अशोक भाटिया
इस वर्ष के विधान सभा चुनाओं को देखते हुए कहा जा सकता है की भाजपा के लिए राजनैतिक तौर पर यह वर्ष अच्छा नहीं रहा | आम चुनाव में तो मोदी-शाह ने बड़ी ही बेहतरीन बाजी मार ली, लेकिन 2014 के विधानसभा चुनावों की जीत नहीं दोहरा पाये| पहला झटका हरियाणा में लगा| हरियाणा में तो जैसे तैसे गठबंधन का जुगाड़ करके मनोहरलाल खट्टर को कुर्सी पर बिठा दिया, लेकिन महाराष्ट्र में ‘कर्नाटक’ दोहराने के बावजूद न गठबंधन बच पाया ने भाजपा की सरकार बन पायी|

एक तरफ झारखंड चुनाव की प्रक्रिया चल रही थी और दूसरी तरफ असम और नॉर्थ ईस्ट में नागरिकता संशोधन कानून और एन आर सी को लेकर विरोध हिंसक शक्ल लेने लगा था, फिर भी झारखंड की चुनावी रैली में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की| इसके अलावा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण में बार बार रुकावट डालने को लेकर भी हर सभा में कांग्रेस के ऊपर आरोप मढ़ा जा रहा था , लगता है लोगों को ये बातें अब हजम नहीं हो पा रही थीं| तब तक भाजपा नेतृत्व को स्थानीय और क्षेत्रीय मुद्दों की अहमियत समझ नहीं आ रही थी, ऐसा लगता है| हालत कुछ ऐसे बिगड़ने लगी कि झारखंड की चुनावी रैली में भी प्रधानमंत्री मोदी को असम के लोगों से शांति बनाये रखने की अपील करनी पड़ी |

भाजपा नेतृत्व ने झारखंड के लोगों को अलग अलग तरीके से समझाने की पूरी कोशिश की कि झारखंड में विकास सिर्फ डबल इंजिन वाली सरकार ही कर सकती है – डबल इंजिन मतलब केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार और राज्य में रघुवर दास सरकार| लोगों के मन में क्या चल रहा था, भाजपा का पूरा अमला पढ़ने में पूरी तरह चूक गया| नतीजे आने पर मालूम हुआ की सरकार तो हाथ से गयी ही, परंपरा का निर्वाह करते हुए भाजपा का मुख्यमंत्री भी चुनाव हार गया – ध्यान देने वाली बात ये रही कि रघुवर दास किसी और से नहीं बल्कि अपने ही कैबिनेट सहयोगी रहे सरयू राय से हार गये| जब रघुवर दास के कहने पर भाजपा आलाकमान ने सरयू राय का टिकट काट दिया तो वो निर्दलीय चुनाव लड़े और मोदी-शाह के सारी ताकत झोंक देने के बावजूद चुनाव हार गये|

गुजरते वक्त के साथ विरोध प्रदर्शन देश भर में जानलेवा हिंसा और उपद्रव का रूप लेता गया – और झारखंड के बाद दिल्ली चुनाव भी नजदीक आ गया| 22 दिसंबर को नरेंद्र मोदी फिर से मोर्चे पर लौटे| लौटे इसलिए कहना पड़ रहा है कि धारा 370 खत्म किये जाने के बाद से फ्रंट पर लगातार अमित शाह ही नजर आ रहे थे| चाहे वो संसद में विपक्ष से सरकार की तरफ से दो-दो हाथ करने की बात हो, चाहे सड़क पर सबको जवाब देने की |अमित शाह तो डंके की चोट पर कहते फिर रहे थे कि विपक्ष विरोध को जितनी भी हवा दे – सी ए ए और एन आर सी पूरे देश में लागू होकर ही रहेंगे| हर प्रदेश में स्थानीय मुद्दों से दूर रहने के कारण ही भाजपा का वर्ष 2 0 1 9 राजनैतिक तौरपर असफल कहा जा सकता है |