दलबदलुओं के हम पर दल बनाने का दम
जयपुर।सचिन-खेमे-की-20-गलतियां/उपमुख्यमंत्री कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट अपनी ही पार्टी की सरकार को अल्पमत में बता सदन में फ्लोर टेस्ट मांग कर बैठे जिससे गहलोत का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया।
➡ महाभारत का जिस एंगल से विश्लेषण किया जाए उसमें दो व्यक्ति श्री क्रष्ण व शकुनी दो पात्रों की उपेक्षा मुश्किल है। आप जिंदगीमें कोई भी काम या जंग कर रहे हों, सबसे अहम ये होता है कि सलाहकार कौन हैं।
➡ राजस्थान के सियासी संकट के चर्चे कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक है। हो भी क्यूं नहीं मध्य प्रदेश के बाद राजस्थान ही तो कोई बडा प्रदेश था जहां कांग्रेस पूर्ण सत्तासीन है। राजस्थान सरकार के सामने आए इस संकट में भाजपा की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता लेकिन राजनीतिक उटापटक के पहले झंडाबदरदार उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट व उनके समर्थक विधायक खुद बने हैं। इनका नंबर गेम पूरा होता तथा पर्दा गिरता उसके बाद भाजपा मंच पर आकर सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर सरकार को गिराती उससे पहले उसी फार्मूले से राजस्थान की राजनीति के जादूगर ने सचिन व भाजपा के मंसूबों को कामयाब नहीं होने दिया। देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत सरकार बनती व बिगडती है इसलिए गहलोत ने बहुत पहले ही इस तरह के हालात का अंदाजा लगाते हुए अपने कुनबे का साइज बडा लिया था। आपको याद होगा सितंबर 2019 में जब बहुजन समाज पार्टी के 6 विधायकों को पार्टी में शामिल किया तब सचिन पायलट नाखुश थे, शायद उनको इस बात का आभास था कि सरकार के पास जितना अधिक नंबर होगा उनकी बगावत का पलडा उतना ही कमजोर होगा। बीते तीन दिनों में हुआ भी कुछ ऐसा। राजस्थान कांग्रेस के एक तिहाई विधायक अपने पक्ष में होने का भ्रमपाले पायलट जयपुर से निकल गये ओर दिल्ली आलाकमान के समक्ष अपनी शर्तोंकी फेहरिस्त भेज दी लेकिन उनका दांव उलटा पड गया। आलाकमान ने सचिन से मिलना तक मुनासिब नहीं समझा ओर जयपुर जाकर गहलेात से मिलकर नाराजगी दूर करने की दो टूक सलाह दी लेकिन सचिन भी आखिर राज्य के उपमुख्यमंत्री व कांग्रेस के अध्यक्षथ लिहाजा इसी दम पर उनके समर्थक भी अपनी पार्टी व सरकार के सामने खडे हो गये।
➡ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व कांग्रेस ने यहां तक तो सुलह के संकेत दिए लेकिन जब पायलट ने हरियाणा के मानेसर में एक रिसोर्ट में बैठकर सोमवार को रात 10 बजे गहलोत सरकार के अल्पमत में होने का दावा करते हुए यह मांग कर डाली की गहलोत सरकार सदन में विश्वास मत हासिल करे।। सरकार के खिलाफ विश्वास प्रस्ताव लाने का अधिकार विपक्ष को होता है, कि जब उसे लगे के सरकार के पास अब बहुमत नहीं है जैसा की महाराष्ट्र में देवेंद्र फडनवीस की सरकार के साथ हुआ था। लेकिन राजस्थान में उपमुख्यमंत्री व कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट अपनी ही पार्टी की सरकार से यह मांग कर बैठे जिससे गहलोत का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया। गहलोत ने कांग्रेस आलाकमान के सिपहसालार अजय माकन, रणदीप सुरजेवाला तथा राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी अविनाश पांडे के सामने ही विधायक दल की बैठक आयोजित कर सचिन पायलट उपमुख्यमंत्री तथा कांग्रेस अध्यक्ष, विश्वेंद्र सिंह तथा रमेश मीणा को केबिनेट मंत्रीके पद से बर्खासत कर दिया।
