कि गद्दी को लेकर उपजे विवाद के बाद राज्य सरकार की और से व्यवस्थाओ के लिए गठित की गई थी।
जगतपिता ब्रह्मा मंदिर के दर्शन के लिए आने वाले श्रदालु जो भगवान के दरबार मे पुष्प अर्पित करते है वे या तो पैसे लेकर फिर से दुकानदारों के पास भिजवा दिए जाते है या फिर चुपचाप फूल की गाठे पिछले वाले रास्ते से ग्रामीण अंचल में भेज दी जाती है। यहा आस्था के यह फूल गुलकंद और गुलाबजल बनाने वाली फेक्ट्रियो में फिर से नीलाम हो जाते है और मुनाफे का बड़ा हिस्सा मंदिर में तैनात लोगो को मिल जाता है।
इस तरह होता है सारा खेल
जगतपिता ब्रह्मा के चरणों मे बैठकर किस तरह आस्था के फूलों को जेब भरने का जरिया बनाया जाता है यह भी दिलचस्प पहलू है। जानकारी के अनुसार चढ़ावे के फूलों में से जो अच्छी स्थिति में रहते है उन्हें सीधे ही बाहर के दुकानदारों को बेच दिया जाता है और जो शेष रह जाते हंै उन्हें मंदिर के पिछले हिस्से में भेज दिया जाता है। वहा से इन फूलों को गाँठो में बांधकर कुछ युवक अपने साधनों से गावो में ले जाते है। इस मामले में यह भी कहा जा रहा है कि वर्षो से यह परंपरा रही है कि चढ़ावे के फूल किसी को उपहार में दे दिए जाएं। वास्तिवकता यही है कि कुछ भी उपहार नही होता हर फूल का पैसा वसूल होता है।
कोई हिसाब नहीं
अगर जगतपिता ब्रह्मा मंदिर के चढ़ावे में आने वाले फूलो को बेचकर मंदिर के राजस्व को बढ़ाया जाता है तो फिर भी बात समझ मे आ सकती है लेकिन सच्चाई यह है कि ना तो इन फूलों का कोई लेखा जोखा है और ना ही इनकी बिक्री से आने वाले पैसे का। साफ है कि अपनी जेब गर्म करने के लिए श्रदालुओ की आस्था से भी खिलवाड़ करने से कोई गुरेज नही है।
बढ़ सकता है राजस्व
मंदिर की आस्था से जुड़े लोगों का कहना है कि अगर प्रबंध समिति चाहे तो अजमेर दरगाह की तरह ऐसा रास्ता निकाल सकती है जिससे चढ़ावे के फूलो की ना तो बेकद्री हो और मंदिर का राजस्व भी बढ़ जाये। इसके लिए प्रबन्ध समिति अपने स्तर पर किसी से अनुबंध कर गुलाबजल या गुलकंद का प्लांट लगाया जा सकता जिससे मंदिर की आय भी बढ़ सकती है।
समिति की सक्रियता पर सवाल
राज्य सरकार की और से मंदिर की व्यवस्थाओ के लिए गठित अस्थाई प्रबन्ध समिति के अध्यक्ष जिला कलेक्टर है। इसके अलावा उपखंड अधिकारी,तहसीलदार और अधिशासी अधिकारी भी इसके सदस्य है। इन समिति में शामिल सभी सदस्यों के पास बड़ी जिम्मेदारी है ऐसे में मंदिर की व्यवस्थाए पटवारी के हवाले ही है जिससे मंदिर की व्यवस्थाये जगतपिता के भरोसे ही है। लोगो का कहना है कि मंदिर समिति की कमान के लिए बिशेष रूप से अलग प्रशासनिक अधिकारी की तैनातगी हो जिससे मंदिर में चलने वाले पोपा बाई के राज्य को रोका जा सके।
इनका कहना है
इस मामले में उपखण्ड अधिकारी और समिति के सदस्य हरीश लंबोरा से बात करनी चाही लेकिन बाहर होने के कारण उनसे बात नही हो सकी। वही मंदिर में तैनात पटवारी प्रवीण वैष्णव ने बताया कि परंपरा के अनुसार कुछ लोग चढ़ावे के फूलो को ले जाते है हालांकि वे यह नही बता सके कि किसे यह फूल दिए जाते है और क्यो दिए जाते है। मुफ्त में फूल देने की परमपरा किसने बनाई। साफ है कि मंदिर में सब कुछ ठीक नही चल रहा।