जयपुर। समानांतर साहित्य उत्सव के तीसरे दिवस की देर शाम सिनेमा आैर पॉलटिक्स पर प्रख्यात कवि विष्णु खरे आैर प्रलेस के प्रदेश महासचिव एवं वरिष्ठ पत्रकार ईशमधु तलवार ने अपने बेबाक विचार रखे। विष्णु खरे ने कहा कि साहित्य की अपेक्षा सिनेमा अधिक सशक्त माध्यम है लोगों तक जनजागृति लाने आैर कुविचारों से बचाव करने का। उन्होंने उत्सव के मुख्य समन्वयक ईशमधु तलवार से मंच के माध्यम से आग्रह करते हुए कहा कि अगले साहित्य उत्सव में सिनेमा पर एक सेशन नहीं बल्कि एक पूरा दिन रखें। खरे ने कहा कि वर्तमान युग में फिल्म बनाना अधिक आसान हो गया है क्योंकि कैमरे न्यूनतम दर में भी उपलब्ध है।
यू ट¬ूब पर भी आप अपनी फिल्म बनाकर अपनी क्रिएटिविटी बता सकते हैं, अपनी बात पहुंचा सकते हैं। उन्होंने विवादित फिल्म पद्मावती पर हुए हंगामे पर संजय लीला भंसाली आैर वर्तमान सरकार की कार्यशैली पर तीखे प्रहार करते हुए इसे गलत बताया। उन्होंने कहा कि विगत तीनों वर्षोे में जितना मतभेद फैला है उतना आज तक देखने को नहीं मिला। राजनीति का यह बुरा दौर है। लोगों ने उनसे प्रश्न भी पूछे जिनका उन्होंने सहज भाव से जवाब दिया। ईशमधु तलवार ने वर्तमान सिनेमा आैर राजनीति पर अपने विचार रखे।
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किसान गाथा सत्र
समानांतर साहित्य उत्सव के तीसरे दिवस मुंिक्तबोध मंच में किसान गाथा पर एक सत्र आयोजित किया गया इस सत्र में कथाकार प्रो. बृजकिषोर शर्मा ने कहा कि भूमि बन्दोस्त तथा संथाल विद्रोह के द्वारा किसानों तथा आदिवासीयों की स्थिति का चित्रण प्रस्तुत किया। कविता से क्रान्ति आई है।
समाज में परिवर्तन लाने में कविता प्रमुख शस्त्र के रूप में ली जा सकती है।
समाज में परिवर्तन लाने में कविता प्रमुख शस्त्र के रूप में ली जा सकती है।
विकास का रास्ता किसानों के विकास का रास्ता खेत और खलिहानों से होता है। लेखक राघव सर षिवप्रसाद सिंह ने कहा कि लेखकों को गंभीर रहना है तो समाज से परिचित होना होगा लेखन के द्वारा समाज को विकसित करने की बात कही। उद्योगपति जो पैसे से हर बात तोलते है, उनका व्यंग्य रूप से वास्तविक्ता स्पष्ट की। बताया कि अन्न दाता को ही भूखा रहना पड़ता है।
पंूजीपतियों पर किसान अपनी उपज का अनाज का मोल नही लगा सकता उसके लिए भी उन्हें पूंजीपतियों की मनमानी सहनी पड़ती है। किसानों की दयनीय तथा वास्तविक स्थिति का मार्मिक व्याख्या प्रस्तुत किया कि किस तरह से किसान अपनी जमीन पर अनाज उगाता है। तथा कैसे उसे निम्न माना जाता है।
पंूजीपतियों पर किसान अपनी उपज का अनाज का मोल नही लगा सकता उसके लिए भी उन्हें पूंजीपतियों की मनमानी सहनी पड़ती है। किसानों की दयनीय तथा वास्तविक स्थिति का मार्मिक व्याख्या प्रस्तुत किया कि किस तरह से किसान अपनी जमीन पर अनाज उगाता है। तथा कैसे उसे निम्न माना जाता है।