योगी श्री शंकरनाथजी के 28वें निर्वाण दिवस पर हुआ समाधिपूजन, अभिषेक, प्रवचन और भंडारे का आयोजन
बीकानेर। यहां नत्थूसर बास स्थित श्री नवलेश्वर मठ के पूर्व अधिष्ठाता योगी श्री शंकरनाथजी के 28वें निर्वाण दिवस पर बुधवार को विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम उल्लासपूर्वक संपन्न हुए। वर्तमान अधिष्ठाता योगी श्री शिवसत्यनाथजी महाराज के सान्निध्य में प्रात: संतश्री शंकरनाथजी की समाधि पर विशेष पूजन, अभिषेक, श्रृंगार व आरती की गई। पंडित संदीप पुरोहित ने यह कार्यक्रम वैदिक मंत्रोच्चार के साथ संपन्न करवाया। इस अवसर पर स्थानीय सहित विभिन्न अनेक शहरों से साधु-संतों व गुरुभक्तों ने बडी संख्या में शिरकत की।
सामूहिक श्री शिव महिम्न पाठ व गीता के अध्याय का वाचन किया गया। इस अवसर पर अपने प्रवचन में श्री शिवसत्यनाथजी ने कहा कि महापुरुषों का गुणानुवाद आकाश के समान असीम होता है, उसे कभी पूर्ण नहीं किया जा सकता, लेकिन फिर भी पंछी अपनी-अपनी सामथ्र्य के अनुसार आकाश में उडान भरते हैं। संतों-महापुरुषों के ुण गाने की सीख देते हुए महाराजश्री ने कहा कि संत-गुरुओं ने जो ज्ञान अस्त्र दिया है उससे अज्ञान का सिर काट देना चाहिए। नशे का नाश का कारण बताते हुए श्रीनाथजी महाराज ने नीले वस्त्र त्यागने, चौटी रखने व माता-पिता, बुजूर्गों को प्रणाम-आज्ञापालन करने की भी प्रेरणा दी। उन्होंने यह भी कहा कि श्रद्धावान व्यक्ति का ही जीवन सफल होता है, बगैर श्रद्धा के इस संसार में कुछ भी नहीं है। इससे पूर्व योगीश्री प्रहलादनाथजी विज्ञानी ने अपने उद्बोधन में कहा कि संतों के प्रति आदर-सत्कार रखने वाले भक्तों को उनके जीवन के अच्छे गुणों को भी धारण करना चाहिए। उन्होंने कहा कि महापुरुषों के गुणों, उपदेशों व सिद्धांतों को अपने जीवन में उतारने पर ही हमारी पूजा-भक्ति सार्थक होगी। प्रहलादनाथजी ने कहा कि संतों की भक्ति बगैर श्रद्धा के नहीं हो सकती है।
व्यक्ति को अपने जीवन को सुधारने के लिए संत-महापुरुषों के जीवन से सीखना होगा। शंकरनाथजी को महान परंपरा का महान संत बताते हुए उन्होंने यह भी कहा कि उनके गुणों का जितना भी बखान किया जाए, कम है। वे महान अनुशासनप्रिय थे। उन्होंने कहा कि जीवन में अनुशासन नहीं है तो अंत:करण पवित्र नहीं हो सकता। अनुशासन को विस्तार से परिभाषित करते हुए संतश्री ने कहा कि संसार के सभी जीवों से आत्मीयता होनी जरुरी है। उन्होंने कहा कि जिसके जीवन में राग-द्वेष होगा वह संत नहीं हो सकता, इसलिए अपने अंत: करण को पवित्र करने के लिए जीवन से द्वेष निकालना चाहिए। संतश्री सर्वज्ञनाथजी ने कहा कि संतों के गुणानुवाद से वाणी पवित्र होती है। उन्होंने कहा कि हमें अपने जीवन में निरंतर सुख-शांति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। मूंडसर आश्रम के महंत श्री हंसनाथजी ने प्रकाश तत्व पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर प्रसाद-भंडारे में बडी संख्या में मठ में पहुंचे साधु-संतों व भक्तजनों ने प्रसाद भी पाया। सभी का आभार संतश्री विलासनाथजी ने जताया।(PB)