OmExpress News / Jaipur / समानान्तर साहित्य उत्सव का तीसरा दिन, साहित्य के विविध रंगों से सराबोर रहा। एक ओर जहां प्रख्यात गीतकार इरशाद क़ामिल ने अपने गीतों की सृजन प्रक्रिया के बारे में प्रकाश डाला, वहीं कविताओं और कहानियों का निरन्तर पाठ चलता रहा। Parallel Literature Festival
जहाँ गाना चूकता है, वहाँ कहानी टूटती है
हिन्दी फिल्मों के गीतों की बात हो, और प्रख्यात गीतकार इरशाद क़ामिल की बात नहीं हो, ऐसा कैसे मुमकिन है! कुन फय कुन, पटाखा गुड्डी, अग़र तुम साथ हो और साड्डा हक सरीख़े मशहूर गीत रचने वाले इरशाद क़ामिल ने अपने गीतों की सृजन प्रक्रिया के बारे में दर्शकों से अनुभव साझा किए। क़ामिल से बहुत रोचक संवाद किया, अपनी आवाज़ के लिए मशहूर युनूस ख़ान ने।
क़ामिल ने कहा कि जहाँ गाना चूकता है, वहाँ कहानी टूटती है। गीत केवल गीत नहीं, बल्कि एक फिल्म की रीढ़ होती है। कई मर्तबा फिल्मफेयर पुरस्कार जीत चुके क़ामिल आज भी कम्प्यूटर पर नहीं, कागज़ पर कलम से ही लिखते हैं, चूंकि वहाँ कागज़ की छुअन होती है, लिखे हुए शब्दों को काटने से, काटे और नए लिखे गए शब्दों की तुलना भी की जा सकती है। यह प्रक्रिया लेखक के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। गीतों की दुनिया में एक नई ज़मीन गढ़ने वाले इरशाद ने रॉकस्टार फिल्म में लिखे उनके गीतों पर कई दिलचस्प बातें साझा कीं।
इरशाद ने बताया कि कैसे इम्तियाज़ अली की फिल्म हाइवे में उन्होने वह खुशगवार गीत रचा – पटाखा गुड्डी हो, जो एक आज़ाद लड़की की उड़ान का गीत है। सामाजिक बंधनों से मुक्त होती इस लड़की के खुलेपन के एहसास को बयां करता यह गीत, लोगों की जुबाँ पर छाया रहा है। इरशाद ने अपने बहुतेरे गीतों के पीछे की कहानी बड़े ही दिलचस्प अंदाज में दर्शकों के सामने रखी। Parallel Literature Festival
बढ़ रहा है समानान्तर सिनेमा का दर्शक
सार्थक सिनेमा – समानान्तर होने का अर्थ सत्र में जितेन्द्र भाटिया, अजित राय और अविनाश ने अपनी बात रखी। मृणाल सेन की स्मृति में रखे गए इस संवाद के ज़रिए नरेन्द्र भाटिया ने बताया कि मृणाल सेन एक अति आशावादी व्यक्ति थे। उनकी उपस्थिति महत्वपूर्ण होती थी, और वे फिल्मकारों से आत्मीयता रखते थे। उनकी फिल्में सिनेमा जगत् में मील का पत्थर हैं, और वे साहित्य और सिनेमा का सम्बन्ध बखूबी समझते थे। फिल्म समीक्षक अजित राय ने बताया कि कोलकाता शहर, मृणाल सेन की फिल्मों में किसी केन्द्रीय पात्र की तरह देखा जा सकता है।
बात को आगे बढ़ाते हुए राय ने कहा कि सत्यजीत रे के बाद, समकालीन फिल्म निर्देशकों में अनुराग कश्यप का नाम उल्लेखनीय है। साथ ही उन्होने कहा कि आगामी समय में स्टार सिस्टम गिरता जाएगा। हो सकता है, सिनेमा हॉल भी नहीं बचें, और हम मोबाइल पर ही फिल्में देखेंगे। नेटफ्लिक्स और अमेजन प्राइम के आने से सिनेमा की दुनिया में बड़े बदलाव आए हैं, और यह भी कहा जा सकता है कि सिनेमा की दुनिया में गुलामी का दौर आने को है।
साथ ही यह भी एक पक्ष है कि आने वाले समय में फिल्म की कहानी या कंटेंट ही सबसे अहम् होगा। वहीं, संवाद के दौरान अविनाश ने कहा कि सिनेमा की दुनिया में बदलाव होना स्वाभाविक है। सिनेमा के प्रति लोगों में समझ बढ़ी है, साथ ही सिनेमा अध्ययन – अध्यापन का भी हिस्सा बना है। पहले की तरह अब समानांतर फिल्में बिल्कुल अलग धारा की फिल्में नहीं रहीं, बल्कि वे मुख्यधारा के सिनेमा में मिलती जा रही हैं। समानांतर फिल्मों का दर्शक वर्ग बढ़ा है, और निश्चित रूप से यह एक शुभ संकेत है।
