बीकानेर (पवन भोजक)। प्राचीन समय से एक मानव दूसरे मानव से युद्ध करता आ रहा है। नाम के लिए अथवा स्वार्थपूर्ति के लिए संसार में रह कर संसारी सुखों-भोगों को प्राप्त करने के लिए मानव ने युद्ध किया है। संसार को नष्ट करने की सोच बहुत बार आई होगी लेकिन संसार को बचाने के लिए महापुरुषों की शक्ति भी प्रखरित हुई है। उक्त विचार गंगाशहर स्थित तेरापंथ भवन में विभुजी महाराज ने सद्भावना सम्मेलन के दौरान कहे।
मानव उत्थान सेवा समिति के दिशा-निदेशक विभुजी महाराज ने कहा कि मन मानव के अंदर प्रभु की एक अनोखी देन है। मन ही मोक्ष और मन ही बंधन का कारण है। मन को वासना में लगाओगे तो बंधन और प्रभु स्मरण में लगाओगे तो मोक्ष मिलेगा। काम-क्रोध-मोह-लोभ ये मन की कमियां हैं। चंचल मन को बांधने से ये कमियां दूर हो सकती हैं। संसारी जीवन में लोगों को अपने कर्मों पर अक्सर अभिमान हो जाता है और भक्तिमार्ग में भी कई बार मन को अभिमान हो जाता है। भक्तिहीन भावना मन को बांधे रखती है। श्रीकृष्ण ने भी संघर्ष और तकलीफें झेली थीं। जन्म ही उनका कारागाह में हुआ लेकिन उन्होंने अपनी दिव्य शक्ति का कभी प्रयोग नहीं किया। शरीर के बंधन को बांधने के लिए वैराग्य को आगे करना होगा। पहले के समय में पूरा जीवन जीने के बाद लोग वन प्रस्थान किया करते थे। लेकिन अब तो वो भी नहीं करते। वर्तमान में यदि वन प्रस्थान संभव नहीं है तो जीवन को इतना साधारण बना लें कि गृहस्थ में भी वानप्रस्थ की अनुभूति हो। साधारण खान-पान, वस्त्र और व्यवहार इतना साधारण कर लें कि हिमालय जाने की जरुरत ही न पड़े।
विभुजी महाराज ने कहा कि संसार की माया से बड़ी मन की माया है, मन का विचलित होना ही दुखों का कारण है। अपने ध्येय में मन को लगाना ध्यान है। कोई व्यक्ति अंधा होता है अथवा बहरा होता है फिर भी जीवन तो चलता ही है। नेत्र की या कान की इन्द्री यदि समाप्त हो जाती है तो व्यक्ति अपनी अन्य इन्द्रियों को प्रबल कर लेता है। कोई भी समय आपके लिए हितकारी व अहितकारी दोनों हो सकते हैं। इसे हित या अहित समझने का फेर भी मन ही होता है।
आंतरिक स्वच्छता पाने के दो उपाय हैं। पहला उपाय जीवन में सद्गुरु का होना जरुरी है। सद्गुरु हमेशा जीवन में ज्ञान का प्रकाश फैलाता है और बुराइयों के अंधकार को भगाता है। दूसरा उपाय मन की पवित्रता से जीना सीखें। आदतें हमारी पहचान होती हैं। गुस्सा करने वाला व्यक्ति गुस्सैल पहचाना जाता है तथा ठिठोली करने वाला हास्य की पहचान बनाता है। बचपन में आशाएं होती हैं और अधेड़ अवस्था में उन आशाओं का बखान किया जाता है जो पूरी न हुई हो।
शुक्रवार सायं 7 बजे के करीब आरंभ हुए सद्भावना सम्मेलन में विभुजी महाराज के साथ श्वेस जी महाराज भी पधारे। कार्यक्रम का संचालन महात्मा वर्धमानानन्द जी ने किया। पत्रकार पवन भोजक व नरेश मारु को गुरुदेव की की तस्वीर भेंट कर अभिनन्दन भी किया गया। कार्यक्रम में राजाराम धारणिया, बजरंग सारड़ा, भवानी जोशी, श्याम मारु, हरिकिशन सोनी, मोहनलाल मूंधड़ा, श्रीमती संतोष राजपुरोहित, कौशल्या राजपुरोहित, पूजा राजपुरोहित मघाराम सुथार, शिवरतन बाहेती सहित अनेक गणमान्यजन व सैकड़ों श्रद्धालु पहुंचे। समारोह के अंत में श्रद्धालुओं ने विभुजी महाराज से आशीर्वाद लिया। इससे पूर्व सुबह करीब आठ बजे तेरापंथ भवन से पूरे गंगाशहर में एक प्रभात फेरी का आयोजन भी किया गया। मुनिश्री शान्ति कुमार जी, महापौर नारायण चौपड़ा, समाजसेवी जतन दूगड़ ने रैली को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया।