बीकानेर । संगीत मनीषी डॉ.जयचन्द्र शर्मा जन्मोत्सव शताब्दी वर्ष पर आयोजित कार्यक्रम की पांचवीं कडी श्री संगीत भारती में आयोजित हुई जिसमें कवि.कथाकार राजाराम स्वर्णकार का एकल काव्य पाठ हुआ । स्वागत उद्बोधन देते हुए डॉ. मुरारी शर्मा ने कहा कि डॉ.जयचन्द्रजी का योगदान संगीत के साथ साहित्य में भी था। उनके कई आलेख देश की विभिन्न पत्र.पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए जिन पर शोध कार्य भी हुआ ।

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साहित्य से उनके लगाव को देखते हुए आज की यह कडी उन्हें अर्पित की जा रही है । कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार भवानीशंकर व्यास विनोद ने कहा कि डॉ.जयचन्द्र शर्मा ने स्वयं आजादी के गीत लिखे व देश के राष्ट्रीय मंचों पर उन्हें प्रस्तुत किया । श्री राजाराम स्वर्णकार की कविताएं सत्य का अन्वेषण करती है और स्वयं की तलाश में व्याकुल भी नजर आती है । ध्वन्यात्मकता उनकी कविताओं की प्रमुख विशेषता है । स्वर्णकार के रचनाकर्म में विचार, प्रतीकों उपमाओं और व्यंजनाओं के साथ छनकर कविता का स्वरुप ग्रहण करते हैं ।

स्वर्णकार की कविताओं में प्रेम है तो प्रकृति का चित्रण भी है इसके साथ क्रांति की बातें भी है। मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉण्मदन सैनी ने कहा राजारामजी की दोनों विधाओं में रची गई कविताएं दम के साथ अपना प्रभाव छोडती है ।

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इनकी छन्दमुक्त एवं छन्दबद्ध रचनाओं में आंतरिक लय का निर्वहन बखूबी होता है । सखा संगम के अध्यक्ष एनण्डीण्रंगा ने कहा कि राजारामजी की कविताएं आदमी को कुछ अच्छा करने की सीख देती है। गान्धीजी के निर्वाण दिवस पर इनकी रचनाएं बहुत प्रासंगिक नजर आती है क्योंकि इनमे पराई पीडा को मुखरित किया गया है ।

कार्यक्रम के शुरुआत में अतिथियों ने डॉण्जयचन्द्र शर्मा के चित्र पर पुष्प अर्पित किए । कवयित्री ज्योति वधवा श्रंजना ने वन्दना कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया । राजाराम स्वर्णकार ने राजस्थानी में तीरथ बणगी राजघाट री आज समाधि, गरीब गुरबा पूछ रैया म्हैं धाको कियां धिकावां, घणी सुहाणी राजस्थानी भाषा, अरदास, निश्छल प्रेम और हिन्दी में रचनाएं. सत्य.पांच रुपए हम तो लिखते जाएंगे, जिन्दगी का मर्म, क्यूं आखिर क्यूं के साथ रुबाईयां सुनाकर तालियां बटोरी । कार्यक्रम का संचालन कवि.गीतकार संजय आचार्य वरुण ने किया । सभी के प्रति आभार चन्द्रशेखर जोशी ने माना। कार्यक्रम में ऋषिकुमार अग्रवाल, आर.के.शर्मा, नागेश्वर जोशी, मुरली मनोहर माथुर, मोहनलाल मारु, डॉ.एम.एल.व्यास की साक्षी रही ।(PB)

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