(सुशील कुमार सरावगी जिंदल) राजस्थान के बीकानेर जिले की नोखा तहसील के गांव रासीसर के डेलू परिवार में 3 अप्रेल 1988 को एक लड़का पैदा हुआ। नाम रखा प्रेमसुख डेलू। उस समय में किसी ने नहीं सोचा भी था कि छोटे से गांव का यह लड़का कामयाबी की सीढिय़ां दर सीढिय़ां चढ़ता ही जाएगा।
प्रेमसुख डेलू की सफलता का अंदाजा इससे सहज लगाया जा सकता है कि ये 12 बार सरकारी नौकरी लग चुके हैं, जबकि सरकारी नौकरियों के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा के इस दौर में एक बार भी चयन होना आसान बात नहीं है। गुजरात कैडर के आईपीएस प्रेमसुख डेलू वर्तमान में अमरेली जिले में एएसपी के पद पर तैनात हैं। इन्होंने वन इंडिया हिंदी से खास बातचीत में बयां किया अपने पटवारी से लेकर आईपीएस बनने तक का सफर। प्रेमसुख डेलू बचपन से ही होनहार थे। इनकी सरकारी नौकरी लगने का सिलसिला वर्ष 2010 में शुरू हुआ। सबसे पहली सरकारी नौकरी बीकानेर जिले में पटवारी के रूप में लगी। दो साल तक बतौर पटवारी के पद पर काम किया, मगर दिल में कुछ बड़ा करने की चाह थी। इसलिए पढ़ाई और मेहनत जारी रखी।
नौकरी लगती गई, नहीं किया ज्वाइन
प्रेमसुख डेलू ने पटवारी पद पर रहते हुए कई अन्य प्रतियो?गी परीक्षाएं दी। ग्राम सेवक परीक्षा में राजस्थान में दूसरी रैंक हासिल की, मगर ग्राम सेवक ज्वाइन नहीं किया। क्योंकि उसी दौरान राजस्थान असिस्टेंट जेल परीक्षा का परिणाम आ गया और इसमें प्रेमसुख डेलू ने पूरे राजस्थान में टॉप किया। असिस्टेंट जेलर के रूप में ज्वाइन करते उससे पहले राजस्थान पुलिस में सब इंस्पेक्टर पद पर चयन हो गया।
SI की बजाय शिक्षक बने
प्रेमसुख डेलू ने राजस्थान पुलिस में एसआई के पद पर ज्वादन नहीं किया, क्योंकि उसी दौरान इनका स्कूल व्याख्याता के रूप में चयन हो गया तो पुलिस महकमे की बजाय शिक्षा विभाग की नौकरी को चुना। इसके बाद कॉलेज व्याख्याता, तहसीलदार के रूप में भी सरकारी नौकरी लगी। कई विभागों में 6 साल की अवधि में अनेक बार सरकारी नौकरी लगने के बाद भी प्रेमसुख ने मेहनत जारी रखी और सिविल सेवा परीक्षा 2015 ने 170वाँ रेंक प्राप्त किया है और हिंदी माध्यम के साथ सफल उम्मीदवार में तृतीय स्थान पर रहे है।
अब आईएएस बनने का इंतजार
फिलहाल गुजरात में बतौर ट्रेनी आईपीएस तैनात प्रेमसुख डेलू का ख्वाब अब भारतीय प्रशासनिक सेवा का अधिकारी बनने का है। यह ख्वाब भी पूरा होने को है। प्रेमसुख डेलू ने आईएएस का साक्षात्मकार दे रखा है। इसमें भी चयन होने की पूरी उम्मीद है। प्रेमसुख डेलू की जिंदगी न केवल राजस्थान बल्कि देशभर के युवाओं के लिए प्रेरणादायक है।
गरीबी इतनी कि आठवीं तक नहीं पहनी पेंट
प्रेमसुख का बचपन गरीबी में गुजरा और पढ़ाई सरकारी स्कूलों में हुई। गरीबी का आलम यह था कि आठवीं कक्षा तक प्रेमसुख ने कभी पेंट नहीं पहनी थी। नेकर में ही जिंदगी गुजरी। किसान पिता ऊंट गाड़ी चलाते थे। प्रेमसुख कहते हैं कि माता-पिता पढ़े-लिखे नहीं थे, मगर मुझे पढऩे-लिखने का भरपूत अवसर देकर काबिल बना दिया। चार भाई बहनों में सबसे छोटे हैं। इनका बड़ा भाई पुलिस कांस्टेबल है।