कैलाश मनहर की संस्मरणात्मक शब्दचित्र पुस्तक ’मेरे सहचर-मेरे मित्र’ का लोकार्पण

जयपुर। प्रतिष्ठित कवि एवं पत्रकार वीर सक्सेना ने कहा है कि साहित्यकारों को अपने वैचारिक एवं बौद्धिक स्तर पर क्षमतावान बनना होगा ताकि देश के नागरिक उन पर गर्व कर सकें और उनके आह्वान पर अन्याय और अनीति के विरोध में खड़े हो सकें। उन्होंने ज्यां पाल सार्त्र का उदाहरण देते हुए कहा कि उनके मुल्क में उनके एक आह्वान पर नागरिक सब काम छोड़कर उनके कहे पर अमल करने लगते थे और राष्ट्रपति तक उनके विचारों का सम्मान करते थे। हिन्दी जगत में ऐसा क्यों नहीं संभव होता, यह विचार का विषय है।
श्री सक्सेना शनिवार को पिंकसिटी प्रेस क्लब में जन कवि कैलाश मनहर की रेखाचित्रात्मक संस्मरण पुस्तक ’मेरे सहचर-मेरे मित्र’ के लोकार्पण अवसर पर अध्यक्षता करते हुए बोल रहे थे।

arham-english-academy
सक्सेना ने कहा कि मनहर ने इस कृति के माध्यम से व्यक्ति के भीतर की रचनात्मकता को सामने लाने का प्रयास किया है। उन्होंने लेखक के साहित्य की बजाय लेखक की संचेतना को उजागर कर अद्भुत काम किया है। उन्होंने साहित्यकारों के व्यक्तित्व को अभिव्यक्त किया है। उन्होंने यह भी कहा कि राजस्थान की कविता का आकलन करने की आवश्यकता है। गद्य साहित्य में भी यहां बहुत अच्छा लेखन हो रहा है, जिसे हिन्दी संसार को नोटिस लेने की जरूरत है।
प्रसिद्ध आलोचक डाॅ. राजाराम भादू ने कहा कि गद्य लेखन एक कवि की कसौटी है। कैलाश मनहर अच्छे कवि के साथ अच्छे गद्यकार हैं। वे हमें अपनी भीतर की दुनिया से, अंतर्द्वंद्व से परिचित कराते हैं और एक समृद्ध संस्कृति की झलक उनके लेखन में मिलती है। हिन्दी साहित्य में 1990 के बाद कहानी और कविता के वर्चस्व के कारण कथेतर साहित्य में जो वेक्यूम आया और उसकी उपेक्षा हुई उसकी भरपाई होती हुई दिखाई दे रही है।रवीन्द्र कालिया और कांति कुमार जैन के बाद इस दिशा में कार्य आगे बढ़ा है। साहित्य के साथ साहित्यकारों के जीवन पर भी लिखा जाएगा तो समाज में साहित्य और साहित्यकारों का सम्मान बढ़ेगा। इसी से साहित्यकारों के भीतर का सत्य और उनकी ऊर्जा से समाज परिचित हो सकेगा।

shyam_jewellers
वरिष्ठ लेखक एवं आलोचक डाॅ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने कहा कि ’मेरे सहचर मेरे मित्र’ पुस्तक कैलाश मनहर की रचनाशीलता का नया आयाम प्रस्तुत करती है। हेमन्त शेष ने ’भूलने का विपक्ष’ पुस्तक में साहित्यिक मित्रों और शहरों को लेकर अविस्मरणीय संस्करण लिखे हैं।डॉ हेतु भारद्वाज ने भी इस दिशा में महत्वपूर्ण काम किया है। कैलाश मनहर मनुष्य के उज्ज्वल पक्ष को सामने लाते हैं और जिसके बारे में वे लिखते हैं, उसके लहजे को भी संजो लेते हैं। उन्होंने कहा कि लेखकों को आत्ममुग्धता छोड़कर अपने लोगों के लिखे को भी पढ़ना चाहिए। पुस्तक में डॉ राजाराम भादू और कैलाश मनहर का संवाद हमें बौद्धिक रूप से समृद्ध करता है। प्रारम्भ में लेखक कैलाश मनहर ने पुस्तक की पृष्ठभूमि से अवगत कराया। कर्नल अमरदीप सिंह ने कार्यक्रम का संचालन किया। विचार मंच के कमलकांत शर्मा ने सभी का आभार व्यक्त किया।प्रारंभ में बोधि प्रकाशन के संदीप मायामृग ने पुस्तक पर अपने विचार रखे।

इस अवसर पर वेद व्यास, कृष्ण कल्पित, सवाई सिंह शेखावत,नंद भारद्वाज , फ़ारूक़ आफरीदी,  हरीश करमचंदानी,  वीना करमचंदानी, एस भाग्यम , जीसी बागड़ी,  रमेश शर्मा , नूतन गुप्ता, जयश्री कंवर, कविता माथुर , अजय अनुरागी, गजेंद्र रिझवानी, शिवानी जयपुर कृष्ण कुमार पुरोहित, कल्पना गोयल, जगदीश गिरी,आशा पटेल, हेमन्त शेष, गोपाल शर्मा प्रभाकर, भागचंद गुर्जर और बहुत से साहित्यानुरागी मौजूद रहे ।

gyan vidhi PG college