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पाप करना दुष्कर नहीं बल्कि पापों की आलोचना करना अतिदुष्कर : विराग मुनि

बाड़मेर। जैसे-जैसे धन बढ़ा, सुख-सुविधाएं बढ़ी वैसे-वैसे पाप करने के साधन बढ़ते गए। जब जमीन ही खराब होगी तो फल अच्दा कहां से आयेगा। उसी तरह जब शील ही सुरक्षित…