सूरत।जीएसटी लागू होने के बाद दिनों दिन सूरत कपड़ा मार्केट की हालत खराब होते जा रहे है।मार्केट में मंदी की मार ने व्यापारीयों की कमर तोड़ दी है।वर्ष 2017 में पहले नोट बंदी व उसके बाद जीएसटी से सूरत कपड़ा बाजार का व्यापार आधे से कम हो गया है।नोटबन्दी से व्यापारी किसी तरह मार्केट संभला था ।जिस कपड़ा उद्योग पर कभी कोई टेक्स नही लगता था उसको बिना तैयारी का मौका दिए जीएसटी के दायरे में ला दिया।कपड़ा व्यापारियों ने जीएसटी के खिलाफ लगातार एक महीने से ज्यादा आंदोलन किया मार्केट बन्द रखा पर सरकार की नींद नही खुली।जिसका परिणाम यह है कि आज सूरत का कपड़ा व्यापार मरणासन्न में है।मंदी की मार,पेमेंट की अनियमितता,सीजन फैल होना,पार्टियों का पलायन,से कपड़ा व्यापारी मायूस है वही जीएसटी के चक्रव्यूह को भी समझ नही पा रहा है।कपड़ा ट्रेडर्स की जमीनी समस्याओं को सुनने के लिए अभी तक कोई भी सरकार की और से व न कोई स्थानीय स्तर पर आगे आया।वित्त मंत्री,वित्त सचिव व कपड़ा मंत्री तक जो भी कपड़ा व्यापारियों का प्रतिनिधिमंडल गया वो अपने स्तर तक जाकर कपड़ा व्यापारीयों की समस्याओं से अवगत भी करवाया पर आश्वासनों का लाभ आम व्यापारीयों को नही मिला है।

वर्तमान में हालात ये है कि रमजान जैसी बड़ी सीजन जिससे व्यापारी आश लागाकर थे कि अच्छा व्यापार होगा लेकिन बाहर मण्डियों में रिटेल काउंटर पर कस्टमरों की कमी ने निराश किया।रमजान की सीजन का लाभ भी सूरत के बड़े व्यापारी ही उठा सके।छोटे व्यापारियों के हालात बहुत ही खराब है।सरकार की और से कोई राहत मिलती नजर न आने से कपड़ा उद्योग के विभिन्न घटक भी प्रभावित हुवे है।लाखो की तादाद में रोजगार उपलब्ध करवाने वाला सूरत का कपड़ा उद्योग आक्सीजन पर आ गया है ।विद्रोही आवाज ने कपड़ा उद्योग की समीक्षा के दौरान पाया कि वास्तव में ये ही हालात रहे तो विश्व प्रसिद्ध टेक्सटाइल उद्योग व उसकी साख समाप्त होने की कगार की और बढ़ रही है।विभिन्न राज्यो से रोजगार पाने के लिए सूरत आये श्रमिको का पलायन शुरू होने लगा है ।हजारो की तादाद में श्रमिको ने काम के अभाव में अपने वतन का रुख किया है।हालात है कि हर रोज भीड़ भाड़ व ट्रैफिक समस्या से ग्रस्त मार्केट में यातायात की समस्या ऑटोमेटिक खत्म हो गई है।बाहर मण्डियों से आने वाले फेरी व्यापारी तो नदारद है ही साथ ही सीजन में खरीदी पर आने वाले व्यापारी भी नदारद हो गए है।


पेमेंट की अनियमितता जीएसटी लागू होने के बाद मार्केट में पेमेंट की किल्लत है।पहले बाहर मण्डियों से 90-100दिन तक लगभग पेमेंट आ जाता था।जो अब 180 दिनों तक नही मिल रहा है।जिससे ट्रेडर्स आर्थिक परेशानी का सामना कर रहे है।पेमेंट रोटेशन ठप्प हो गया है।साथ ही ग्राहकी की आस लगाए थे वो चली नही , स्टॉक माल में भी पैसा जाम हो गया है।हीरा-पन्ना मार्केट के व्यापारी जेठमल सोनी ने बताया कि ग्राहकी न होने से मार्च के बाद से ही ग्रे खरीदना बन्द कर दिया था।