आपस में गूँथे हुए हैं साहित्य और सिनेमा – Parallel Literature Festival
पर्दे पर साहित्य सत्र में, साहित्य और सिनेमा के आपसी सम्बन्धों की पड़ताल की गई, जिसमें चर्चित फिल्म निर्देशक गजेन्द्र क्षोत्रिय, बी.के. शर्मा, चरण सिंह पथिक, ईश मधु तलवार एवं रामकुमार सिंह ने हिस्सा लिया। चर्चा का प्रारम्भ करते हुए गजेन्द्र क्षोत्रिय ने कहा कि साहित्य की भूमि से ही सिनेमा की शुरुआत हुई है। दोनों एक – दूसरे के पूरक हैं। हॉलीवुड में भी क्लासिक लिट्रेचर पर फिल्में बनती रही हैं। Parallel Literature Festival
राम कुमार सिंह ने कहा कि फिल्म के ज़रिए कई मर्तबा कहानी का नज़रिया बदल जाता है। फिल्म बनने और सम्पादित होने की प्रक्रिया में बहुत कुछ बदल जाता है। इसीलिए एक फिल्म के लिए मौलिक कहानी के साथ न्याय करना, किसी चुनौती से कम नहीं है। अब डिज़िटल प्लेटफॉर्म भी किताबों पर कहानियाँ बनाने की ओर रुख़ कर रहे हैँ। अनेक विश्व प्रख्यात नाटकों के अनुवादक, अभिनेता और निर्देशक बी.के.शर्मा ने कहा कि कहानीकार की कल्पनाशीलता का कोई अन्त नहीं है। वह कुछ भी लिख सकता है।
चरण सिंह पथिक ने प्रश्न किया कि यदि लेखन साहस है, तो उस साहित्य पर फिल्म बनाना दुस्साहस है, और एक फिल्म निर्देशक कैसे यह दुस्साहस कर लेता है? इस पर, ईश मधु तलवार ने कहा कि साहित्य पर सिनेमा बनने की दृष्टि से यह सुनहरा समय है, और ख़ास कर राजस्थान के लिए यह बहुत अच्छा समय है। राजस्थान की कई कहानियों पर फिल्में बन रही हैं, वहीं साहित्यकार और लेखक फिल्मों की ओर रुख कर रहे है।
गीतों के पीछें की कहानी है “काली औरत का ख्वाब” : इरशाद क़ामिल
प्रसिद्ध गीतकार इरशाद कामिल की नई किताब काली औरत का ख्वाब को लेकर आयोजित हुए एक सत्र में चर्चा के दौरान गीतकार इरशाद कामिल ने बताया कि लम्बे समय से गीत लिखे जा रहे हैं लेकिन हर गीत को लिखने की भी एक कहानी होती है, जिस कहानी के आधार पर हमें गीत – गज़ल की रचना में मदद मिलती है। उन्ही सब गीतों के पीछे की कहानी को लेकर उन्होने यह किता ब रचने के बारे में सोचा। इस दौरान इरशाद क़ामिल ने कहा कि उनकी इस किताब में उन्होने अपनी डायरी के पन्नों को भी प्रकाशित किया है।
इस दौरान मौके पर मौजूद दर्शकों के सवाल के जवाब में उन्होने बताया कि समय के साथ- साथ निर्देशक के साथ आपका विश्वास बनता है, जिसके बाद आप कई मर्तबा गीत के शब्दों तक पर वीटो कर देते हैं और आपका लिखा, बिना किसी फेरबदल के ही गीत बनकर फिल्मों में उपयोग किया जाता है। इस किताब का विचार कैसे आया, इस प्रश्न के जवाब में इरशाद ने बताया कि फिल्मों के गीतों से आजकल सोशल मीडिया पर कार्ड कोटेशन बनने लगे हैं।
गीतों की रचना से जुड़ी पुस्तक को रोचक बनाने के लिए गाने की कहानी और मूल डायरी के पन्नों के साथ इस किताब को लाया गया। इरशाद की डायरी में जो रफ ड्राफ्ट हैं, उनमें जो कांटे गए शब्द हैं, वह उनके ज़ेहन में याद की तरह दर्ज हैं। पहले इस किताब का नाम आधा सा वादा था जो कि जब वी मेट के गाने पर आधारित है, पर इस तरह सिर्फ एक गीत या फिल्म की बात होती।