बागी खेमे की 20 गलतीयां
➡ दिसंबर 2018 में जब मुख्यमंत्री पद को लेकर गहलोत व सचिन के बीच विवाद पैदा हुआ तब उन्हें ग्रह अथवा वित्त मंत्रालय अपने पास रखना चाहिए था।
➡ अपनी ही सरकार को अल्पमत में बताना सचिन की सबसे बडी भूल साबित हुई, उॅपर से फ्लोर टेस्ट की मांग भी। उपमुख्यमंत्री की ओर से किया जाना राजनीति के इतिहास में शायद ही ऐसा उदाहरण इससे पहले कहीं देखने को मिला हो।
➡ जो काम विपक्ष के नाते भाजपा को मांग करना था वही मांग सचिन ने कर इस बात का सबूत दे दिया कि वे खुद पार्टी तथा सरकार विरोधी गतिविधियों के सूत्रधार हैं
➡ सचिन ने बगावत के लिए जिन विधायकों की मदद ली वे इससे पहले कई बार बगावत व दल बदल कर चुके हैं, इसलिए उनकी विश्वसनीयता पर सवाल है।
➡ समर्थक 19-20 विधायकों में आधे से अधिक विधायक गुर्जर व मीणा जाति के हैं जिससे सचिन पायलट पर अब गुर्जर नेता होने का ठप्पा लग गया है।
➡ सरकार के गठन के वक्त विवाद के बाद से ही इस बात की आशंका थी की गहलोत सरकार में दूसरे नंबर के लोकप्रिय नेता सचिन पायलट को मुक्त नहीं छोडेंगे तथा कोर्नर करने का हर वक्त प्रयास करेंगे। सचिन पर जातिगत नेता होने का ठप्पा लगाना उनके लिए सबसे आसान था जिसमें अब वे सफल होते नजर आ रहे हैं। सचिन चाहते तो इससे बचकर निकल सकते थे।
➡ सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनाने पर भी गुर्जर समुदाय ने राजस्थान के कुछ जिलों में आगजनी, हिसां व तोडफोड की थी, अब उपमुख्यमंत्री व कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटाने पर भी गुर्जर समुदाय ही सबसे अधिक उग्र है ऐसे में अन्य जाति के नेता व मतदाता उनसे छिटक जाएंगे।
➡ सचिन को आत्मसम्मान के नाम पर ही यह विवाद खडा करना था तो खुद मुख्यमंत्री गहलोत अथवा आलाकमान को इस्तीफा भेजना चाहिए था ताकि उनकी छवि सत्ता का त्याग करने वाले नेता पीएम पद छोडने वाली सोनिया गांधी की तरह व एक ताकतवर नेता होकर भी अपने स्वाभिमान को महत्व देने वाले राजमहलों को त्यागकर जंगलों में चले जाने वाले महाराणा प्रताप की तरह नेता की छवि उभरती।
➡ भाजपा इस गुट की तभी मदद कर सकती थी जब उनके पास एक तिहाई विधायकों का संख्या बल हो, इससे कम पर ना सरकार गिर सकती है और ना ही नयी सरकार बन सकती है। चूंकि दलबदल कानून के तहत एक तिहाई से कम विधायक पार्टी नहीं छोड सकते है, अगर छोडना भी हो तो विधायक पद से इस्तीफा देना पडता है जैसे गुजरात में राज्यसभा चुनाव से पहले कांग्रेस विधायकों ने इस्तीफा देकर अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा की मदद की। चाहते तो वो भाजपा के पक्ष में मतदान भी कर सकते थे लेकिन तब उन पर कांग्रेस पार्टी का व्हीप लागू पडता ओर वे अयोग्य ठहरा दिए जाते।
➡ सचिन पायलट ने दिल्ली में ज्योतिरादित्य सिधिंया जो मध्यप्रदेश में हाल ही कांग्रेस से अलग होकर भाजपा में जुड गये उनसे मिलकर साफ संकेत दे दिए कि मध्य प्रदेश फार्मूला राजस्थान में भी लागू हो सकता है, गहलोत व कांग्रेस आलाकमान को इससे अधिक साफ संकेत ओर क्या हो सकते थे।
