बीकानेर। मुक्ति संस्था, बीकानेर के तत्वावधान में नवां  कहानी पाठ का  आयोजन  रविवार 31 मार्च  को स्थानीय बीकानेर व्यापार उद्योग मण्डल के सभागार में आयोजित किया गया । इससे पूर्व  यहां आठ कहानी पाठों का आयोजन हो चुका है ।  रविवार को हुए कहानी पाठ कार्यक्रम की अध्यक्षता डूंगर महाविद्यालय में हिन्दी विभाग की विभागाध्यक्ष एवं वरिष्ठ शिक्षाविद् डॉ शालनी मूलचंदानी ने की । अपनी हिन्दी कहानी  “गूंज” का पाठ  युवा साहित्यकार  डॉ.रेणुका व्यास ने किया तथा राजस्थानी कहानी  “लक्ष्मी की माँ” का पाठ  साहित्यकार डॉ.कृष्णा आचार्य ने किया  ।

इन कहानियों में हिन्दी कहानी पर  त्वरित प्रतिक्रिया डूंगर महाविद्यालय में उर्दू की प्राध्यापक डॉ असमा मसूद  ने तथा राजस्थानी कहानी पर त्वरित प्रतिक्रिया एम.एस. कॉलेज में हिन्दी की प्राध्यापक डॉ.विजयलक्ष्मी शर्मा ने की । कार्यक्रम में विशेषज्ञ टिप्पणी डूंगर महाविद्यालय में हिन्दी की प्राध्यापक डॉ. सुचित्रा कश्यप ने की ।
प्रारम्भ में कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी ने स्वागत भाषण करते हुए  कहा कि उत्तर आधुनिकता की कहानियां सच के समीप नजर आती है उन्होंने कहा कि यथार्थ तथा यथार्थपरक कल्पना के आधार पर रची कहानियां सामाजिक सरोकार से जुड़े विविध रंग रोचक ढंग से अभिव्यक्त करती दिखाई देती है । जोशी ने कहा कि आज का कथाकार अपने आस-पास की घटनाओं, स्थितियों-परिस्थितियों से प्रभावित होता है ।

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कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मूलचंदानी ने कहा कि वर्तमान समय में लिखी जा रही कहानियां भाषा के स्तर पर स्मृद्ध है वहीं कहानी लेखन में  महिला रचनाकारों की सहभागिता निरन्तर बढ़ रही है उन्होंने कहा कि आज की कहानियां समाज, परिवार तथा सार्वजनिक जीवन से जुड़े मुद्दों को विषय के तौर पर उठाने वाली कहानियां है । डॉ मूलचंदानी ने कहा कि ये कहानियां सांस्कृतिक मूल्यबोध के प्रति समर्पित नजर आती हैं । उन्होंने कहा कि महिला कहानीकार बोल्ड विषयों को उठाने का जोखिम लेने में पीछे नहीं है । डॉ मूलचंदानी ने कहा कि महिला रचनाकारों के कारण उत्तर आधुनिकता की कहानियां व्यापकता लिए हुए है ।

डॉ रेणुका व्यास की हिन्दी कहानी  पर टिप्पणी करते हुए डूंगर महाविद्यालय में उर्दू की प्राध्यापक डॉ असमा मसूद ने कहा कि डॉ.रेणुका व्यास ‘नीलम’ की कहानी ‘गूंज’ बदलते हुए जीवन मूल्यों की कहानी है। यह कहानी आज के समाज का आईना है जहां बुराई ने अच्छाई का लिबास पहन लिया है और गिरते सांस्कृतिक मूल्यों को हम नया नाम देकर बड़ी ढिठाई से तथाकथित आधुनिकता की अंधी दौड़ में सरपट दौड़ रहे हैं। आज के दौर में इंसान पैसे के पीछे भाग रहा है । कैसे भी मुमकिन हो ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना चाहता है । ‘गूँज’ का केंद्रीय पात्र लोकेश इस दिखावटी समाज में अपना रुतबा बनाए रखने के लिए जिस तरह करप्शन के दलदल में धंसता जाता है वह हमारे दौर की हकीकत बन गई है । डॉ.रेणुका व्यास ‘नीलम’ की कहानी आज की जिंदगी और समाज की इस हकीकत को बेनकाब करते हुए हमें सोच के इस दायरे में ले आती है कि पैसे के पीछे अंधाधुंध दौड़ते इंसान का अंजाम आखिर क्या होगा ?

डॉ कृष्णा आचार्य की  राजस्थानी कहानी पर अपनी टिप्पणी करते हुए महारानी कॉलेज में हिन्दी की प्राध्यापक डॉ विजयलक्ष्मी शर्मा ने कहा कि डॉ.कृष्णा की कहानी मानवीय संवेदना को उकेरने वाली सामाजिक कहानी “लिछमी की माँ” पाठक वर्ग के समक्ष कई प्रश्न अनुत्तरित छोड़ जाती है । डॉ.कृष्णा आचार्य की यह कहानी आम जन जीवन  के मध्यम वर्ग  की एक यथार्थ  घटना को संवेदनशील  दस्तावेज बना देती है । कर्तव्य, सेवा, बेबसी, लाचारी और मौन के भावों में लिपटी ये कहानी पाठक को भीतर से झकझोर जाती है । एक छोटी सी घटना से किस प्रकार स्त्री जीवन संघर्ष से परिपूर्ण हो जाता है ये कहानी इसकी विश्वस्त बानगी है । लिछमी, इस कहानी की व्यष्टि पात्र न होकर हमारे समाज की समष्टि पात्र के रूप में उभरती है।
विशेषज्ञ टिप्पणी प्रस्तुत करते हुए डूंगर महाविद्यालय में हिन्दी की प्राध्यापक डॉ. सुचित्रा कश्यप ने कहा कि ये दोनों कहानियां कथानक, शिल्प एवं भाषा की दृष्टि से  अनुपम है, उन्होंने कहा कि ये दोनों कहानियां संवेदना और संस्कार से जोडऩे का काम करती है । डॉ कश्यप ने कहा कि वर्तमान समय में खोखले होते मानवीय संबंधों की बखूबी चित्रण करने वाली कहानियां है ।

कार्यक्रम में डॉ.अजय जोशी, प्रमोद शर्मा, नदीम अहमद ‘नदीमÓ, इसरार हसन कादरी, मुकेश व्यास, आत्माराम भाटी, डॉ. रूबीना साहिन, शिवशंकर व्यास, नीलम पारीक, डॉ नमामी शंकर आचार्य, बाबूलाल छंगाणी, गिरिराज पारीक, डा.सीमा अरोड़ा, नवेन्दु खत्री, विष्णु शर्मा, प्रशांत जैन, राजेश चौधरी, मक्खनलाल अग्रवाल, विष्णुपुरी, विनोद भोजक, मुकेश रामावत, कैलाश जनागल सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे कार्यक्रम का संचालन शिक्षाविद  मुक्ता तैलंग ने किया तथा अन्त में भगवती सोनी ने आभार स्वीकार किया ।

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