इसीलिए इसे समग्र बनाने के लिए किताब को फिल्म फेयर अवार्ड की कॉपी काली औरत से जोड़ा गया। यूनुस खान ने के कुछ अंश पढ़ कर सुनाए। मंच पर उपस्थित डॉ इंद्रजीत सिंह ने फिल्मफेयर अवॉर्ड्स से जुड़ी रोचक जानकारी साझा की। इरशाद ने एक बहुत अच्छी बात कही कि गीतकारों के गीत समाज में व्याप्त तनाव को दूर करते हैं। वीटो पर पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि इतना विश्वास कमा लिया है कि खुद ही वीटो ले सकते हैं। उन्होंने कहा कि किताब का दूसरा हिस्सा भी आएगा। उन्होंने कहा कि कविता और ग़ज़ल एक आन्तरिक प्रक्रिया है, और इनकी कहानी नहीं हो सकती।
गीत की तैयारी के बारे में उन्होंने कहा कि गीत भले ही दस पंक्तियों का हो, लेकिन उसकी तैयारी दस पन्नों की हो सकती है। दस पन्नों की तैयारी में से गीत की पंक्तियाँ निकाल ली जाएँ, तो बाकी नज़्म हो जाती हैं। यह किताब गीत लिखने की प्रक्रिया ही है। यही इस पुस्तक की उपयोगिता है।
राहुल सांकृत्यायन की याद में हुआ संवाद
यायावर राहुल सांकृत्यायन नामक सत्र का शुभारम्भ, सांकृत्यायन से जुड़ी स्मृतियों से हुआ। संवाद के माध्यम से राजेन्द्र राजन ने कहा कि राहुल के साथ उनके जीवन के अनेक आयाम जुड़े रहे हैं। अपने विचारों को आगे बढ़ाते हुए उन्होने कहा कि आज जिस प्रकार किसान समस्याओं से जूझ रहे हैं, उसे देखते हुए राहुल सांकृत्यायन की परम्परा को आज के किसान आन्दोलनों से जोड़ने की ज़रुरत है।
गजेन्द्र कांत ने राहुल सांकृत्यायन के जीवन को नूरजहाँ से जोड़ते हुए कहा कि वे बहुत ही कम समय में कई धर्मों के प्रेमी हो गए थे। उन्होने भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के विविध साहित्य का भी अध्ययन किया। उन्हें निस्संदेह ही एक संघर्षशील और किसान प्रिय नेता माना जाता रहा है।
बिखरा उर्दू शायरी का रंग – Parallel Literature Festival
कन्हैया लाल सेठिया मंच पर दिलदार दहलवी, लोकेश कुमार सिंह साहिल, ए.एफ. नज़र, सुनील कुमाश जश्न ने उर्दू शायरी का रंग बिखेरा। दहलवी ने – कब तलक पहरे लगेंगे शख्सियत के वास्ते, कुछ पहरे लगाइए इंसानियत के वास्ते। इन्होने देशभक्ति के रंग में डूबी शायरी और गज़लें सुना कर दर्शकों का मन मोह लिया। साथ ही इश्क में सराबोर गज़लें भी सुनाई। लोकेश कुमार सिंह साहिल ने क्या खूब गज़ल सुनाई – आईऩा फ़िर निखर गया है क्या, मेरा चेहरा उतर गया है क्या, कब से मौसम है सर्द रातों का, मेरा सूरज गुज़र है क्या।
तारकोल की सड़कों पर टायर जैसे जलते दिन
नागार्जुन मंच पर कविता पाठ सत्र में अजय अनुरागी के संयोजन में कल्पना गोयल, स्मिता शुक्ला, सुनिता बिस्नोलिया, नीरा जैन, रेनु शर्मा मुखर, मीनाक्षी माथुर एवं कविता माथुर ने काव्य पाठ किया। “महानगर है, महानगर यह, महानगर की धकापेल सब होता है सब चलता है। गिट्टी जैसे उखड़े-उखड़े/ कागज के से टुकड़े-टुकड़े/ बस्ती चौड़ी रस्ते चौड़े/ रहते हैं सब सिकुड़े-सिकुड़े। तार कोल की इन सड़कों पर टायर जैसे दिन जलता है।” अजय अनुरागी की इन पंक्तियों ने श्रोताओं की विशेष दाद पाई।
परंपरा का बड़ा हिस्सा होते हैं शहर