➡ सचिन पायलट ने सीएम गहलोत की तरह राजस्थान में अपनी पकड लगातार मजबूत बनाने की कोशिश की लेकिन दिल्ली में कहीं ना कहीं उनके संपर्क कमजोर पडते गये। उनके पिता दिवंगत राजेश पायलट के मित्र गुलाम नबी आजाद ने भी उनके निष्कासन पर यही कहा कि सचिन हमारे मित्र का लडका है, उनके खिलाफ हुई कार्रवाई का दुख है।
➡ सचिन बीते अपने राजनीतिक कैरियर में दौसा , टोंक व अजमेर तीन जिलों से चुनाव लड चुके हैं। किसी एक जिले को उन्होंने अपना कैंप नहीं बनाया। दौसा में गुर्जर नेता कर्नल बैंसला, मीणा समाज के नेता डॉ किरोडी लाल मीणा के रहते उनका टिक पाना आसान नहीं होगा। टोंक कांग्रेस का गढ है, तथा अजमेर उनके लिए सुरक्षित सीट नहीं मानी जा सकती। ऐसे में उनहें आगामी चुनाव लडने के लिए सबसे पहले सुरक्षित सीट ढूंढने में दिक्कत होगी।
➡ सचिन को राजस्थान में राजनीति करनी है तो 36 कौम के साथ कैसे सामंजस्य कायम करेंगे। अगर उनकी छवि किसी जातिवादी नेताकी बन जाती है तो। जबकि हाल चाहकर भी वे खुद को इससे अलग नहीं कर पा रहे हैं।
➡ राजस्थान के जाति आधारित नेताओं में दिग्गज नेता डॉ किरोडी लाल मीणा भाजपा, कर्नल बैंसला भाजपा, हनुमान बेनीवाल भाजपा सहयोगी, लोकेंद्रसिंह कालवी करणी सेना अध्यक्ष तथा भाजपा के पूर्व नेता घनश्याम तिवाडी का शूमार होता है, इस छवि के दम पर ये नेता लंबे समय तक राजनीति के जहाज को खींच नहीं पाए और पार्टी का सहारा लेना पडा, क्या सचिन अपनी पार्टी बनाकर जैसा की प्रगतिशील कांग्रेस की चर्चा है, कितने विधायक जिता कर ला सकेंगे।
15 सचिन पायलट कांग्रेस में जिन पदों पर थे वहां रहकर वे अधिक प्रभावशाली थे, एक बार पार्टी से निकले की समर्थकों व नेताओं का कारवां भी छिटकता नजर आऐगा। जैसे उमा भारती राष्ट्रीय स्तर पर छवि चमकाने के चक्कर में तिरंगा यात्रा लेकर निकली ओर पीछे सीएम बनाए गए शिवराज सिंह चौहाण कुर्सीसे ऐसे चिपके की अब चौथी बार मुख्यमंत्री बन गये लेकिन उमा पिफर उस मुकाम को हासिल नहीं कर सकी।
16 सचिन पहली बार विधायक बने जिन नेताओं को अपने साथ ले गये उनमें से एक को छोडकर कोई भी दुबारा चुनाव नहीं जीत सकते हैं। जैसे तैसे हाथा जोडी कर वे विधायक बने हैं, पार्टी व सरकार का डंडा उनहें कब तक उनके साथ रखता है यह देखने वाली बात है। उन विधायकों के मंत्री बनने की लालसा भी गजब है
17 पूर्वमुख्यमंत्री वसुंधरा राजे क्या ये चाहेंगी कि कांग्रेस से आकर कोई नेता भाजपा की मदद से सीएम बन जाए ओर वे उसका समर्थन करें। जबकि वे भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष व नेता विपक्ष बनने देने के लिए भी महीनों तक इंतजार कराती हैं।
18 गहलोत तीसरी बार सीएम बने हैं और वसुंधरा राजे दो बार सीएम रहीं हैं। क्या गहलोत के बाद फिर वसुंधरा राजे तीसरी बार सीएम नहीं बनना चाहेंगी। जबकि राजस्थान में हर बार सरकार बदलने का ट्रेंड है।
19 अगर भाजपा होम व फाइनेंस मंत्रालय देकर इतनी उठापटक कराना चाहती है तो इनमें से एक मंत्रालय व कांग्रेस अध्यक्ष का पद क्या बुरा है।
20 कांग्रेस में अपने हक की बात राजेश पायलट ने भी उठाई, अध्यक्ष का चुनाव भी पूरी हनक के साथ लडे लेकिन पैर घर में ही रखकर।
पायलट खेमा टेस्ट मांग कर बैठे जिससे गहलोत का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया।