बीकानेर । स्मृतिशेष साहित्यकार सांवर दइया की पच्चीसवीं पुण्यतिथि पर सुदर्शना आर्ट गैलरी में कवि-आलोचक डॉ. नीरज दइया के दो व्यंग्य संग्रहों “पंच काका के जेबी बच्चे” और “टांय टांय फिस्स” का लोकार्पण अध्यात्मिक गुरु महाराज रामराज टाक, प्रख्यात आलोचक डॉ. उमाकांत गुप्त एवं व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा ने किया।
लोकार्पण समारोह के अध्यक्ष महाराज रामराज टाक ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि कीर्तिशेष साहित्यकार सांवर दइया ने साहित्य की विविध विधाओं में लिखा और जो लिखा वह आज भी श्रेष्ठ और मानक प्रतिमान के रूप में स्मरणीय है। मुझे व्यक्तिगत रूप से हर्ष है कि डॉ. नीरज दइया ने अपने पिता की साहित्यिक परंपरा और विरासत को बहुत अच्छे ढंग से न केवल संभाला वरन उसे आगे भी बढ़ाया है। उन्होंने कहा कि डॉ. नीरज दइया ने खुद को एक समर्थ लेखक के रूप में प्रमाणित किया है और इसी श्रृंखला में उनके आज लोकार्पित दोनों व्यंग्य संग्रह देखे जा सकते हैं। इनके व्यंग्य लेखन में सामाजिक दायित्व का गहरा बोध मिलता है जो हमें बेहद प्रभावित करता है।
मुख्य अतिथि प्रसिद्ध आलोचक डॉ. उमाकांत ने कृतियों पर बोलते हुए कहा कि डॉ. नीरज दइया के व्यंग्य आज की दौड़ भाग और तनावग्रस्त जिंदगी में राहत देने वाले हैं। इस दृष्टि से समकालीन हिंदी व्यंग्य में नीरज की विशिष्ट उपस्थिति कही जा सकती है। व्यंग्य के अर्थ और विभेद पर चर्चा करते हुए डॉ गुप्त ने कहा कि हास्य हिंसात्मक और मुस्कान अहिंसात्मक होती है, यह उल्लेखनीय है कि डॉ. नीरज दइया के व्यंग्य मुस्कान देने वाले अहिसंक व्यंग्य है। इनके व्यंग्यों की भाषा लालित्यपूर्ण कुरकुरेदार और मारक क्षमता वाली पाठकों को गुदगुदाती और प्रभावित करने वाली है।
विशिष्ठ अतिथि वरिष्ठ व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा ने कहा कि डॉ नीरज दइया समकालीन व्यंग्य परिदृश्य में अपनी सक्रिय उपस्थित दर्ज कराते हुए राष्ट्रीय स्तर के व्यंग्य आलेखों और चर्चाओं में शामिल हो रहे हैं। वे अपने अलहदा अंदाज में अपनी बात पंच काका के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं वह उनके व्यंग्य लेखन की निजता और मौलिकता है। शर्मा ने कहा कि मौदूजा समय और समाज की विसंगतियों-विद्रूपताओं-विषमताओं को डॉ. नीरज तल्खी के साथ उद्धाटित ही नहीं करते वरन उनकी तह तक जाकर उनके कारणों की खोजने की ईमानदार कोशिश भी करते हैं।
मुक्ति के सचिव कवि-कहानीकार राजेन्द्र जोशी ने कार्यक्रम की पृष्ठभूमि पर बोलते हुए कहा कि व्यंग्यकार सांवर दइया और बुलाकी शर्मा ने जिस व्यंग्य परंपरा को बीकानेर में जीवंत किया उसका पोषण इन दिनों खूब हो रहा है। डॉ. नीरज दइया के लेखन के संबंध में अनेक बातें साझा करते हुए राजेन्द्र जोशी ने कहा कि डॉ. दइया एक लगनशील और सतत लिखने वाले लेखक है जिनस देश और समाज को खूब आशाएं है। जोशी ने कहा कि डॉ. नीरज के लेखन से सहज ही यह सीखा जा सकता है कि किसी भी लेखक को अपने समय की चिंताओं, विदूपताओं को दूरदृष्टि के साथ सोचना-विचारना और लिखना चाहिए।
स्तंभ लेखक और समीक्षक नदीम अहमद ‘नदीम’ ने दोनों व्यंग्य पुस्तकों पर समकेति विस्तार से पत्रवाचन प्रस्तुत करते हुए कहा कि डॉ. नीरज दइया की व्यंग्य रचनाओं में किसी को बख्सा नहीं गया है यहां तक कि खुद नीरज दइया ने व्यंग्य लेखक के रूप में खुद को भी नहीं बख्सा है। नदीम ने कहा कि अपने समय के महत्त्वपूर्ण व्यंग्यकार डॉ. नीरज दइया के संग्रहों में अनेक यादगार व्यंग्य रचनाएं मिलती है। कार्यक्रम के आरंभ में कवि कहानीकार राजाराम स्वर्णकार ने आगंतुकों का स्वागत किया।
डॉ. नीरज दइया ने अपनी रचना-प्रक्रिया साझा करते हुए कहा कि मैंने व्यंग्य लेखक के लिए व्यंग्य लेखन नहीं किया यह एक दौर रहा जब व्यंग्य लिखना मुझे मेरी आवश्यकता प्रतीत हुई और व्यंग्य लेखन हुआ। समारोह में डॉ. दइया ने व्यंग्य संग्रह ‘टांय टांय फिस्स’ संग्रह से व्यंग्य रचना ‘मीठी आलोचना का मीठा फल’ का पाठ किया जिसे श्रोताओं द्वारा खूब सराहा गया। डॉ. दइया बिना हंसे मुस्कुराए व्यंग्य पढते गए और श्रोता-दर्शक बीच बीच में मुदित होते मुस्कुराते रहे।
डॉ. नीरज दइया ने अपनी पुस्तकें साहित्यकार-पत्रकार मधु आचार्य ‘आशावादी’, कहानीकार भंवर लाल ‘भ्रमर’, कवि नवनीत पाण्डे, संपादक विनोद सारस्वत, कवयित्री श्रीमती डॉ. रेणुका व्यास एवं पूर्व प्राचार्य मोहम्मद अयूब को भेंट की। आयोजक संस्था द्वारा व्यंग्यकार डॉ. नीरज दइया और मंचस्थ अतिथियों का सम्मान शॉल ओढ़ाकर किया गया।
कार्यक्रम के अंत में खेल लेखक आत्माराम भाटी ने आभार प्रदर्शित किया तथा मुक्ति के सचिव राजेन्द्र जोशी ने कार्यक्रम का संचालन किया। कार्यक्रम में सर्वश्री सरदार अली पड़िहार, श्रीलाल जोशी, सरल विशारद, आनंद.वी. आचार्य, डॉ मदन गोपाल लढ़ा, जगदीश सोनी, हीरालाल हर्ष, डॉ. प्रशांत बिस्सा, शीला व्यास, हरीश बी. शर्मा, मनीष कुमार जोशी, नमामी शंकर आचार्य, श्रवण कुमार, इकबाल हुसैन, मुकेश कुमार गौड़, संजय जनागल. डॉ. रचना शेखावत, गौरीशंकर प्रजापत, ओम दैया, भंवरलाल बडगूजर, मोहन थानवी, लोकेश आचार्य, चंद्रशेखर जोशी, मोईनूदीन कोहरी, असद अली असद, काशिम बीकानेरी आदि अनेक लेखक-कवि उपस्थित रहे।