भीष्म साहनी मंच से शहरनामा सत्र के अंतर्गत जितेन्द्र भाटिया से अजय अनुरागी ने बातचीत की। इस दौरान स्मृतियों में शहर और शहर की स्मृतियां परत दर परत खुलती चली गई। जितेन्द्र भाटिया ने कहा कि हर शहर की आत्मा अलग होती है और उसे स्मृतियों में सुरक्षित रखा जा सकता है। शहर परंपरा का बड़ा हिस्सा होता है और लेखक शहरों के पर्यटक के रूप में नहीं होते, बल्कि वह उसका रखवाला भी होता है। इस सत्र में डॉ. दुष्यंत, नरेश सक्सेना एवं मीठेश निर्मोही ने सवाल पूछकर सत्र को रोचक बना दिया। Parallel Literature Festival
कविता और दोहों का संगम
कन्हैया लाल सेठिया मंच पर काव्य पाठ सत्र में संगीता व्यास के संयोजन में जयश्री कंवर, नरेश प्रजापत नाश, उर्वशी चौधरी, प्रेरणा पुरोहित, प्रीती जैन, ज्योत्सना सक्सेना ने काव्य पाठ किया। नरेश प्रजापत नाश की कविता गुड़िया के माध्यम से उन्होने लड़कियों पर होने वाले अत्याचारों के बारे में बयां किया, और दूसरी कविता दीवारें: स्त्रियों का प्रतीक के ज़रिए वर्तमान में नारी जीवन को उजागर किया।
उर्वशी चौधरी की रखो बचपन को जिंदा, पायदान, प्रेरणा पुरोहित की एक संविधान हमें भी लिखने दो के जरिए नारी मन की अभिलाषाओं का उपयुक्त वर्णन किया। प्रीती जैन की कर्मकाण्ड और रजनीगंधा हो तुम मेरे जीवन की कविताओं का पाठ हुआ। वहीं ज्योत्सना सक्सेना ने दोहों का पाठ किया।
जीवन जिओ ज़िंदादिली से
भीष्म साहनी मंच से कविता पाठ किया गया, जिसका संचालन शिवानी शर्मा ने किया। मंच पर मनशाह नायक, दिनेश चारण, अतुल चतुर्वेदी, प्रमोद पाठक, अनुपमा तिवारी उपस्थित रहे। सत्र के दौरान विभिन्न कवियों ने समाज में बेटियों और महिलाओं की आज की स्थिति का वर्णन किया। कवियों ने जीवन को जिंदादिली से जीने की प्रेरणा दी।
ह्रदय, जमीन और मस्तिष्क से जुड़ी कला है रंगमंच
नागार्जुन मंच पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बाजार में रंगमंच विषय पर सुरेश दैमान की नरेन्द्र अरोड़ा, शेखर शेष, साबिर खान के साथ बातचीत हुई। इस मौके पर नरेन्द्र अरोड़ा ने कहा कि जब सिनेमा आया था, तब भी यह सवाल उठा था। आज इलेक्ट्रॉनिक मी़डिया हर घर में छाया हुआ है, लेकिन लोग अब इससे उबने लगे हैं। वैसे तो बहुत से कलाकारों को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से बहुत लाभ हुअ है और इससे रंगमंच को भी प्रोत्साहन मिला है। इस बात पर शेखर शेष ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में जो हो रहा है, वह रंगमंच की वजह से ही हो रहा है।
रंगमंच बाजार नहीं है, बल्कि समाज को दिशा देने वाला प्रमुख आयाम है, जो समाज को बेहतर बनाने में मदद कर रहा है। साबिर खान ने बताया कि सिनेमा एक उत्पाद है, जिसे बेचा जाता है। इसका उद्देश्य कलात्मक नहीं होता है, पूंजी होता है। थिएटर ने सिनेमा को योगदान दिया है, लेकिन कई लोगों ने थिएटर के प्रशिक्षण के बिना भी बहुत अच्छा अभिनय किया है। रंगमंच और सिनेमा के बीच कोई प्रतियोगिता ही नहीं होनी चाहिए।
किचन की कब्र में स्त्री
रांगेय राघव मंच से माया मृग के संयोजन में कविता पाठ रामनिवास बांयला, सवाई सिंह शेखावत सदाशिव श्रोत्रिय ने किया। रामनिवास बांयला ने घास शीर्षक जीवन से जुड़ी हुई कविता सुनाई। सदाशिव श्रोत्रिय ने एक कुत्ते के माध्यम से समाज में चल रही गतिविधियों पर गहन चिंतन जताने वाली कविता सुनाई। उन्होंने कहा कि जहां हमारी भाषा का सम्मान नहीं होता, वहां अपनापन नहीं लगता।