मिलो में माल का अभाव ग्राहकी के अभाव में डाईंग व प्रिंटिंग मिलो में ग्रे कपड़ा नही आ रहा है।ट्रेडर्स मिलो में ग्रे नही भेज रहे है।जिससे मिलो में पर्याप्त माल नही आ रहा है ।कई कपड़ा मिले बन्द हो गई है तो कई बन्द होने की कगार पर है।कुछ एक पाली में ही चल रही है।श्रमिक भी काम के अभाव में अपने वतन की और पलायन कर रहे है।मिल टेम्पो कॉन्ट्रेक्टर चतर सिंह भाटी ने बताया कि पहले हर रोज 5-6हजार ताको की ढुलाई कर मील पहुचाते थे पर अब केवल 1500-2000 ताके ही आते है।जिस पर 50-60की लेबर रोजगार पाती थी काम की कमी से अब श्रमिक 15-20में काम चल जाता है।बाकी के गाँव चले गए है।ऐसी स्थिति में प्रतिदिन नुकसान हो रहा है।
ग्रे उत्पादन में कमी ग्रे लेवाली में कमी आने से वीवर्स ने ग्रे उत्पादन कम कर दिया है।हजारो की तादाद में मशीने भंगार में बिक चूकी है।लूम्स एक पाली चलाने या बन्द करने की नोबत आ गई है ।कपड़ा मार्केट से भुगतान की लेट लतीफी ने भी सारा एडजस्टमेंट बिगाड़ रखा है।यार्न में भाव बढ़ोत्तरी व पेमेंट की सख्ती ने भी उत्पादन में कमी करने पर मजबूर कर दिया है।लूम्स खातों में काम की कमी से हजारो श्रमिक बेरोजगार हो गए है।
एम्ब्रायडरी के बुरे दिन एम्ब्रायडरी कारखानेदार के बुरे दिन आ गए है।छोटे कारखानेदार तो लगभग खत्म होने के कगार पर है।कपड़ा मार्केट से जॉब का पर्याप्त माल नही मिलने से छोटे मशीनों वाले काम बंद करके बैठे है।जीएसटी के बाद छोटे कारखानेदारों के पास माल की हमेशा कमी रही है।जिसके पास थोड़ा बहुत माल आता है वो खुद मशीन चलाकर माल तैयार कर रहे है।कारीगरों की छुट्टी कर दी है।कारण मार्केट से माल की कमी व भाव न मिलने से कारीगरों की पगार बचाने खुद को ही मशीन चलानी पड़ती है।बड़े काम वाले ट्रेडर्स ने अपने खुद के कारखाने लगा दिए है।नई मशीने आने से वैसे ही पुरानी मशीने भंगार में भी नही बिक रही है।हीरा उद्योग से एम्ब्रायडरी मशीने लगाकर कारखाना चलाने वाले कई लोगो ने अपना कारखाना बन्द कर वापस हीरा उद्योग का रुख किया है।एम्ब्रायडरी उद्योग के ऐसे हालात से हजारो कारीगर बेरोजगार हो गए है।
कटिंग फोल्डिंग के काम मे कमी रोजाना लाखो मीटर कपड़ा कटिंग फोल्डिंग करने वाले कॉन्ट्रेक्टर भी जीएसटी के बाद मंदी में घाटा कर रहे है।ग्राहकी न होने से कटिंग फोल्डिंग वालो को काम नही मिलता जिससे कॉन्ट्रेक्टरौ ने अपने स्टाफ में कमी की है।कॉन्ट्रेक्टर डूंगरसिंह सोढा व श्रवणसिंह भाटी ने बताया कि 2017 के साल में स्टाफ की पगार निकले जितना भी काम नही हो रहा है।स्टाफ की मजबूरी में गॉव भेजना पड रहा है।रमजान जैसी सीजन में 24 घंटे रातपाली का भरपूर काम मिलता था।पर अब रातपाली तो दूर दिन का भी पूरा काम नही मिलता है।ऐसी स्थिति रही तो मजबूरी में लेबर को छुट्टी करनी पड़ सकती है।
ट्रांसपोर्ट में माल की कमी रमजान,आड़ी व स्कूल सीजन में अभी भरपूर माल की बुकिंग मिलने की आशा थी ।लेकिन सब फैल हो गया जहां एक दिन में बाहर मण्डियों के लिए 400 ट्रक प्रतिदिन भरकर निकलते थे जो वर्तमान में 100 पर आगये है।यूनाइटेड ट्रांसपोर्ट के संचालक संदीप शर्मा ने बताया कि हालत बहुत खराब है।जीएसटी के बाद तो काम करना भी समझ नही आ रहा है।ईवे बिल से भी परेशानी बढ़ी है।
पार्सल उठाने वाले कॉन्ट्रेक्टर पंडित राजदत्त तिवारी बताते है कि इस समय की सीजन ने निराश किया है।काम की कमी से लेबर बेरोजगार हो गई है ।उनका खर्चा उठाना भी भारी पड़ रहा है।