समानांतर साहित्य उत्सव इसीलिए मुझे अच्छा लगता है कि यहां अपनी भाषा में बात होती है। अपनी भाषा की कद्र है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह एक अच्छी शुरुआत है। सवाई सिंह शेखावत ने असफल पिता पर एक खूबसूरत कविता सुनाई, जिसके माध्यम से उन्होंने उन पहलुओं को सामने लाने की कोशिश की, जिनसे एक असफल पिता दिन-रात जूझता है और जब तक हम खुद उस स्थिति में नहीं पहुंच जाते, इस बात को समझ नहीं पाते। एक और कविता उन्होंने सुनाई “कुछ लोग चोटी पर है, जहां से हर चीज छोटी दिखती है।” माया मृग ने “किचन की कब्र में स्त्री” कविता सुनाई। उनकी दूसरी कविता – अपने बचे से बचे रहना सुनाकर उन्होने श्रोताओं की वाहवाही बटोरी।
भारत-नेपाल कवि संवाद
जयपुर के रविन्द्र मंच में चल रहे तीन दिवसीय समानांतर साहित्य उत्सव के अंतर्गत भीष्म साहनी मंच पर भारत-नेपाल कवि संवाद का आयोजन हुआ, जिसका संयोजन अभय श्रेष्ठ ने किया। सत्र में नेपाल के कवि सरिता तिवारी, अभय श्रेष्ठ, प्रमोद धिताल ने नेपाली में कविता सुनाई। वहीं हिंदी में नित्यानन्द गायेन ने कविता पाठ किया। सरिता तिवारी की हिंदी में अनुवादित कविता संग्रह सवालों का कारखाना पर चर्चा हुई। कविता के विषय वस्तु, अनुवाद तथा वर्तमान नेपाली कविता लेखन की स्थिति के बारे में सरिता तिवारी, अभय श्रेष्ठ और प्रमोद धिताल ने चर्चा की।
अन्तर्जातीय विवाह से ही टूटेंगी जाति की बेड़ियां
डॉ अम्बेडकर के सपनों का भारत विषयक एक सत्र में बात करते हुए डॉ. एम.एल. परिहार ने कहा कि आज भी लोग किराए का मकान जाति देखकर देते हैं। उन्होने कहा कि डॉ. अम्बेडकर के सपनों का भारत बनना बेहद मुश्किल नजर आ रहा है। जब अमेरिका और यूरोप में पहुंचकर भी लोगों ने अपनी-अपनी जाति के आधार पर संगठनों का निर्माण कर लिया, जबकि अम्बेडकर का सपना एक जाति विहीन समाज के निर्माण का था।
वहीं मराठी लेखक राकेश वानखेड़े ने भी कहा कि बाबा साहेब को देवता बनाने की मुहिम से अंधविश्वास बढ़ेगा, लेकिन दलित और शोषित की सामाजिक हैसियत में कोई फर्क नहीं आएगा। हमें बाबा साहेब की वैज्ञानिक सोच को भी समझना पड़ेगा और समाज के सभी वर्गों को अन्तर्जातीय विवाहों को बढ़ावा देना होगा। इससे ही समाज में जाति की बेड़ियां टूटेंगी। इस सत्र के दौरान सामाजिक कार्यकर्ताओं पर बीते दिनों में हुए हमलों से लेकर समाज में व्याप्त धार्मिक अंधविश्वासों पर भी चर्चा की गई। सामाजिक कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी इस सत्र में मंच संचालन की भूमिका में मौजूद थे।
नवोन्मेष में युवा कवियों ने सुनाई कविताएँ
समानांतर साहित्य उत्सव के तीसरे दिन भी यूथ कॉर्नर पर युवाओं का हुजूम लगा रहा। इसमें सभी इच्छुक युवाओं ने हिस्सा लिया और अपनी अपनी प्रतिभा को दर्शाया। इसकी शुरुआत नदीम नामक युवक ने एक रैप सॉन्ग से की। इसके बाद शुभम, विशु़, राजकुमार राज, प्रीतम, चारू ने अपने अपने हुनर भी प्रस्तुत किए। सत्र का संयोजन नरेश प्रजापत नाश ने किया। दर्शकों ने भी युवाओं का बहुत उत्साहवर्धन किया और इसी के साथ सत्र का समापन हुआ।